तमिलनाडु के सबसे प्रभावशाली परिवारों में शामिल मारन बंधु कलानिधि और दयानिधि राजनीति, मीडिया, सिनेमा और खेल जगत में गहरी पकड़ रखते हैं। स्व. डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि के प्रपौत्र होने के नाते, इनका उदय द्रविड़ आंदोलन की राजनीति से गहराई से जुड़ा रहा है। इनके पिता मुरासोली मारन डीएमके के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रहे, जिन्होंने इनके राजनीतिक और कारोबारी सफर की नींव रखी।
मीडिया और राजनीति में एक शक्तिशाली उदय: मारन भाइयों का सफर
पिछले तीन दशकों में, मारन भाइयों ने भारत के सबसे प्रभावशाली मीडिया घरानों में से एक खड़ा किया। इस यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं 60 वर्षीय कलानिधि मारन, जो सन ग्रुप के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
उनकी मीडिया कंपनी दक्षिण भारत के टेलीविज़न बाज़ार में सबसे बड़ी है, जिसमें चार भाषाओं में 33 चैनल हैं और ये चैनल 9.5 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचते हैं। सन ग्रुप न केवल टेलीविज़न चैनलों का सबसे बड़ा नेटवर्क संचालित करता है, बल्कि डायरेक्ट-टू-होम सेवा, 45 एफएम रेडियो स्टेशन, दो दैनिक अखबार और छह पत्रिकाएं भी चलाता है।
एक दशक पहले, कलानिधि मारन ने आईपीएल की हैदराबाद फ्रेंचाइज़ी खरीदी और उसका नाम रखा सनराइजर्स हैदराबाद।
दूसरी ओर, दयानिधि मारन ने संसद में चुने जाने के बाद राजनीति में तेज़ी से उभरते हुए 2004 में यूपीए सरकार में केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री का पद संभाला। उनकी राजनीतिक ताकत और कलानिधि द्वारा नियंत्रित मीडिया साम्राज्य के चलते, मारन भाइयों का प्रभाव डीएमके परिवार में कई बार बाकी सदस्यों से अधिक महसूस किया गया।
डीएमके की मीडिया शाखा: मारन बंधु और करुणानिधि परिवार
दयानिधि और कलानिधि मारन, दिवंगत एम. करुणानिधि (कलाईग्नर) के प्रपौत्र हैं। उनके पिता मुरासोली मारन न केवल डीएमके के वरिष्ठ नेता थे, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1999–2002) में केंद्रीय मंत्री भी रहे। इस पारिवारिक विरासत ने मारन भाइयों को तमिलनाडु की राजनीति और मीडिया में एक शक्तिशाली स्थान दिलाया।
राजनीति और मीडिया के इस तालमेल ने डीएमके की विचारधारा को राज्यभर में मजबूत तरीके से फैलाने में मदद की, हालांकि इस पर पक्षपात और प्रचारवाद के आरोप भी लगे।
2007: ‘दिनाकरन’ अख़बार जलाया गया
मारन परिवार और करुणानिधि के मुख्य परिवार के बीच का तनाव 2007 में सामने आया, जब कलानिधि मारन के स्वामित्व वाले ‘दिनाकरन’ अखबार में एक जनमत सर्वेक्षण छपा। इस सर्वे में पूछा गया था कि करुणानिधि के बाद डीएमके का उत्तराधिकारी कौन होना चाहिए, परिणाम में एम.के. स्टालिन को उनके बड़े भाई एम.के. अज़़गिरी से ज़्यादा समर्थन मिला। इससे अज़़गिरी के समर्थक भड़क उठे और उन्होंने मदुरै स्थित ‘दिनाकरन’ कार्यालय पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया। इस घटना में तीन कर्मचारियों की मौत हो गई। यह घटना डीएमके के पहले परिवार के भीतर गहरे मतभेदों को उजागर करने वाली थी।
इसके बाद दयानिधि मारन को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया और सन टीवी नेटवर्क पर करुणानिधि परिवार से जुड़ी खबरों पर अनौपचारिक रोक लगा दी गई। हालांकि कुछ वर्षों बाद यह विवाद सुलझ गया, लेकिन तनावपूर्ण संबंधों की छाया बनी रही।
एयरसेल-मैक्सिस घोटाला: मारन परिवार की भूमिका
दयानिधि मारन का नाम एयरसेल-मैक्सिस टेलीकॉम घोटाले में सामने आया, जो 2004 से 2007 तक उनके केंद्रीय मंत्री रहते हुए हुआ। आरोप है कि उन्होंने एयरसेल के मालिक सी. सिवशंकरण पर दबाव डालकर उसकी हिस्सेदारी मलेशियाई कंपनी मैक्सिस को बेचने को मजबूर किया। इसके बदले में, मैक्सिस ने कथित रूप से कलानिधि मारन के स्वामित्व वाली सन डायरेक्ट में ₹742 करोड़ का निवेश किया। यह निवेश एस्ट्रो के माध्यम से हुआ, जो मैक्सिस से जुड़ी कंपनी है, और इस लेन-देन को quid pro quo यानी लेन-देन की साजिश माना गया।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में जांच शुरू की। 2011 में सीबीआई ने मारन भाइयों के खिलाफ मामला दर्ज किया। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आरोप तय किए गए। हालांकि, मारन भाइयों ने इन आरोपों को राजनीतिक षड्यंत्र बताया और किसी भी गलत काम से इनकार किया। 2018 में विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें आरोपमुक्त कर दिया, लेकिन इस मामले की कानूनी छाया अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
साम्राज्य में दरार: कानूनी जंग की शुरुआत
हाल के घटनाक्रम यह संकेत देते हैं कि दयानिधि और कलानिधि मारन के बीच तनाव अब खुलकर सामने आ चुका है। दयानिधि मारन ने अपने बड़े भाई कलानिधि को कानूनी नोटिस भेजा है, जिसमें 2003 से शुरू हुए कथित धोखाधड़ी के मामलों का उल्लेख है।
इन आरोपों के अनुसार, कलानिधि ने अपने पिता मुरासोली मारन के कोमा में होने के दौरान कंपनी की शेयरधारिता को एकतरफा तरीके से बदलते हुए सन टीवी नेटवर्क लिमिटेड पर अवैध नियंत्रण हासिल कर लिया।
यह विवाद अब केवल पारिवारिक रहस्य नहीं रह गया है, बल्कि सार्वजनिक रूप से करोड़ों की संपत्ति, विरासत और सत्ता को लेकर एक बड़ी लड़ाई बन चुका है। हालांकि इसके सभी परिणाम अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन यह भारत के सबसे मजबूत मीडिया घरानों में से एक के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।