पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक, ताहव्वुर हुसैन राणा जिस पर आरोप है कि उसने 2008 के मुंबई आतंकी हमलों की योजना बनाने और उसे अंजाम तक पहुँचाने में मदद की लेकिन उसने ताज होटल में AK-47 लेकर हमला नहीं किया, न ही कैफे लियोपोल्ड में गोलीबारी की। करीब 16 साल बाद, अब आखिरकार वह भारत में अदालत का सामना कर रहा है। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, जिसे अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 4 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया, राणा को मई 2025 में अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया। भारत आने के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 9 जुलाई को उसके खिलाफ एक अतिरिक्त आरोप पत्र दाखिल किया है।
इसमें राणा पर लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के आतंकियों, डेविड कोलमैन हेडली (जिसे दाऊद गिलानी के नाम से भी जाना जाता है) और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों से जुड़े लोगों के साथ मिलकर हमलों की साजिश रचने का आरोप है।
सिर्फ सहयोगी नहीं, साजिश में भी शामिल था राणा
राणा पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर रह चुका है और बाद में उसने अमेरिका में इमीग्रेशन सर्विस का बिज़नेस शुरू किया। जांच एजेंसियों का कहना है कि उसकी शिकागो स्थित कंपनी का इस्तेमाल हेडली को भारत में रेकी करने और खुद को वैध दिखाने के लिए किया गया। हेडली ने अमेरिकी कोर्ट में यह स्वीकार किया था कि उसने राणा की मदद से मुंबई के कई ठिकानों की रेकी की थी, जिनमें ताज होटल और चाबड हाउस शामिल हैं।
देर से सही, लेकिन न्याय की उम्मीद ज़िंदा
राणा को भारत लाने में भले ही वर्षों लग गए, लेकिन मई 2025 में उसकी भारत वापसी इस केस में एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। यह वही केस है जिसमें 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए, लेकिन न्याय की प्रक्रिया अब तक अधूरी रही। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने राणा की न्यायिक हिरासत 13 अगस्त तक बढ़ा दी है। इसी दिन विशेष NIA जज चंद्रजीत सिंह उसके खिलाफ दाखिल की गई नई चार्जशीट पर विचार करेंगे। इस चार्जशीट में गिरफ्तारी मेमो, जब्ती रिकॉर्ड और प्रत्यर्पण के बाद लिए गए आवाज और हस्तलिपि नमूनों जैसी प्रक्रिया संबंधी जानकारियाँ शामिल हैं।
राणा ने कोर्ट से अपने परिवार से नियमित फोन पर बात करने की अनुमति मांगी है। अब तक उसे सिर्फ एक बार, 9 जून को तिहाड़ जेल की निगरानी में कॉल करने की इजाज़त दी गई थी। इस पर कोर्ट 15 जुलाई को सुनवाई करेगा।
इस मामले की अहमियत क्यों है?
यह नई चार्जशीट भले ही प्रक्रियात्मक हो, लेकिन यह राणा के भारत आने के बाद पहली बार कोई औपचारिक न्यायिक कदम है। NIA ने पहली चार्जशीट दिसंबर 2011 में दाखिल की थी, लेकिन अब भारत ने इस केस को आगे बढ़ाने का स्पष्ट इरादा दिखा दिया है।
यह याद रखना जरूरी है कि 26/11 के हमले कोई अचानक हुई हिंसा नहीं थी, यह राज्य प्रायोजित आतंकवाद का एक सुनियोजित, सैन्य रणनीति जैसा हमला था। राणा पर आरोप है कि उसने अपने संसाधनों और नेटवर्क के ज़रिए आतंकियों को भारत में निशाने तय करने और हमले की तैयारी करने में मदद दी।
न्याय में देरी ज़रूर हुई, लेकिन इंसाफ भूला नहीं गया
ताहव्वुर राणा को भारत लाने में एक दशक से ज़्यादा लग गया, यह अंतरराष्ट्रीय कानून, कूटनीतिक बातचीत और वैश्विक न्याय प्रणाली की जटिलताओं को दिखाता है। लेकिन अब जब राणा भारत में है, तो भारतीय एजेंसियों और अदालतों की ज़िम्मेदारी है कि वह बिना किसी देरी और दबाव के निष्पक्ष सुनवाई करें।
यह मुकदमा 26/11 के पीड़ितों के दर्द को खत्म नहीं कर सकता, लेकिन यह ज़रूर बता सकता है कि भारत आतंक को न तो भूलता है और न ही माफ करता है, चाहे न्याय में जितना भी समय लग जाए।