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हिंदू पत्नियाँ मंज़ूर, मगर बच्चे मुस्लिम क्यों? मुस्लिम अभिनेताओं और नेताओं की पसंद पर सवाल

जब रिश्ते धर्म से परे होने का दावा करें, मगर पहचान एकतरफा हो, क्या यह सिर्फ इत्तेफाक है या कोई सोच-समझी मानसिकता?

Mansi Singh द्वारा Mansi Singh
23 June 2025
in चर्चित, धर्म
हिंदू पत्नियाँ मंज़ूर, मगर बच्चे मुस्लिम क्यों? मुस्लिम अभिनेताओं और नेताओं की पसंद पर सवाल

हिंदू पत्नियाँ मंज़ूर, मगर बच्चे मुस्लिम क्यों? मुस्लिम अभिनेताओं और नेताओं की पसंद पर सवाल

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बॉलीवुड और राजनीति में एक अजीब लेकिन चिंताजनक पैटर्न लंबे समय से देखने को मिल रहा है, जिस पर अब तक समाज ने या तो चुप्पी साध रखी है या फिर उसे “पर्सनल चॉइस” कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। लेकिन अब सवाल उठाना ज़रूरी हो गया है ,आखिर क्यों ज़्यादातर मुस्लिम अभिनेता और राजनेता हिंदू महिलाओं से शादी करते हैं, लेकिन जब बात बच्चों के नाम रखने की आती है, तो वो नाम मुस्लिम रखे जाते हैं? क्या ये सिर्फ एक संयोग है या फिर इसके पीछे कोई सुनियोजित मानसिकता है? आमिर खान ने दो शादियाँ की और दोनों  पत्नियाँ हिंदू रही हैं और अब वो तीसरी शादी भी हिंदू लड़की से करने जा रहे हैं,  लेकिन उनके बच्चों के नाम हैं: जुनैद, आयरा, आज़ाद।

जब उनसे पूछा गया कि अगर आपकी बीवियाँ हिंदू थीं तो बच्चों का नाम मुस्लिम क्यों है, तो उन्होंने जवाब दिया कि नाम तो बीवियों ने ही रखे हैं, मेरी कोई दखलंदाज़ी नहीं थी। लेकिन सवाल तो यही है ,क्या एक हिंदू महिला स्वेच्छा से अपने बच्चे का ऐसा नाम रखेगी जो पूरी तरह से एक अलग मजहबी पहचान को दर्शाता है? और अगर यह उसकी स्वेच्छा है भी, तो क्या यह एक गहरी सांस्कृतिक हानि नहीं है? क्या यह हमारी धार्मिक और सामाजिक पहचान के विरुद्ध एक सॉफ्ट टूल की तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा?

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शाहरुख खान की पत्नी गौरी हिंदू हैं, लेकिन उनके बच्चों के नाम हैं आर्यन खान, सुहाना खान, अबराम खान। सैफ अली खान की पत्नी करीना कपूर हिंदू हैं, लेकिन उनके बेटे का नाम तैमूर रखा गया, एक ऐसा नाम जो भारत के इतिहास में अत्याचार और रक्तपात का प्रतीक है। अरबाज खान, जिनकी पत्नी मलायका अरोड़ा थी और जिन्होनें अपने बेटे का नाम अरहान खान रखा। सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने हिंदू महिला से विवाह किया और अपने बच्चों का नाम रखा अर्बाज़ हुसैन और अद्देब हुसैन। मुख्तार अब्बास नक़वी ने हिंदू महिला सीमा नक़वी से विवाह किया और बेटे का नाम रखा अरशद नक़वी। सवाल यह है कि ये  नाम केवल एक फ़ैशन है या फिर जानबूझकर चुने गए प्रतीक?

इस मुद्दे पर TFI से बात करते हुए, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, “फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ता लव जिहाद कोइ नई बात नही है, ये तो दशकों से चला आ रहा है, अक्सर जब अभिनेताओं की फिल्म नही चलती तब वह अपना नाम तक बदल लेते हैं।” बंसल ने अभिनेता दिलीप कुमार का उदाहरण भी दिया है। साथ ही, उन्होंने कहा, “ऐसे लोग सिर्फ निकाह ही नही करते बल्कि महिलाओं का धर्म परिवर्तन कर उनसे तलाक भी ले लेते है और महिलाओं का बल पूर्वक या छल पूर्वक फसाकर उनका शोषण भी करते हैं, इसके पीछे उनकी मानसिकता इसलाम को बढ़ाना है, जब फिल्म में नायक मुस्लिम और नायिका को हिंदू दिखाया जाएगा तो इसी से दर्शक वर्ग की हिंदू लड़कियां प्रभावित होंगी और असल जिंदगी में भी ऐसे कदम उठाएंगी, कुछ समय पहले तक इस तरह की फिल्में बन रही थी, जिसमें पंडितों को घृणित भरी नज़र से दिखाया जाता था और मौलवी को सम्मान जनक तरह से दिखाया जाता था।”

एक पैटर्न बनता जा रहा है- मुस्लिम पुरुष, हिंदू महिला और बच्चा जो मुस्लिम नाम और पहचान के साथ बड़ा होता है। अगर ये वाकई ‘इंटरफेथ’ या ‘सेक्युलर’ शादी है तो उसमें बच्चों के नाम भी सांझी संस्कृति के क्यों नहीं होते? क्यों कभी कोई बच्चा राम, अर्जुन या विवेक नहीं बनता? क्यों हर बार जुनैद, तैमूर, इब्राहीम जैसे नाम चुने जाते हैं? इन सवालों को उठाते ही कुछ लोग तुरंत ‘लव-जिहाद’ का जिक्र करके बहस को बंद करना चाहते हैं, लेकिन क्या यह सच में कोई साजिश नहीं, बल्कि एक मानसिकता का हिस्सा है? अगर हिंदू महिलाएँ आधुनिक और आत्मनिर्भर हैं, तो उन्हें इस गहराई को क्यों नहीं समझना चाहिए? क्यों उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं होता कि उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक ऐसे मजहब में ढलेंगी जो उनकी संस्कृति और पहचान से बहुत अलग है? और क्या ये भी इत्तेफाक है कि ये घटनाएँ सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि बॉलीवुड और राजनीति जैसे प्रभावशाली क्षेत्रों में हो रही हैं , जहाँ इन संबंधों को “सेक्युलर मिसाल” के रूप में पेश किया जाता है और जनता को यही सिखाया जाता है कि यही आदर्श हैं?

यह सब देखते हुए ये सवाल उठाना बहुत स्वाभाविक है कि क्या यह सांस्कृतिक उपनिवेशवाद का एक नया रूप है? पहले विदेशी आक्रांता तलवार के बल पर संस्कृति और धर्म बदलते थे, आज वह काम रिश्तों, शादी और नामकरण जैसे नर्म तरीकों से किया जा रहा है। और यह सब खुलेआम हो रहा है, मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इसे प्यार, आधुनिकता और सेक्युलरिज्म का नाम देकर ढक देते हैं। लेकिन क्या अब समय नहीं आ गया कि इस पर खुल कर चर्चा हो? क्या अब भी हम चुप रहेंगे जब हमारी पहचान, हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएँ धीरे-धीरे एक विशेष दिशा में ढाली जा रही हैं?

इसलिए ये सवाल बार-बार पूछा जाना चाहिए ,अगर आपकी बीवियाँ हिंदू हैं, तो बच्चों का नाम सिर्फ मुस्लिम क्यों होता है? क्या यह सिर्फ इत्तेफाक है या फिर इसके पीछे कोई गहरी रणनीति और मानसिकता छिपी है? हमें इन सवालों से डरना नहीं चाहिए। यह नफ़रत नहीं है, यह सच को समझने का प्रयास है। अगर समाज ने इस पर अभी भी चुप्पी साधी, तो आने वाले वर्षों में हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान केवल किताबों और इतिहास में रह जाएगी।

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22 October 2025

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राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प
इतिहास

राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प

22 October 2025

गोरखपुर के पावन मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने यह कहा कि राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म को सबसे बड़ा झटका दिया है, तो यह...

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