इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई 2025 को मनाई जा रही है, जब आषाढ़ मास की पूर्णिमा की चाँदनी पूरे आकाश को शीतल प्रकाश से भर देती है। आज का दिन जश्न मनाने का नहीं, बल्कि श्रद्धा से उन गुरुओं को याद करने का दिन है जिन्होंने हमारे जीवन को रोशनी दी और रास्ता दिखाया।
हिंदू परंपरा में इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि आज के ही दिन महर्षि वेदव्यास का स्मरण किया जाता है। उन्होंने वेदों की रचना की और महाभारत की रचना भी की। उन्हें ‘आदि गुरु’ माना जाता है, वह पहले गुरु जिन्होंने ज्ञान की परंपरा की नींव रखी।
गुरु: जो केवल पढ़ाते नहीं, बल्कि बदलते हैं
भारतीय संस्कृति में गुरु का मतलब केवल शिक्षक नहीं होता। गुरु वह होता है जो अंधकार में प्रकाश लाता है, जो केवल जानकारी नहीं देता, बल्कि भीतर कुछ जगा देता है। आज का दिन उसी जागरण को याद करने का है। चाहे आपका गुरु कोई संत हो, शिक्षक, माता-पिता या खुद जीवन, आज का दिन उन्हें नम्रता और श्रद्धा से धन्यवाद देने का है। यह केवल पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि भावना से भरे स्मरण और आभार का दिन है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा के पास स्थित गोवर्धन में गुरु पूर्णिमा का उत्सव बेहद भव्य और भावपूर्ण होता है। यहाँ हर साल ‘मुडिया पूर्णिमा मेला’ लगता है, जो केवल उत्सव नहीं बल्कि आस्था की एक जीवंत अभिव्यक्ति है। इस वर्ष मेला 10 जुलाई को समाप्त हो रहा है और अब तक 6 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु यहाँ पहुँच चुके हैं, जबकि अंतिम दिन करीब 1 करोड़ लोग आने की उम्मीद है। लोग गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हैं और दान घाटी, हरिदेव मंदिर, मानसी गंगा जैसे पवित्र स्थानों पर रुकते हैं।
469 साल पुरानी परंपरा
इस मेले की सबसे खास बात है इसकी शुरुआत की कहानी। करीब 469 साल पहले महान संत सनातन गोस्वामी के शरीर त्यागने के बाद उनके शिष्यों ने शोक में अपने सिर मुंडवाए और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हुए भक्ति गीत गाए। यह ‘मुडिया शोभा यात्रा’ आज भी उसी श्रद्धा से निकाली जाती है।
इतनी बड़ी भीड़ का प्रबंधन केवल आस्था से नहीं, बल्कि सेवा और योजनाबद्ध काम से होता है। मेला क्षेत्र को 21 ज़ोन और 62 सेक्टरों में बाँटा गया है, जहाँ सफाई, सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए टीमें लगातार काम कर रही हैं।
गुरु पूर्णिमा कैसे मनाएँ?
आप इस पवित्र दिन को अपने ढंग से मना सकते हैं:
अपने गुरु को फोन करें, संदेश भेजें या मन ही मन उन्हें स्मरण करें।
ध्यान करें, उपवास रखें, या भगवद गीता, उपनिषद या अपने प्रिय ग्रंथ पढ़ें।
सत्संग या कीर्तन में भाग लें, चाहे किसी आश्रम में हों या ऑनलाइन।
घर में दीप जलाएँ, फूल अर्पित करें या एक सरल पूजा करें।
घर या आस-पास की परिक्रमा करें, यह कदम भी एक भक्ति हो सकते हैं।
सभी आध्यात्मिक पथों के लिए एक उत्सव
हालाँकि गुरु पूर्णिमा हिंदुओं के लिए विशेष है, यह अन्य परंपराओं में भी महत्व रखती है:
बौद्ध धर्म में यह दिन गौतम बुद्ध के पहले उपदेश का स्मरण है, जो सारनाथ में दिया गया था और जिससे धर्मचक्र का आरंभ हुआ।
जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर और उनके पहले शिष्य गौतम स्वामी की याद में मनाया जाता है।
असल में, गुरु पूर्णिमा उन सभी को धन्यवाद कहने का दिन है जिन्होंने हमें मानसिक, आध्यात्मिक या भावनात्मक रूप से आगे बढ़ाया।
गुरु के बिना ज्ञान का प्रकाश संभव नहीं। आज का दिन हमें यह याद दिलाता है, और हमें कृतज्ञता से भर देता है।
(यह खबर अधीश वत्स ने लिखी है)