राजस्थान के अजमेर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पाली और राजसमंद जिलों में मेहरात समुदाय (जिसे चीता-मेहरात भी कहा जाता है) बड़ी संख्या में रहता है। यह समुदाय सालों से हिंदू और मुस्लिम परंपराओं को साथ निभाकर शांति से जीता आया है। लेकिन अब इन इलाकों में बढ़ते धार्मिक कट्टरपंथ के कारण इस समुदाय की धार्मिक आज़ादी को लेकर चिंता बढ़ गई है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, समुदाय के हिंदू सदस्यों को दाह संस्कार करने से रोका जा रहा है, बच्चों का जबरन खतना करवाया जा रहा है और हिंदू त्योहारों जैसे होलिका दहन तक को मनाने में कठिनाई हो रही है। रिपोर्टस के अनुसार, इस क्षेत्र में बाहरी मौलवियों का प्रभाव बढ़ रहा है, जो मस्जिदों और मदरसों के माध्यम से कट्टर विचारधारा को बढ़ावा दे रहे हैं।
800 साल पुराना संतुलन अब खतरे में
राजस्थान चीता मेहरात हिंदू मगरा-मेरवाड़ा महासभा के संरक्षक छोटू सिंह चौहान बताते हैं कि मेहरात, चीता और काठात जैसे समुदायों के कुछ लोगों ने करीब 800 साल पहले इस्लामी रीति-रिवाज अपनाए थे। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी पुरानी हिंदू परंपराओं को नहीं छोड़ा।
पूजा-पाठ, विवाह और अन्य रीति-रिवाज आज भी काफी हद तक हिंदू तरीके से होते रहे। हाल के 15-20 सालों में स्थिति बदलने लगी है। बाहर से आने वाले कट्टरपंथी मौलवियों के कारण इन समुदायों पर इस्लामिक परंपराओं को पूरी तरह अपनाने का दबाव बढ़ता जा रहा है, जिससे उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ रहा है।
पहचान का संकट: ‘मेहरात’ का अर्थ सीधे ‘मुस्लिम’ क्यों?
ब्यावर के राजियावास निवासी सूरज काठात, जो UPSC की तैयारी कर रहे हैं, ने बताया कि उन्होंने फॉर्म में अपनी जाति ‘मेहरात’ लिखी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें मुस्लिम धर्म में दर्शाया गया। सूरज स्पष्ट करते हैं कि वे हिंदू हैं और उन्हें उसी रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
विरोध करने पर सामाजिक बहिष्कार
राजस्थान के सुहावा, सराधना और बाडिया जैसे गाँवों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ लोगों को पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने पर परेशान किया गया। अगर किसी ने बच्चों का खतना नहीं करवाया या किसी परिजन का दाह संस्कार हिंदू तरीके से करने की कोशिश की, तो उन्हें गाँव से निकाल दिया गया या उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। सराधना गाँव में एक परिवार ने जब अपने पिता का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से करने की कोशिश की, तो उन्हें भीड़ के विरोध और पथराव का सामना करना पड़ा। कुछ मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि दाह संस्कार कराने के लिए पुलिस की सुरक्षा लेनी पड़ी।