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ज़ोहरान ममदानी: भारत और हिंदुओं को बदनाम करने वाला क्यों बन गया वामपंथियों का नया नायक?

मोदी-विरोध में कुछ वामपंथी इतने अंधे हैं कि देश की छवि को नुकसान पहुंचाने वालों को भी अपने लिए 'मसीहा' मान लेते हैं, ममदानी की अमेरिकी राजनीति में मामूली कामयाबी को मोदी की वैचारिक हार बताकर ये वर्ग खुद को बेनकाब कर रहा है

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
27 June 2025
in चर्चित, समीक्षा
ज़ोहरान ममदानी (Photo - X/@ZohranKMamdani)

ज़ोहरान ममदानी (Photo - X/@ZohranKMamdani)

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न्यूयॉर्क सिटी के मेयर पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के प्राइमरी चुनाव में ज़ोहरान ममदानी ने एंड्रयू कुओमो को हरा दिया है, यानि अब वे इस चुनाव के लिए पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार बन गए हैं। अमेरिका की राजनीति में ऐसी प्राइमरी जीतें आम होती हैं लेकिन ममदानी की उम्मीदवारी फाइल होने के बाद भारत में वामपंथियों का एक वर्ग इसे मोदी-विरोध की वैश्विक ‘विजयगाथा’ बनाने पर तुला हुआ है। इन लोगों के ट्वीट्स देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ममदानी ने प्राइमरी चुनाव नहीं जीता है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनावों में हरा दिया है। ममदानी को सुर्खियों में लाने की वजह है उनके नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिए गए राजनीतिक बयान। लेकिन ममदानी केवल मोदी के विरोधी नहीं हैं बल्कि वे भारत के विरोध में भी हैं।

अरफा और राणा अयूब जैसे लोग कर रहे हैं समर्थन

एक कथित पत्रकार हैं अरफा खानम शेरवानी। शेरवानी का कहना है कि ममदानी की जीत ऐसी है जैसे राहुल गांधी या अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को हरा दिया हो। या कोई डोनाल्ड ट्रंप को हरा दे। लेकिन वे ये भूल गई कि ये ऐसा है जैसे राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से मेयर का टिकट मिल जाए या केजरीवाल को आम आदमी पार्टी (AAP) की तरफ से मेयर का टिकट मिल जाए।

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एक और कथित पत्रकार हैं राणा अयूब, वे गुजरात दंगों में पीएम मोदी की भूमिका को जबरन घसीटने के लिए जानी जाती हैं। काश पटेल जब FBI के डायरेक्टर बने तब का अयूब का एक ट्वीट इन दिनों चर्चा में है। उन्होंने लिखा था, “जो लोग सिर्फ काश पटेल के गुजराती सरनेम की वजह से उनको बढ़ावा दे रहे हैं, उन्हें थोड़ा शांत होना चाहिए और ज़मीन पर आ जाना चाहिए। खुद को शर्मिंदा मत करो, पहले थोड़ा पढ़-लिख लो, फिर खुशी मनाओ।” अब वक्त बीत गया और बारी आई ममदानी की जीत की तो अयूब साहिबा अब खुशी-खुशी नाच रही हैं। 

अब अयूब साहिबा इसमें नई राजनीति देख रही हैं, अब उन्होंने एक X पोस्ट में कहा है, “जोहरन ममदानी इस बात का सबूत हैं कि एक नई तरह की राजनीति भी मुमकिन है, ऐसी राजनीति जिसमें आप अपने सिद्धांतों से समझौता किए बिना और सामाजिक न्याय की लड़ाई जारी रखते हुए भी चुनाव जीत सकते हैं।” कई नाम वालें हैं तो कई बेनामी हैंडल्स भी हैं जो ममदानी की इस उम्मदीवारी से खुश हैं। ताली बजा रहे हैं, कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि यह ‘संघियों के लिए एक और झटका’ है। 

ममदानी की जीत से कांग्रेस में भी जश्न का माहौल है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह कांग्रेस को ममदानी से चुनाव प्रचार का तरीका सीखने की बात कह रहे हैं। वहीं, कांग्रेस की प्रवक्ता लावन्या बलाल जैन कह रही हैं, “संघियों को न्यूयॉर्क के मेयर पद के उम्मीदवार ममदानी से परेशानी है क्योंकि उन्होंने मोदी को युद्ध अपराधी कहा है।” लेकिन क्या बात केवल मोदी विरोध की ही है? क्या ममदानी ने केवल मोदी का विरोध किया है, गुजरात दंगों को लेकर ही सवाल उठाए हैं? बात इससे बड़ी है, वे हिंदुओं के खिलाफ भी अभियान में शामिल हुए हैं, वे भारत विरोधी तबके के पोस्टर बॉय हैं, उन पर आतंकवाद से जुड़े मामलों में दोषी ठहराए गए लोगों के साथ खुलकर एकजुटता भी आरोप है।

आतंकियों के साथ सांठ-गांठ के आरोप

ममदानी पर आंतिकयों के साथ सांठ-गांठ के आरोप किसी ‘संघी संस्था’ ने नहीं लगाया है बल्कि ये आरोप लगाया है, अमेरिकी संसद के सदस्य एंडी ऑगलस ने, उन्होंने अटर्नी जनरल पाम बॉन्डी को एक पत्र लिखकर ये आरोप लगाया है। इस पत्र में ऑगलस ने कहा है, “मेयर पद के उम्मीदवार जोहरन ममदानी ने अमेरिका की नागरिकता मिलने से पहले आतंकवाद से जुड़े मामलों में दोषी ठहराए गए लोगों के साथ खुलकर एकजुटता दिखाई थी।” उन्होंने आगे कहा, “उन्होंने एक रैप गीत में कहा था-‘Free the Holy Land Five / My guys’।” ऑगलस इस पत्र में लिखते हैं, “Holy Land Foundation को 2008 में हमास (जो अमेरिका द्वारा एक विदेशी आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित है) को सामग्री सहयोग देने के लिए दोषी ठहराया गया था। ममदानी द्वारा इस संस्था के दोषी नेताओं को “मेरे लोग” कहकर संबोधित करना, यह संकेत देता है कि कहीं वे खुद ऐसे विचारों या संबंधों से जुड़े तो नहीं थे, जिनका उन्होंने नागरिकता प्रक्रिया के दौरान खुलासा नहीं किया।”

भारत विरोधी हैं ममदानी!

ममदानी ने पीएम मोदी के विरोध में तो बातें कही ही हैं, साथ ही उन पर भारत के खिलाफ प्रचार करने और हिंदू समुदाय को निशाना बनाने के आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ममदानी की तीखी आलोचना करते हुए कहा है, “जब जोहरन ममदानी अपना मुंह खोलते हैं तो पाकिस्तान की PR टीम छुट्टी पर चली जाती है। ऐसे ‘मित्रों’ के रहते भारत को दुश्मनों की जरूरत नहीं, जो न्यूयॉर्क से खड़े होकर झूठी कहानियां चिल्ला-चिल्ला कर सुनाते हैं।”

खासकर हिंदूफोबिया को लेकर उनकी टिप्पणियां और गतिविधियां लगातार आलोचना के घेरे में रही हैं। साल 2020 में उन्होंने राम मंदिर निर्माण के विरोध में न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर पर एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। इस दौरान उन्होंने खुले मंच से कहा, “मैं आज भाजपा सरकार और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के खिलाफ यहां हूं, जो अब उसी स्थान पर मंदिर बनवा रही है।” यह विरोध प्रदर्शन खालिस्तानी समर्थकों के साथ मिलकर किया गया था। खालिस्तानी के समर्थन का सीधा सा अर्थ है कि आप भारत के विरोधियों के साथ मिले हुए हैं।

पीएम मोदी के विरोध में अंधे ममदानी यहां तक दावा करते हैं कि मोदी ने गुजरात के मुस्लिमों का सफाया कर दिया। लेकिन तथ्य इसके विपरित हैं। US Religion Census की 2022 की रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में 45 लाख मुस्लिम हैं। वहीं, जहां से ममदानी हिंदुओं के सफाए की बात कर रहे हैं उस गुजरात में मुस्लिमों की संख्या 2011 में करीब 59 लाख थी। गुजरात के मुस्लिम कहीं से भागकर, छिपकर नहीं आए हैं बल्कि उसी राज्य में दशकों से रह रहे हैं।

ममदानी की फंडिंग को लेकर भी आरोप हैं, The Washington Free Beacon की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ममदानी को हिंदू विरोधी संस्था The Council on American-Islamic Relations (CAIR) से खूब पैसा मिल रहा है। यह संस्था हिंदुओं का तो विरोध करती ही है, साथ ही इज़रायल की भी विरोधी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल CAIR द्वारा शुरू किए गए Unity and Justice Fund  ने ‘New Yorkers for Lower Costs’ नाम के PAC को 1 लाख डॉलर (100,000 डॉलर) का दान दिया है। यह PAC जोहरन ममदानी का सबसे बड़ा समर्थक है। चुनावी रिकॉर्ड के मुताबिक, यह पैसा दो हिस्सों में दिया गया। पहला दान 30 मई को 25,000 डॉलर का था। दूसरा दान 16 जून को 75,000 डॉलर का किया गया।

भारत के कथित बुद्धिजीवी ममदानी प्रेम में हैं!

ममदानी भारत के नागरिक नहीं हैं, उनका कोई पारिवारिक या राजनीतिक जुड़ाव भारत की जनता या व्यवस्था से नहीं है। इसके बावजूद, भारत में कुछ कथित ‘बुद्धिजीवी’ उन्हें लेकर ऐसे उत्साहित हो गए जैसे भारत में ही कोई क्रांतिकारी बदलाव आ गया हो। क्यों? क्योंकि उन्होंने मोदी की आलोचना की थी। यह कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि भारत में एक खास विचारधारा से जुड़े लोग हर उस विदेशी चेहरे को समर्थन देने लगते हैं जो मोदी या भारत सरकार की आलोचना करता है, चाहे वह आलोचना तथ्यों पर आधारित हो या नहीं। चाहे रिहाना का किसान आंदोलन पर ट्वीट हो, चाहे ग्रेटा थनबर्ग की टूलकिट हो या फिर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री, मोदी-विरोध में डूबे इन लोगों ने कभी भी तथ्यों की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की।

इनका उद्देश्य सिर्फ़ इतना होता है कि अगर कोई मोदी को निशाना बना रहा है, तो वो ‘सच बोल रहा है’ वो मसीह है और अगर कोई मोदी का समर्थन कर रहा है, तो ‘भक्त’ है। यही वजह है कि जब भारत G20 की सफल अध्यक्षता करता है, ISRO चंद्रयान-3 को चांद पर उतारता है, या भारत वैश्विक स्तर पर सम्मान हासिल करता है तो ये वर्ग चुप हो जाता है। पर जैसे ही किसी बाहरी मंच से मोदी की आलोचना होती है, ये लोग ऐसे सक्रिय हो जाते हैं मानो यही ‘लोकतंत्र का असली चेहरा’ हो।

सच्चाई ये है कि मोदी से असहमति रखना लोकतंत्र का हिस्सा हो सकता है, लेकिन भारत से असहमति रखना और उसके विरोधियों को महिमामंडित करना देशद्रोह के समान है। क्या आप ऐसे लोगों को ‘प्रगतिशील विचारक’ मानेंगे जो देश के विरोधियों को सिर्फ इसलिए सर पर बिठा लेते हैं क्योंकि उन्हें मोदी से चिढ़ है या आप ऐसे भारत का समर्थन करेंगे, जो राजनीतिक असहमति के बावजूद अपनी संप्रभुता, सम्मान और आत्मनिर्भरता पर समझौता नहीं करता?

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