इन दिनों सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे वीडियो ज़बरदस्त वायरल हो रहे हैं, जिनमें फ्रांस की युवा महिलाएं पालतू सूअर लेकर मेट्रो, सड़कों और बाज़ारों में घूमती दिखाई दे रही हैं। यह कोई अजीबो-गरीब पेट-लव का मामला नहीं है, बल्कि दावा किया जा रहा है कि इन महिलाओं ने ये सूअर इसलिए पालना शुरू किया है ताकि मुस्लिम युवकों द्वारा की जाने वाली छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न से खुद को सुरक्षित रख सकें। वजह भी स्पष्ट है इस्लाम में सूअर को नापाक और हराम माना जाता है, इसलिए महिलाओं ने इसे एक ‘जीवित ढाल’ की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह नज़ारा जितना चौंकाने वाला है, उससे कहीं ज़्यादा चिंता की बात यह है कि एक आधुनिक, विकसित और तथाकथित प्रगतिशील देश में अब महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए धार्मिक प्रतीकों का सहारा लेने को मजबूर हो गई हैं।
इस घटनाक्रम को समझने के लिए हमें सिर्फ वीडियो तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उस यूरोप की आत्मा में झाँकना चाहिए जिसने बीते दो दशकों में अपने ही हाथों से अपने समाज को इस्लामी कट्टरता की भट्ठी में झोंक दिया। फ्रांस हो या स्वीडन, जर्मनी हो या ब्रिटेन हर जगह सेक्युलरिज़्म और मानवाधिकारों के नाम पर कट्टरपंथियों को पनाह दी गई। इन देशों ने यह सोचकर अपने दरवाज़े खोले थे कि वे दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाएंगे, लेकिन बदले में उन्हें मिला जनसंख्या जिहाद, सांस्कृतिक टकराव, और अंततः सामाजिक विघटन। और फ्रांस शरणार्थियों से प्रताड़ित देशों में आने वाले अग्रण्य देशों में से अव्वल है एक ऐसा देश जो अपने मूल्यों की रक्षा करने में विफल रहा और आज वहाँ की महिलाएं घर से बाहर निकलने से पहले इस बात की योजना बनाती हैं कि उनके साथ कौन सा जानवर होगा जो उन्हें सुरक्षित रख सके।
याद कीजिए 2023 के वे दंगे जब फ्रांस की सड़कों पर आग लगाई गई, दुकानों में लूटपाट हुई और सार्वजनिक सम्पत्तियाँ राख हो गईं। इस हिंसा के पीछे जिन चेहरों की पहचान हुई, वे उन्हीं मुस्लिम शरणार्थियों के थे जिन्हें कभी ‘सांस्कृतिक विविधता’ के नाम पर छाती से लगाया गया था। उसी समय एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें एक मौलाना खुलेआम यह एलान करता दिखा कि 2050 तक फ्रांस एक मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा और जेहाद के ज़रिये इस्लाम को पूरे यूरोप में फैलाया जाएगा। यह केवल बयान नहीं था, बल्कि उस सोच का परिचायक था जो पश्चिमी उदारवाद की नींव को चट कर रही है।
अब जब महिलाओं के हाथ में संविधान की किताब नहीं, बल्कि सूअर की रस्सी दिखाई देती है, तो यह सिर्फ एक मज़ाक नहीं बल्कि गहरी सामाजिक त्रासदी है। सवाल उठता है क्या ये वायरल वीडियो सच हैं? क्या फ्रांस की महिलाएं वाकई इस स्तर पर असुरक्षित हो चुकी हैं? क्या यह नया ट्रेंड पश्चिम के उस झूठे सेक्युलरिज़्म के मुंह पर एक तमाचा है, जो कट्टरपंथ के सामने घुटने टेक चुका है? यही जानने के लिए हमने इस पूरे मामले की तथ्यात्मक पड़ताल की है। तो तो आइये, तथ्यों की तह में उतरते हैं और समझने की कोशिश करते हैं की इन वायरल वीडियो की सच्चाई क्या है…
वायरल वीडियो के दावों की सच्चाई
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और स्क्रीनशॉट्स वायरल हुए हैं, जिनमें दावा किया गया कि फ्रांस की महिलाएं अब मुस्लिम पुरुषों की छेड़छाड़ से बचने के लिए पालतू सूअर पाल रही हैं और उन्हें सार्वजनिक परिवहन जैसे मेट्रो या बसों में साथ लेकर चल रही हैं। इन दावों में यह भी कहा गया कि “स्पेनिश मीडिया” ने इस प्रवृत्ति की पुष्टि की है। लेकिन जब एशिया फैक्ट-चेक लैब (Asia Fact Check Lab – AFCL) ने इन वायरल पोस्ट्स की जांच की, तो उन्हें इस संबंध में किसी भी स्पेनिश मीडिया रिपोर्ट का कोई प्रमाण नहीं मिला। यानी कि इस पूरे दावे को पुष्ट करने वाली कोई विश्वसनीय रिपोर्ट अस्तित्व में नहीं है।
In France, young women are starting to buy pet pigs to avoid being harassed by Muslim men on the street and on public transport. pic.twitter.com/nTUbHJoB4d
— Dr. Maalouf (@realMaalouf) June 11, 2025
AFCL की रिपोर्ट में आगे बताया गया कि वास्तव में जिस स्क्रीनशॉट को इन दावों का आधार बताया जा रहा था, उसकी रिवर्स इमेज सर्च करने पर यह सामने आया कि वह एक वीडियो से लिया गया अंश है, जिसे पहली बार 13 मार्च को एक रूसी भाषा के सोशल मीडिया अकाउंट ने पोस्ट किया था। दो दिन बाद, वही वीडियो एक चीनी सोशल मीडिया अकाउंट पर एडिटेड स्क्रीनशॉट के रूप में दिखा। वीडियो पर एक टेलीग्राम चैनल का वॉटरमार्क भी मौजूद था, लेकिन जांच में पाया गया कि वह चैनल अब हटाया जा चुका है। AFCL ने वीडियो की भाषा की पुष्टि करने के लिए एक फ्रांसीसी मूल भाषा बोलने वाले व्यक्ति से संपर्क किया, जिसने बताया कि वीडियो में महिला केवल इतना कहती है कि “यह एक जानवर है, इसके अधिकार हैं, और यह पट्टे से बंधा हुआ है।” वीडियो में मुसलमानों या इस्लाम से संबंधित कोई भी सीधा उल्लेख नहीं था, और उसकी लंबाई इतनी नहीं थी कि उसकी संपूर्ण पृष्ठभूमि को ठीक से समझा जा सके।
इसके अतिरिक्त, जब संबंधित कीवर्ड्स के माध्यम से सर्च किया गया तो न तो किसी स्पेनिश मीडिया और न ही किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रमुख मीडिया संस्थान की कोई ऐसी रिपोर्ट मिली जो इस बात की पुष्टि करती हो कि फ्रांस की महिलाएं सूअर पालकर मुस्लिम युवकों से बचने की कोशिश कर रही हैं। हाँ, यह ज़रूर सच है कि फ्रांस में कुछेक मामलों में सूअर का प्रतीक जानबूझकर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए इस्तेमाल किया गया है, लेकिन ऐसे कृत्य न केवल अत्यंत सीमित हैं बल्कि स्वयं फ्रांसीसी सरकार द्वारा कड़ी निंदा के पात्र भी बने हैं।
उदाहरण के लिए, दिसंबर 2024 में दक्षिणी फ्रांस के गार्ड इलाके के एक शहर पॉँ-साँत-एस्प्री (Pont-Saint-Esprit) में एक मस्जिद के बाहर सूअर का सिर रख दिया गया था। स्थानीय प्रशासन ने इस मामले में आपराधिक जांच शुरू की और वहां के मेयर वलेर सेगाल ने इस कृत्य को “समाज के हाशिए पर खड़े लोगों द्वारा की गई एक घिनौनी हरकत” करार दिया। ऐसे मामलों के बहाने पूरी मुस्लिम आबादी को निशाना बनाना या हर वायरल वीडियो को एक व्यापक सांस्कृतिक रुझान का प्रमाण मान लेना पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों के भी खिलाफ है।
इसी तरह का एक और उदाहरण 2019 का है जब एक फोटो वायरल हुई थी जिसमें दावा किया गया था कि हंगरी की सीमा पर मुस्लिम प्रवासियों को रोकने के लिए वहां के अधिकारी जानबूझकर सूअर पाल रहे हैं। लेकिन फ्रांस 24 की फैक्ट-चेक रिपोर्ट में साफ़ किया गया कि वह तस्वीर वास्तव में इटली के एक फार्म की थी और उस दावे से उसका कोई लेना-देना नहीं था। इन तमाम तथ्यों से एक बात स्पष्ट होती है कि सोशल मीडिया पर जो दिखता है, वह हमेशा हकीकत नहीं होता। फ्रांस में मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर जनाक्रोश और असुरक्षा की भावना चाहे जितनी भी सच्ची हो, लेकिन इन वायरल वीडियो को उस भावना का सटीक प्रतीक मान लेना फिलहाल तथ्यों के आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता।