सिर्फ एक साल पहले, मालदीव ‘IndiaOut’ अभियान की आग में झुलस रहा था। भारत-विरोधी बयानबाज़ी चरम पर थी, और राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की कैबिनेट के कई मंत्री सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कर रहे थे। भारत और मालदीव के संबंध टूटने की कगार पर थे। लेकिन जुलाई 2025 तक आते-आते स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मालदीव की राजधानी माले में पारंपरिक संगीत, “भारत माता की जय” के नारों और मालदीव के उसी राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू द्वारा गले लगाकर स्वागत किया गया, जो कभी खुले तौर पर भारत-विरोधी रुख अपनाते थे।
ट्विटर ट्रेंड से लेकर रेड कार्पेट स्वागत तक, यह नाटकीय परिवर्तन केवल औपचारिक कूटनीति नहीं है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव का सशक्त प्रमाण है। भारत की सांस्कृतिक विरासत, रणनीतिक धैर्य और दृढ़ कूटनीति ने एक बार फिर सकारात्मक परिणाम दिए हैं।
राजनयिक पुनर्स्थापन का प्रतीक: पीएम मोदी की मालदीव यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 जुलाई को दो दिवसीय यात्रा पर मालदीव पहुँचे। यह राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के नवंबर 2023 में पदभार संभालने के बाद उनकी पहली भारत यात्रा थी। माले के वेलाना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर खुद राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने रक्षा, विदेश, गृह सुरक्षा और वित्त मंत्रियों के साथ मोदी का भव्य स्वागत किया।
मोदी को मालदीव की 60वीं स्वतंत्रता दिवस समारोह में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में आमंत्रित किया जाना केवल औपचारिकता नहीं थी। यह एक गहरा प्रतीक था। इस वर्ष भारत और मालदीव के बीच राजनयिक संबंधों के भी 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के कार्यकाल की पहली राजकीय यात्रा भी है, जो द्विपक्षीय संबंधों में पूर्ण बदलाव का संकेत है।
हजारों की संख्या में भारतीय प्रवासी, पारंपरिक मालदीवियाई कलाकार, और तिरंगे लहराते स्थानीय नागरिकों ने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया, वह हाल की कटुता के ठीक विपरीत था। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ। यह नई दिल्ली की स्थिर, धैर्यपूर्ण और सुसंस्कृत कूटनीति का नतीजा है।
भारत-मालदीव साझेदारी को नई गति: रणनीतिक समझौते और आर्थिक सहयोग
यात्रा के पहले दिन पीएम मोदी और राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के बीच व्यापार, आधारभूत संरचना, समुद्री सुरक्षा और रक्षा सहयोग सहित कई विषयों पर विस्तृत बातचीत हुई। एक ऐतिहासिक निर्णय में, भारत और मालदीव के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत शुरू करने की घोषणा हुई। जिससे आर्थिक सहयोग के नए द्वार खुलेंगे।
भारत ने मालदीव को ₹4,850 करोड़ (करीब $565 मिलियन) की नई लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) देने की घोषणा की। साथ ही भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं पर मालदीव की वार्षिक ऋण अदायगी 40% तक कम करने पर सहमति बनी। सात अहम समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें मछली पालन, मौसम विज्ञान, भारतीय UPI का एकीकरण, फार्मास्यूटिकल्स और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
मोदी और मुइज़्ज़ू ने मिलकर भारत की सहायता से निर्मित कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया:
- मालदीव रक्षा मंत्रालय की नई इमारत
- हुलहुमाले में 3,300 आवासीय इकाइयाँ
- अड्डू शहर में सड़क और ड्रेनेज परियोजनाएँ
- मालदीवियाई रक्षा बलों को 72 वाहन और उपकरण
यह यात्रा केवल प्रतीकों तक सीमित नहीं है—यह भारत के दूरगामी रणनीतिक दृष्टिकोण, विकास सहयोग और हिंद महासागर क्षेत्र में जिम्मेदार नेतृत्व को दर्शाती है।
डिजिटल युद्ध और जन कूटनीति: नागरिकों ने बदली दिशा
भारत-मालदीव संबंध केवल नेताओं के फैसलों से नहीं, आम नागरिकों की भागीदारी से भी आकार लेते हैं। जब 2023 और 2024 की शुरुआत में मालदीव में मोदी और भारत-विरोधी भावना सोशल मीडिया पर फैली, तो भारतीयों ने चुप्पी नहीं साधी। हजारों यात्रा रद्द, पर्यटन बहिष्कार, डिजिटल अभियान और लक्षद्वीप को विकल्प के रूप में बढ़ावा देने की मुहिम ने माहौल बदल दिया।
बॉलीवुड सितारों ने भी इस अभियान का समर्थन किया। स्वाभिमान और राष्ट्रीय गरिमा की आवाज़ को अवकाश से ऊपर रखा। इस जनदबाव ने मालदीव सरकार को कठोर रुख अपनाने पर मजबूर किया। नतीजा? मंत्री अपने बयान वापस लेने लगे, माफी माँगी गई और अंततः राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू को खुद भारत के प्रति नरमी दिखानी पड़ी।
यह अभियान एक स्पष्ट संदेश था: भारत को हल्के में न लें। और आज यही संदेश कूटनीतिक सफलता में बदल गया है।
भारत की रणनीतिक श्रेष्ठता
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा केवल एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है। यह रणनीतिक विजय है। जिस नेता ने भारत से दूरी बनाने की कोशिश की थी, वह अब न केवल मोदी का स्वागत कर रहा है, बल्कि उन्हें अपने कार्यकाल के पहले राजकीय अतिथि के रूप में सम्मानित भी कर रहा है। यह भारत की अपार रणनीतिक क्षमता और मोदी के नेतृत्व की दृढ़ता को दर्शाता है।
भारत और मालदीव के बीच अब एक नया अध्याय शुरू हो चुका है। एक ऐसा संबंध जो और मजबूत, गहरा और लचीला है। भारत आज फिर से दक्षिण एशिया में प्रथम और विश्वसनीय साझेदार के रूप में अपनी भूमिका मज़बूती से स्थापित कर चुका है।