फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गुरुवार को कहा कि उनका देश सितंबर में संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान औपचारिक रूप से फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देगा। फ्रांस का यह बड़ा कदम होगा, क्योंकि फ्रांस इस तरह की घोषणा करने वाला सबसे शक्तिशाली यूरोपीय राष्ट्र हो जाएगा।
न्यूज एजेंसी एएफपी के अनुसार, कम से कम 142 देश अब फिलिस्तीनी देश को मान्यता देते हैं या मान्यता देने की योजना बना रहे हैं। हालांकि इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका इस कदम का कड़ा विरोध कर रहे हैं। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के फैसले की निंदा की है। अमेरिका ने भी फ्रांस के इस फैसले की कड़ी निंदा की है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की इमैनुएल मैक्रों की योजना को दृढ़ता से खारिज करता है। यह लापरवाह निर्णय केवल हमास के प्रॉपगेंडा को बढ़ावा देता है और शांति को बाधित करता है। यह 7 अक्टूबर के पीड़ितों के चेहरे पर एक तमाचा है।”
फिलिस्तीन को मान्यता क्यों दे रहा फ्रांस?
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने फैसले का ऐलान करते हुए गुरुवार को अपने आधिकारिक X अकाउंट पर लिखा, “आज की तत्काल आवश्यकता गाजा में युद्ध समाप्त करने और नागरिक आबादी को बचाने की है.” उन्होंने तत्काल युद्ध विराम, सभी बंधकों की रिहाई और गाजा के लोगों को बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मैक्रों ने फ्रांस द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देने के पीछे के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए कहा, “हमें फिलिस्तीन का निर्माण करना चाहिए, इसकी व्यवहार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसके विसैन्यीकरण को स्वीकार करके और इजरायल को पूरी तरह से मान्यता देकर, यह मिडिल ईस्ट में सभी की सुरक्षा में योगदान दे।”
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को लिखे एक औपचारिक पत्र में, मैक्रों ने कहा कि फिलिस्तीनी लोगों की सही जरूरतों को पूरा करने, आतंकवाद और सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करने समेत इजरायल और पूरे क्षेत्र के लिए स्थायी शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एकमात्र समाधान (दो-राज्य समाधान/ टू-स्टेट सॉल्यूशन) प्राप्त करने की तत्काल आवश्यकता है.
जानें क्या है मैक्रों की भी मजबूरी
जानकारी हो कि गाजा पट्टी में युद्ध और मानवीय संकट चरम पर है। ऐसे में फ्रांस का यह कदम भले केवल एक प्रतिकात्म कदम होगा, लेकिन उसका फिलिस्तीन को मान्यता देना इजराइल पर अतिरिक्त राजनयिक दबाव डालेगा। फ्रांस अब फिलिस्तीन को मान्यता देने वाली सबसे बड़ी पश्चिमी शक्ति होगा। उसका यह कदम अन्य देशों के लिए भी ऐसा करने का रास्ता बना सकता है। अप्रैल में मैक्रों ने पहले घोषणा की थी कि जून में न्यूयॉर्क में सऊदी अरब के साथ सह-अध्यक्षता में फिलिस्तीन पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान फ्रांस फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देगा, लेकिन अमेरिका के दबाव में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को जुलाई के अंत तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.
मैक्रों के फैसले से नाराज होंगे ट्रंप
उन्होंने कहा कि “सबसे जरूरी बात यह है कि गाजा में युद्ध बंद हो और नागरिक आबादी को मदद दी जाए.” उनका यह बयान गाजा में जारी इजरायली सैन्य अभियान और वहां बढ़ती भुखमरी पर दुनिया भर में बढ़ते गुस्से के बीच आया है। फ्रांस फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह में पहला बन जाएगा, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, जापान और इटली भी शामिल हैं। यह साफ है कि इस निर्णय से ट्रंप प्रशासन नाराज होगा क्योंकि वह पूरी तरह से इजरायल के साथ खड़ा है और गाजा में युद्ध को समाप्त करने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है। यूरोप की सबसे बड़ी यहूदी आबादी और पश्चिमी यूरोप में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी फ्रांस में ही है। फ्रांस ने इजरायल-गाजा की लड़ाई को घरेलू स्तर पर विरोध प्रदर्शन या अन्य तनावों में तब्दील होते देखा है।
स्वतंत्र देश की मांग कर रहे फिलीस्तीन के लोग
जानकारी हो कि फिलिस्तीन की जनता कब्जे वाले वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम और गाजा में मिलाकर एक स्वतंत्र देश की मांग कर रही है। इन क्षेत्रों पर इजरायल ने 1967 के मध्य पूर्व युद्ध में कब्जा कर लिया था। इजरायल की सरकार और उसका अधिकांश राजनीतिक वर्ग लंबे समय से फिलिस्तीनी राज्य का विरोध कर रहा है और अब कहता है कि अगर अब फिलिस्तीन को मान्यता दी गई तो यह हमास के 7 अक्टूबर, 2023 के हमले के बाद आतंकवादियों को पुरस्कार देने जैसा होगा।
इजरायल ने 1967 के युद्ध के तुरंत बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया और इसे अपनी राजधानी का हिस्सा मानता है। वेस्ट बैंक में इजराइल ने कई बस्तियां बनाई हैं, जिनमें से कुछ विशाल शहरों से मिलती जुलती हैं, जो अब इजरायली नागरिकता वाले पांच लाख से अधिक यहूदी निवासियों का घर हैं। इस क्षेत्र के 30 लाख फिलिस्तीनी इजरायली सैन्य शासन के अधीन रहते हैं, फिलिस्तीनी प्राधिकरण इन आबादी वाले केंद्रों में सीमित स्वायत्तता का प्रयोग करता है। जानकारी हो कि वर्ष 2009 में जब बेंजामिन नेतन्याहू सत्ता में लौटे तो आखिरी शांति वार्ता भी टूट गई। अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इजरायल के साथ-साथ फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को इस सदियों पुराने संघर्ष का एकमात्र यथार्थवादी समाधान मानते हैं। अब फ्रांस भी उनमें शामिल होने जा रहा है।