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मक्का की ‘केई रुबात’ मिस्ट्री: वक्फ या परिवार का हक? भारत में भिड़े दो परिवार, सऊदी सरकार मौन

सऊदी अरब के मक्का में 50 साल पहले मस्जिद अल हरम के पास टूटा भारत के व्यापारी मयंकुट्टी केई का गेस्ट हाउस केई रुबात विवादों में आ गया है। आइये जानें क्या है इसका इतिहास?

Shyamdatt Chaturvedi द्वारा Shyamdatt Chaturvedi
9 June 2025
in चर्चित
Mecca KEYI Rubat Saudi Arabia

Mecca KEYI Rubat Saudi Arabia

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सऊदी अरब के मक्का में एक रहस्यमयी गेस्ट हाउस की कहानी सुर्खियां बटोर रही है। गेस्ट हाउस जिसे 1870 के दशक में भारतीय व्यापारी मयंकुट्टी केई ने मस्जिद अल हरम के पास बनाया था। इसे केई रुबात नाम दिया गया था। हालांकि, 1971 में उसे ध्वस्त कर दिया गया। बाद में इसके मुआवजे को लेकर इतिहास और विरासत की चर्चा शुरू हुई तो ये केई रुबात मिस्ट्री बन गया। आज के समय 1.4 मिलियन रियाल का मुआवजा लाखों में हो गया है।

50 साल बाद मुआवजे की राशि काफी बढ़ चुकी है। ऐसे में केई परिवार के दो धड़े आमने सामने आ गए हैं। यह मामला सिर्फ धन के दावे तक सीमित नहीं है। यह कानूनी उलझनों, वंशावली के साथ रुतबे की कहानी है। हालांकि, असली हकदार की पहचान को लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। आइये जानें आखिर क्या है इस गेस्ट हाउस की पूरी कहानी क्या है इसका इतिहास और विवाद?

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क्या है गेस्ट हाउस की कहानी?

उस समय सऊदी अरब अपेक्षाकृत गरीब देश हुआ करता था। भारतीय मुसलमान अक्सर भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए पैसे दान करते थे या बुनियादी ढांचे का निर्माण करते थे। 1870 के दशक में केरल के एक अमीर भारतीय व्यापारी मयंकुट्टी केई हुआ करते थे। उनका व्यापार मुंबई से लेकर पेरिस तक फैला हुआ था। उन्होंने ही केई रुबात नाम का गेस्ट हाउस बनाया था।

दावा किया जाता है कि केई रुबात मस्जिद अल हरम से कुछ ही कदम दूर था। यहां 22 कमरे और कई बड़े हॉल थे। इसका विस्तार करीब डेढ़ एकड़ में था। कहानियों में बताया जाता है कि मयंकुट्टी केई ने इसके लिए मालाबार (केरल) से लकड़ी मंगवाई थी। इसके संचालन के लिए उन्होंने मैनेजर भी यहीं से नियुक्त किया था।

50 साल पहले शुरु हुआ विवाद

ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब पहले काफी गरीब हुआ करता था। 20वीं सदी में तेल संपदा में उछाल आया। इस कारण यहां के विकास को दम मिला। नतीजा ये हुआ की मक्का को नया रूप दिया गया। इसी डेवलपमेंट के लिए केई रुबात को तीन बार ध्वस्त किया गया था। आखिरी बार 1970 के दशक की शुरुआत में इसके गिराए जाने की बात कही जाती है।

50 साल पहले यानी साल 1971 में मक्का का विकास हुआ तो इसे गिरा दिया गया। सऊदी प्रशासन ने इसके मुआवजे के तौर पर 1.4 मिलियन रियाल सरकारी खजाने में जमा कर दिए थे। हालांकि, उस समय गेस्ट हाउस के किसी वैध उत्तराधिकारी की पहचान नहीं हो सकी था। दशकों से राशि सऊदी सरकार के खजाने में जमा है। अब इसके अधिकार को लेकर दो परिवार दावा कर रहे हैं।

पेचीदा हो गया है केई रुबात का मामला

मामले पर नजर रखने वाले कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि संपत्ति वक्फ की थी। इस कारण वंशज इसकी देखरेख और संचालन तो कर सकते थे लेकिन उनके पास कोई मालिकाना अधिकार नहीं है। इसके उलट परिवार के कुछ सदस्य अब महंगाई के हिसाब से मुआवजे में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं। सऊदी में वक्फ संपत्तियों का संचालन करने वाले विभाग या सरकार ने भी कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे मामला और पेचीदा हो गया है।

मुआवजे को लेकर भ्रम कैसे आया?

भारत के केंद्रीय वक्फ परिषद के पूर्व सचिव बीएम जमाल के ने BBC से कहा है कि जेद्दा में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने उस समय सरकार को पत्र लिखकर मयंकुट्टी केई के कानूनी उत्तराधिकारी के बारे में जानकारी मांगी थी। हालांकि, मुझे लगता है कि ये जानकारी मैनेजर नियुक्त करने के लिए मांगी गई थी। लोगों ने इसे मुआवजे के पैसे देने का अधिकार समझ लिया था।

दो गुटों के बीच है विवाद

केई मयंकुट्टी की संपत्ति को लेकर दो पक्ष आमने सामने हैं। एक केई-मयंकुट्टी का पैतृक परिवार है। दूसरा अरक्कल (केरल) का एक शाही परिवार है जिसमें केई ने शादी की थी। इस कारण भी मामले की जटिलता बढ़ गई। क्योंकि, दोनों परिवार पारंपरिक रूप से मां के परिवार की विरासत को मानते हैं। इसे सऊदी कानून मान्यता नहीं देता है।

केई मयंकुट्टी का पैतृक परिवार: इनका दावा है कि मयंकुट्टी निःसंतान मर गए। इस कारण उनकी बहन के बच्चे मां के वंश की परंपरा के तहत उनके असली उत्तराधिकारी हैं।

अरक्कल (केरल) का शाही परिवार: उनकी एक बेटा और एक बेटी थी। इसलिए भारतीय कानून के तहत उनके बच्चे कानूनी उत्तराधिकारी होंने चाहिए। यानी मुआवजा उनके बच्चों या उनके बच्चों के बच्चों को मिलना चाहिए।

सऊदी सरकार का रुख भी साफ नहीं

अभी तक किसी भी पक्ष ने वंशावली को साबित किया है। दशकों तक इस मामले को भारत सरकार और केरल सरकार ने सुलझाने की कोशिश की है। हालांकि, इसकी कोई परिणाम नहीं निकला। खैर ये भी स्पष्ट नहीं है कि सऊदी सरकार राशि जारी करने को तैयार है या नहीं।

किस आधार पर किया गया दावा

जैसे-जैसे विवाद बढ़ता गया। कहानी में कई तरह के मोड भी आते रहे। साल 2011 में ये बात आई की मुआवजा लोगों में आने वाला है। इस खबर के बाद कन्नूर जिला कार्यालय में 2 हजार 500 से ज्यादा लोग दावा करने पहुंच गए थे। उन्होंने कुछ अजीब आधार पर अधिकार जताया था।

  • उनके पूर्वजों ने मयंकुट्टी को बचपन में पढ़ाया था।
  • उनके पूर्वजों ने गेस्ट हाउस के लिए लकड़ी मुहैया कराई थी।

विवाद के नाम पर हुई धोखाधड़ी

जब लाखों में मुआवजे की बात सामने आई तो कई लोगों ने इसे लूट का अवसर भी बना लिया। इसके बाद धोखाधड़ी का सिलसिला भी देखने को मिला था। साल 2027 में कुछ ठगों ने केई के वंशन होने का दावा किया और लोगों से पैसे ले लिया। उन्होंने लोगों को इस भ्रम में रखा की मुआवजा हमें मिलने वाला है। जब यह मिलेगा तो इसका हिस्सा आपको दिया जाएगा।

केई रुबात पर क्या चाहते हैं वंशज?

अब इस संपत्ति के विवाद को लेकर दो तरह के पक्ष आ रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि केई के मर्जी अनुसार एक गेस्ट हाउस बनाया जाए। वहीं कु लोग पूरा मुआवजा चाहते हैं। हालांकि, एक तीसरा पक्ष भी है जो साफ तौर पर कह रहा है कि अगर परिवार मयंकुट्टी केई के वंशज होने का प्रमाण भी दे देता है तो बिना दस्तावेज के उन्हें कुछ हासिल होने की संभावना नहीं है।

  • वंशज होने का दावा करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि सऊदी सरकार मुआवजे की राशि से एक गेस्ट हाउस बना दे। ऐसा करने से हज तीर्थयात्रियों को रुकने का स्थान मिल पाएगा। यही मयंकुट्टी केई भी चाहते थे। ऐसा करने से विवाद भी आसानी से सुलझ जाएगा।
  • दूसरी ओर कुछ वंशजों का कहना है कि गेस्ट हाउस निजी संपत्ति थी। इस कारण मुआवजा पूरी तरह से परिवार का है। मतलब साफ है कि वो मुआवजे की राशि को पूरा चाहते हैं।

ये भी पढ़ें: ‘खुदा पानी में नहीं है’… फिर मक्का का आब-ए-ज़मज़म क्या है फारूक अब्दुल्ला जी? महाकुंभ में आपको किसी ने नहीं बुलाया

पैसों से कई आगे का है विवाद

कन्नूर के मोहम्मद शिहाद ने अरक्कल परिवार पर किताब लिखी है। उन्होंने कहा कि ये विवाद सिर्फ पैसे का नहीं है। दोनों परिवारों पता है कि आसानी से पैसे नहीं मिलेगा। हालांकि, उनको ये भी पता है कि कम से कम इस परिवार और क्षेत्र के जुड़ाव को खुले तौर पर मान्यता लेने का अधिकार मिल जाएगा। मतलब साफ है कि केई मयंकुट्टी का सऊदी अरब में बना केई रुबात गेस्ट हाउस पैसों इतिहास, विरासत और कानूनी उलझनों के साथ-साथ अब वर्चस्व की लड़ाई बन गई है।

Tags: KE RubatKEYI RubatMeccaSaudi Arabiaकेई रुबातमक्कामस्जिद अल हरमसऊदी अरब
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