राजस्थान के कोटा के बोरखेड़ा क्षेत्र स्थित बख्शी स्प्रिंगडेल स्कूल में हिंदू छात्रों को प्रार्थना के दौरान इस्लामिक ‘कलमा’ पढ़वाने के आरोप लगाए गए हैं। हिंदू संगठनों द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद इलाकों में तेज़ी से विवाद बढ़ता जा रहा है। यह आरोप एक वायरल वीडियो के आधार पर लगाए गए हैं, जिसमें स्कूल की प्रार्थना सभा के दौरान कुछ बच्चे अरबी भाषा में इस्लामिक कलमा का उच्चारण करते दिख रहे हैं। यह वीडियो सामने आने के बाद हिंदूवादी संगठनों ने स्कूल प्रशासन पर धार्मिक विचार थोपने का आरोप लगाते हुए विरोध दर्ज कराया है और सख्त कार्रवाई की मांग की है।
क्या है मामला?
वायरल वीडियो बारां रोड स्थित निजी स्कूल का बताया जा रहा है, जहां सुबह की सभा में बच्चों को ‘कलमा’ पढ़वाया गया। हिंदू संगठनों का कहना है कि छोटी कक्षाओं के हिंदू बच्चों को जबरन यह धार्मिक पंक्तियां रटवाई गईं, जो उनकी धार्मिक आस्था और मूल अधिकारों के खिलाफ है। बजरंग दल के ज़िला अध्यक्ष योगेश नरवाल ने इसे धार्मिक थोपने का मामला बताते हुए कहा कि प्रशासन से इस मामले में कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए है।
स्कूल प्रशासन की ‘कलमा’ पर सफाई
इस पूरे मामले में स्कूल संचालक विनीत बक्शी ने सफाई देते हुए कहा कि वायरल वीडियो नया नहीं, बल्कि कई साल पुराना है और यह स्कूल के वार्षिकोत्सव के समय रिकॉर्ड किया गया था। उन्होंने बताया कि उनके स्कूल में पिछले 30 वर्षों से सर्व-धर्म प्रार्थना की परंपरा रही है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों की प्रार्थनाएं समय-समय पर करवाई जाती हैं। विनीत बख्शी ने यह भी कहा कि वे भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त हैं और उनके पिता भारतीय सेना में तीन युद्धों में भाग ले चुके हैं। उन्होंने इस विवाद को राजनीतिक और दुर्भावनापूर्ण प्रचार बताया है।
शिक्षा विभाग ने शुरू की जांच
शिक्षा विभाग ने भी इस विवाद को गंभीरता से लिया है। विभाग ने जांच समिति गठित कर स्कूल भेजी, जहां उन्होंने प्रार्थना की लाइव रिकॉर्डिंग की और छात्रों से अलग-अलग बातचीत की है।
क्या सभी धर्मों की प्रार्थना सब पर थोपना उचित है?
इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या ‘सर्व-धर्म’ प्रार्थना की आड़ में किसी एक धर्म की धार्मिक पंक्तियां उन बच्चों पर थोपी जानी चाहिए, जो उस धर्म से नहीं हैं? यह मामला सिर्फ धार्मिक भावनाओं का नहीं, बल्कि बाल मनोविज्ञान और धार्मिक स्वतंत्रता का भी है। छोटे बच्चों को बिना उनके धार्मिक संदर्भ समझाए एक विशेष धर्म की धार्मिक पंक्तियां पढ़वाना क्या वाकई धार्मिक सहिष्णुता है या फिर यह संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन?
फिलहाल शिक्षा विभाग मामले की जांच कर रहा है और रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है। लेकिन विवाद बढ़ता जा रहा है और हिंदू संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस संवेदनशील मामले में धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सर्व-धर्म समभाव की बहस में कैसे संतुलन बैठाता है।