देश में पहली बार 1st क्लास से होगी मिलिट्री ट्रेनिंग, क्या हैं मायने?

महाराष्ट्र में बच्चों पर सैन्य प्रशिक्षण देने का फैसला लिया गया है। ऐसा देश में पहली बार होगा जब बच्चों को 1st क्लास से मिलिट्री ट्रेनिंग मिलेगी। आइये जानें इसके मायने

Military Training To First Class Student In Maharashtra

AI द्वारा बनाई गई फोटो

इन दिनों जब हर तरफ सेना, सरकार और रक्षा नीति की बात हो रही है। इस बीच महाराष्ट्र सरकार प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग देने का फैसला लिया है। स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने कहा कि छात्रों को बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग देने का फैसला किया गया है। इससे उनके मन में प्रेम की भावना पैदा होगी। इसके साथ ही वो फिटनेस पर ध्यान देंगे। अब सवाल ये उठता है कि ये किस हद तक प्रैक्टिकल है और क्या भारत या दुनिया में इस तरह के प्रशिक्षण होते हैं?

अभी भी देश में बच्चों को स्कूलों में मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाती है। हालांकि, पहली क्लास से प्रशिक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। अगर महाराष्ट्र सरकार को प्रोजेक्ट काम करता है तो देश में पहली बार होगा जब कक्षा एक से बच्चों को सेना के लिए तैयार किया जाएगा। आइये जानें क्या है पूरी प्लान और दुनिया के किन-किन देशों में बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग के प्रावधान हैं?

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क्या है प्लान?

महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा मंत्री ने प्रस्ताव के बारे में बताया कि इसे लागू करने के लिए प्राइमरी स्कूलों में खेल शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए NCC, स्काउट-गाइड्स के साथ 2.5 लाख रिटायर्ड सैनिकों की मदद लेंगे। प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी अपना समर्थन दिया है।

स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने कहा कि बच्चों को प्रारंभिक स्तर से ही बुनियादी स्तर की सैन्य ट्रेनिंग देने का फैसला हुआ है। इससे देश के प्रति प्रेम तो जागेगा साथ ही शारीरिक व्यायाम, अनुशासन को भी बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। ये छात्रों का संपूर्ण विकास करेगा।

मिलिट्री ट्रेनिंग से बनेगे जिम्मेदार नागरिक

मंत्री के प्रस्ताव पर सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सरकार इसे भविष्य के निवेश के रूप में देखती है। ये योजना छात्र जीवन को मूल्यों से भरेगा। आधारभूत प्रशिक्षण से उनकी नींव मजबूत होने के साथ समग्र विकास को बल मिलेगा। ये प्रशिक्षण बच्चों को शैक्षणिक सफलता के साथ जिम्मेदार नागरिक बनने में सहयोग करेगा।

क्या है मकसद?

प्रारंभिक अवस्था में बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग देने के कई लाभ हो सकते हैं। इससे युवा मन में राष्ट्र प्रेम की अलख जगेगी। वहीं छात्रों को व्यक्तिगत विकास और भविष्य की सफलता के लिए अनुशासन का पाठ मिल पाएगा। शारीरिक व्यायाम और स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। देश के प्रति उत्तरदायित्व की भावना के कारण उन्हें आगे इन सेवाओं में जाना और आसान होगा।

स्कूल में होती है मिलिट्री ट्रेनिंग

ऐसा कोई पहली बार नहीं है कि देश में बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग देने की चर्चा चल रही है। हालांकि, प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में इसे शामिल करने की चर्चा कुछ नई है। इससे पहले ही भारत में 30 से ज्यादा सैनिक स्कूलों का संचालन हो रहा है। यहां 10 साल के बच्चों को कक्षा 6 और 13 साल के बच्चों को कक्षा 9 में बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए एक तय प्रक्रिया होती है। यहां बच्चों को प्रारंभ से ही राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भारतीय नौसेना अकादमी में प्रवेश के लिए तैयार किया जाता है। इसके अलावा देश में 5 मिलिट्री स्कूल भी संचालित होते हैं।

भारत में पहली बार मिलिट्री स्कूल का विचार साल 1920 में आया था। साल 1922 में पहला मिलिट्री स्कूल देहरादून में ब्रिटिश सरकार स्थापित किया था। इसके बाद 1930 में अजमेर, 1945 में बेलगाम, 1946 में बैंगलोर में इसकी मिलिट्री स्कूलों की स्थापना की गई। आजादी के बाद 1961 से भारत सरकार ने सैनिक स्कूलों को प्रचलन शरू किया और 1962 में धौलपुर में सैनिक स्कूल की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य बच्चों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और अन्य मिलिट्री ट्रेनिंग संस्थानों के लिए तैयार करना था।

सैनिक स्कूलों के बाहर प्रशिक्षण

भारत में पहले से ही राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) कार्य कर रही है। इसमें हाई स्कूल के बाद और कॉलेज के छात्रों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। हालांकि, यह किसी तरह से अनिवार्य न होकर छात्रों के लिए वैकल्पिक है। इसमें परेड, शारीरिक प्रशिक्षण, हथियारों की बुनियादी शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा सेवा कार्य और नेतृत्व विकास पर काम किया जाता है। NCC सर्टिफाइड बच्चों को सैन्य सेवाओं में जानें पर बोनस अंक भी दिया जाता है। इसके अलावा स्काउट्स एवं गाइड्स जैसे संगठनों के जरिए भी बच्चों को ड्रेंड किया जाता है।

यहां है मिलिट्री ट्रेनिंग का प्रावधान

बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण यानी मिलिट्री ट्रेनिंग देने की प्रथा भारत के अलावा भी कई देशों में प्रचलित है। हालांकि, आमतौर पर इसे वैकल्पिक बनाया जाता है। कम उम्र के बच्चों के लिए ये काफी सीमित होता है। वहीं कुछ जगहों पर इसे राष्ट्रीय नीति और सांस्कृतिक परंपरा, रक्षा रणनीति का हिस्सा माना जाता है।

इजराइल: 18 वर्ष की आयु से पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। हालांकि, स्कूलों में केवल सैन्य प्रशिक्षण से संबंधित कुछ प्रारंभिक शिक्षा दी जा सकती है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, आपातकालीन तैयारी के कोर्स पढ़ाए जाते हैं।

रूस: स्कूलों में कुछ स्तर पर सैन्य शिक्षा या प्रशिक्षण दिया जाता है। पैट्रियोटिक एजुकेशन के तहत बुनियादी सैन्य कौशल सिखाया जाता है। इसमें हथियारों से परिचय और शारीरिक प्रशिक्षण शामिल हो सकता है। कुछ इलाकों में कैडेट स्कूल हैं जहां सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है।

उत्तर कोरिया: यहां सैन्य प्रशिक्षण राष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। स्कूलों में बच्चों को सैन्य परेड, बुनियादी हथियार प्रशिक्षण और अनुशासन संबंधित गतिविधियां सिखाई जाती है। इसे देश की विचारधारा और रक्षा नीति का हिस्सा बताया जाता है।

चीन: कुछ चुनिंदा स्कूलों और विश्वविद्यालयों में सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य कार्यक्रम है। हालांकि, ये प्रशिक्षण कुछ हफ्तों के ही होते हैं। इसमें मार्चिंग, शारीरिक फिटनेस और बुनियादी सैन्य कौशल सिखाया जाता है।

दक्षिण कोरिया: स्कूलों में बच्चों को सीधे सैन्य प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। हालांकि, सैन्य सेवा 18-28 वर्ष के पुरुषों के लिए अनिवार्य है। कुछ स्कूलों में राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य इतिहास के पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं।

अमेरिका: यहां जूनियर रिजर्व ऑफिसर्स ट्रेनिंग कॉर्प्स (JROTC) जैसे कोर्स संचालित होते हैं। इनमें हाई स्कूल के छात्रों को गैर हथियार सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। हालांकि, ये केवल वैकल्पिक होता है। इसमें नेतृत्व, शारीरिक फिटनेस, बुनियादी सैन्य कौशल के विषय शामिल होते हैं।

बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग के लाभ और हानि

चीन, उत्तर कोरिया जैसे कुछ देशों में बच्चों के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य होता है। वहीं कुछ देशों जैसे भारत और अमेरिका में इसे स्वैच्छिक बनाया गया है। इसका मकसद मात्र युद्ध की तैयारी नहीं बल्कि अनुशासन, शारीरिक फिटनेस, नेतृत्व और देशभक्ति को बढ़ावा देना है। चीन, उत्तर कोरिया जैसे देशों के मामलों में मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण देना उनकी स्वतंत्रता और विकास को प्रभावित करता है। खासतौर से तब जब ये कम उम्र के बच्चों के लिए अनिवार्य किया जाता है।

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