उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर अब राज्य के सभी स्कूलों में रोज़ाना सुबह की प्रार्थना के साथ श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक सुनाए जाएंगे। सरकार ने इस संबंध में पहले ही आदेश जारी कर दिया है। इस फैसले के बाद लोगों की मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं, कुछ इसे सांस्कृतिक शिक्षा की दिशा में सकारात्मक मानते हैं, जबकि कुछ इसे धर्म विशेष थोपने की कोशिश मानते हैं।
सकारात्मक प्रतिक्रिया: संस्कृति से जुड़ने का अवसर
साधक संघ के संस्थापक महेश स्वरूप ब्रह्मचारी ने इस फैसले की सराहना की और कहा कि यह पहल बहुत पहले होनी चाहिए थी। “संस्कृत हमारी मूल भाषा है। गीता के श्लोक बच्चों में नैतिकता और जीवन मूल्यों की समझ जागृत करेंगे। यह केवल उत्तराखंड तक सीमित न रहे, पूरे देश में होना चाहिए।” उनका कहना है कि गीता धर्म का प्रचार नहीं करती, बल्कि इंसानियत और कर्तव्य की शिक्षा देती है।
विरोध: जबरदस्ती ठीक नहीं
स्थानीय निवासी दिलशाद अली का कहना है कि सरकार सभी समुदायों की होती है ना कि किसी एक धर्म की। “हम गीता के पाठ का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन इसे जबरन सभी बच्चों पर लागू करना गलत है। सरकार को सबकी भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए।” उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सबको जोड़ना होना चाहिए, न कि धर्म विशेष थोपना।
मदरसा बोर्ड की मंज़ूरी
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून काज़मी ने भी इस निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने कहा: “स्कूलों में गीता का पाठ एक सकारात्मक कदम है। हर भारतीय को श्रीराम-श्रीकृष्ण के जीवन से परिचित करना चाहिए। इससे भाईचारा बढ़ेगा और सांप्रदायिक सौहार्द मजबूत होगा।” उन्होंने यह भी बताया कि मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के लिए सरकार के साथ एमओयू किया गया है, ताकि मुस्लिम छात्र भी भारतीय संस्कृति से जुड़ सकें।
हरियाणा भी इस पहल में शामिल हुआ
उत्तराखंड के बाद अब हरियाणा ने भी इसी दिशा में कदम उठाया है। 17 जुलाई 2025 से हरियाणा के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में मॉर्निंग असेंबली में गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य कर दिया गया है। यह निर्णय विधि शिक्षा बोर्ड द्वारा सभी स्कूलों को जारी किया गया। सबसे पहले यह शुरुआत भिवानी के सर्वपल्ली राधाकृष्णन लैब स्कूल से हुई, जहाँ बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार ने श्लोक पाठ शुरू किया। इस पहल से युवा पीढ़ी में जीवन-मूल्यों की समझ और नैतिक शिक्षा विकसित होगी।
इस बदलाव का समर्थन गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने भी किया, जो गीता प्रचार के लिए लंबे समय से कार्यरत हैं।
संस्कृति, शिक्षा और विवाद का संतुलन
ये दोनों पहल उत्तराखंड और हरियाणा इस बात की दिशा में रणनीतिक कदम हैं कि भारतीय संस्कृति और दर्शन को शिक्षा के ज़रिए युवाओं तक पहुंचाया जाए। गीता के श्लोकों को सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव मूल्यों, नेतृत्व गुणों और वैज्ञानिक दृष्टि से जुड़ा पाठ्यांश माना जा रहा है।
जहाँ कुछ लोग इसे संस्कृति संवर्धन के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ इसे धार्मिक थोपने वाला कदम मानते हैं। लेकिन यह पहल स्पष्ट रूप से एक नई बहस की शुरुआत है: क्या धार्मिक ग्रंथों को स्कूलों में पढ़ाना बच्चों को मजबूत बनाता है या इससे धार्मिक अंतर दिखाई देगा?
आगे क्या होगा?
उत्तराखंड सरकार ने किताबों में गीता और रामायण को शामिल करने का निर्णय लिया है, जिससे अगले स्कूल सेशन से इस विषय से संबंधित पाठ्यपुस्तकें छात्रों तक पहुंचेंगी। इस पहल से बच्चों में नैतिक शिक्षा, आत्म-नियंत्रण, चरित्र निर्माण और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिलेगा।
समय के साथ इस नीतिगत पहल के प्रभाव स्पष्ट होंगे, लेकिन यह निश्चित है कि शिक्षा के माध्यम से धार्मिक समझ, नैतिकता और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने का यह प्रयास सामाजिक चर्चा और विविध दृष्टिकोणों को जन्म दे चुका है।