आज से ठीक 78 साल पहले 15 जून 1947 का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों में एक ऐसी तारीख के तौर पर दर्ज हुआ जिसने न केवल देश की भौगोलिक सीमाओं को हमेशा के लिए बदल दिया बल्कि लाखों जिंदगियों पर भी इसकी गहरी छाप पड़ी। यह वह दिन था जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन की माउंटबेटन योजना के तहत भारत के विभाजन को ऐतिहासिक मंजूरी दी। यह सिर्फ एक राजनीतिक फैसला नहीं था बल्कि उस गहरे दर्द का प्रतीक बन गया जिसने भारत और पाकिस्तान के रूप में दो नए राष्ट्रों को जन्म दिया।
विभाजन का कड़वा सच
1947 का वह दौर आज़ादी की उम्मीद से भरा था। ब्रिटिश हुकूमत अपने अंतिम चरण में थी और भारत का सदियों पुराना आजादी का सपना साकार होने ही वाला था। लेकिन इस आजादी की एक भारी कीमत थी-देश का विभाजन। ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा प्रस्तावित योजना में भारत को दो हिस्सों भारत और पाकिस्तान में बांटने की बात कही गई थी।
कांग्रेस के लिए इस योजना को स्वीकार करना आसान नहीं था। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कद्दावर नेताओं के सामने एक बेहद कठिन विकल्प था। उनके सामने दो विकल्प थे देश को बांटकर कर त्वरित आजादी हासिल की जाए या फिर सांप्रदायिक हिंसा और अस्थिरता के गहरे दलदल में और लंबे समय तक फंसा रहा जाए।
कांग्रेस का कठोर निर्णय और असहनीय दर्द
कांग्रेस अधिवेशन का माहौल बेहद गंभीर और तनावपूर्ण था। नेताओं के बीच गहन विचार-विमर्श हुए। महात्मा गांधी विभाजन के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने इसे देश का विच्छेद कहकर अपना दुख व्यक्त किया। लेकिन पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और तनाव ने कांग्रेस को यह कठोर निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग अपनी अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग पर अडिग थी। ऐसे में कांग्रेस को यह मानना पड़ा कि देश को और रक्तपात से बचाने का एकमात्र रास्ता विभाजन ही है।
आजादी की सुबह दिखा विभाजन का जख्म
भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 तय हुई। लेकिन यह मंजूरी केवल कागजों पर लिया गया एक निर्णय भर नहीं थी। इसके भीषण परिणाम हुए। लाखों लोग बेघर हुए, हजारों ने अपनी जान गंवाई और सांप्रदायिक दंगों ने देश के कई हिस्सों को झकझोर कर दिया। पंजाब और बंगाल में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया, बल्कि इसके दुष्परिणाम भारत आज तक भुगत रहा है।
आज जब हम इस ऐतिहासिक घटना को याद करते हैं तो यह हमें उन बलिदानों की याद दिलाता है जिन्होंने आज के भारत को आकार दिया। यह वह समय था जब देश ने एक साथ आजादी का जश्न मनाया और विभाजन का दर्द सहा। इतिहास का यह मोड़ हमें एकजुटता, सहिष्णुता और शांति के महत्व को सिखाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी आजादी की कीमत कितनी भारी थी और इसे सहेज कर रखना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।