भारत में एलन मस्क की कंपनी कंपनी स्पेसएक्स इंटरनेट सेवा देने के लिए लाइसेंस मिल गया है। जल्द वो स्टारलिंक सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सर्विस देने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच एक रिपोर्ट सामने आई है कि एलन मस्क की कंपनी के सेटेलाइट लगातार अंतरिक्ष से गिर रहे हैं। नए विश्लेषण से पता चला है कि कंपनी ने पांच साल में करीब 500 उपग्रह खो दिए हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
अंतरिक्ष पर सूर्य की बढ़ती गतिविधि पृथ्वी के उपग्रहों, खासकर स्पेसएक्स के स्टारलिंक के लिए मुसीबत बन गई है। जैसे-जैसे सूर्य अपने 11 साल के चक्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच रहा है बड़ी संख्या में उपग्रह अपनी कक्षा से भटक कर वापस पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर रहे हैं। आइये जानें क्या है इसके पीछे का पूरा विज्ञान?
एलन मस्क की स्पेसएक्स खो रही स्टारलिंक सेटेलाइट
स्पेसएक्स के स्टारलिंक उपग्रहों का मुख्य लक्ष्य दूरदराज के क्षेत्रों में भी इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराना है। इनकी लाइफ आमतौर पर पांच साल के आसपास होती है। इसके बाद वो धरती के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करते हैं और जल जाते हैं। स्पेसएक्स ने पिछले पांच सालों में 500 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह खोए हैं। 2024 में आए सबसे बड़े सौर तूफान के कारण तो लॉन्च होने के कुछ ही दिनों बाद 42 स्टारलिंक उपग्रहों नष्ट हो गए थे। जनवरी 2025 में अकेले 120 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह जल गए हैं। उन दिनों आकाश में आतिशबाजी जैसा माहौल देखने को मिला था।
- स्पेसएक्स के स्टारलिंक ने अबतक 8,873 उपग्रह लॉन्च किए हैं।
- अभी इसमें से महज 7,669 काम कर रहे हैं।
- पिछले 5 साल में 500 से अधिक उपग्रह नष्ट हो गए हैं।
वैज्ञानिक स्पेसएक्स के स्टारलिंक उपग्रह संचालन को सौर मंडल पर प्रभावों के विश्लेषण करने के लिए अच्छा उदाहरण मान रहे हैं। वैज्ञानिक स्टारलिंक के कक्षीय डेटा का उपयोग करके तूफानों के प्रभावों की पहचान कर रहे हैं। हालांकि, इससे भले ही तूफान और उसके प्रभाव पता चल जाते हैं लेकिन ये काफी खतरनाक भी है।
नासा के अध्ययन से हुआ खुलासा
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक डेनी ओलिवेरा ने एक अध्ययन किया है। इसमें साल 2020 से 2024 के बीच गिरे 523 स्टारलिंक सेटेलाइट का विश्लेषण किया गया। इसमें पता चला कि सूर्य के सौर चक्र में बदलाव से उत्पन्न भू-चुंबकीय तूफानों ने वायुमंडल में ड्रैग को काफी बढ़ा दिया है। इससे उपग्रह तेजी से पृथ्वी की ओर खिंच रहे हैं। ऐसा सौर चक्र में बदलाव के कारण हो रहा है। नासा की टीम शोध पत्र भी प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि वर्तमान सौर चक्र की गतिविधि का स्टारलिंक पर प्रभाव पड़ रहा है।
सौर चक्र और पृथ्वी पर प्रभाव
सौर चक्र या सोलर साइकल सूर्य की गतिविधि में होने वाला परिवर्तन है। यह आमतौर पर 11 साल में होता है। हालांकि, यह 9 से 14 साल के बीच भी हो सकता है। इससे सूर्य के ध्रुवों में चुंबकीय उलटफेर होता है। इसकी पहचान सनस्पॉट, कोरोनल मास इजेक्शन से होती है। यह चक्र सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र को भी बदल देता है। इसका अधिक प्रभाव तब होता है जब ध्रुव पलटते हैं।
सूर्य में या उसके आसपास बढ़ी गतिविधि पृथ्वी पर कई तरह से असर डालती है। सौर तूफान के कारण सौर कण धरती के वायुमंडल अरोरा बनाते हैं। इस सौर गतिविधि के कारण ऊपरी वायुमंडल गर्म होने लगता है। इससे निचली पृथ्वी कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष यानों का धरती की ओर खिंचाव बढ़ जाता है। इस कारण ये उपग्रह अपनी कक्षा से भटक जाते हैं। उन्हें अपने रास्ते पर बनाए रखने के लिए भारी मशक्कत करनी पडती है।
दुनिया के लिए खतरा
पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों की बढ़ती संख्या कई चुनौतियां भी खड़ी कर रही है। इससे खगोलीय निगरानी में समस्या हो रही है। क्योंकि, उपग्रह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर रहे हैं। इससे वैज्ञानिक तारों को देखने में असमर्थ होते जा रहे हैं। इसके अलावा मानव निर्मित उपग्रहों यानी सेटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष मलबे का भी ढेर बना रहे हैं।
भारत में शुरू होने वाली है सर्विस
बता दें एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स भारत में अपनी स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शुरू करने की तैयारी में है। पिछले हफ्ते ही कंपनी को संचालन शुरू करने के लिए टेलीकॉम डिपार्टमेंट से लाइसेंस मिला है। रिपोर्ट के अनुसार, अब स्टारलिंक अगले दो महीनों के भीतर भारत में अपनी सेवाएं शुरू कर देगा। बताया जा रहा है कि कंपनी कीमतों का खाका तैयार कर लिया है। हालांकि, अभी इसका खुलासा नहीं किया गया है।