अमेरिका खुद को दुनियाभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस फ्रीडम का मसीहा बुलाता है। हालांकि, उसका फंडा केवल विदेशों को कवर करने के लिए होता है। अब यूएस की पोल ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार के साथ हुई घटना ने खोलकर रख दी है। गनीमत रही कि वह रबर बुलेट थी। वरना अमेरिका की फ्रीडम ऑफ स्पीच का जनाजा वहीं उठ जाता। अमेरिका भारत समेत बाकी देशों को फ्रीडम ऑफ स्पीच पर ज्ञान देता फिरता है लेकिन अपने ही आंगन में क्या हो रहा है? अब उससे ये सवाल दुनिया पूंछ रही है।
क्या है मामला?
लॉस एंजिल्स प्रदर्शनों को कवर करती पत्रकार लॉरेन टोमासी को कैमरे के सामने रबर की गोली लगी। यह घटना ऐसे समय हुई जब टोमासी और उनका कैमरामैन शहर में हो रहे हिंसक प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। वीडियो में साफ दिख रहा है कि उसे पुलिस की गोली लगी है। इस घटना के बाद प्रदर्शनकारी पुलिस पर चिल्लाते हुए नजर आ रहा है। वो कह रहा है कि तुमने रिपोर्टर को गोली मार दी है।
मांगना चाहिए स्पष्टीकरण
नाइन न्यूज ने घटना की पुष्टि की है। उनकी ओर से बताया गया कि लॉरेन टोमासी को रबर की गोली लगी। लॉरेन और उनके कैमरा ऑपरेटर सुरक्षित हैं। हालांकि, इसके बाद भी वो घटनाओं को कवर करने का अपना महत्वपूर्ण काम जारी रखेंगे।
ऑस्ट्रेलिया के विदेश और व्यापार विभाग ने घटना की निंदा की है। विभाग की ओर से बयान जारी कर कहा गया कि सभी पत्रकारों को सुरक्षित रूप से अपना काम करने में सक्षम होना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया, मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
घटना की निंदा होनी चाहिए
द गार्जियन से ऑस्ट्रेलियाई ग्रीन्स सीनेटर सारा हैनसन-यंग ने इस गोलीबारी को चौंकाने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि इसकी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीस से आग्रह किया है कि वो अमेरिकी प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगें। क्योंकि, प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए मजबूत पिलर है।
अमेरिका की बात ही निराली है। यहां फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करने वाले खुद ही दमन के खेल में उतर जाते हैं। नाइन न्यूज की रिपोर्टर लॉरेन टोमासी अमेरिका की संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं। उन्होंने भले ही गोली लगने के बाद कहा कि ‘मैं ठीक हूं’ लेकिन यह घटना अमेरिका के उस दावे की हवा निकालने के लिए काफी है जिसमें वह खुद को प्रेस फ्रीडम का झंडाबरदार बताता है।
पहले भी हुई हैं घटनाएं
यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी पत्रकार के साथ अमेरिका में ऐसा हुआ है। इससे पहले भी फॉक्स न्यूज के क्रू को भी लॉस एंजिल्स से बाहर निकाल दिया गया था। ठीक एक दिन पहले ब्रिटिश फोटो जर्नलिस्ट निक स्टर्न भी घायल हो गया था। उसने द गार्जियन को स्टर्न ने बताया था कि शायद अधिकारियों द्वारा फ्लैश-बैंग ग्रेनेड और भीड़ नियंत्रण के लिए चलाई गई गोली उन्हें लगी थी।
यह दिखाता है कि जब फ्रीडम ऑफ स्पीच और प्रेस फ्रीडम की बात आती है तो अमेरिका ढोल पीटता है। वो दुनिया को ज्ञान देने की आदत है, लेकिन अपने ही गिरेबान में झांकने की उसे फुरसत नहीं है। ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका में फ्रीडम ऑफ स्पीच और प्रेस फ्रीडम है भी या ये महज एक जुमला है?