देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), जनरल अनिल चौहान ने राष्ट्र और सशस्त्र बलों को ज़ोरदार और उत्साहजनक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि पुरानी हथियार प्रणालियां अब आधुनिक युद्ध नहीं जीत सकतीं। पहलगाम आतंकी हमले पर भारत की सटीक प्रतिक्रिया के लिए सफल “ऑपरेशन सिंदूर” का ज़िक्र करते हुए, जनरल चौहान ने स्वदेशी ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीकों की प्रभावशीलता की सराहना की, जिन्होंने बिना किसी नुकसान के पाकिस्तान के ड्रोन हमलों को विफल कर दिया।
मानक स्थापित कर रहे हमारे हथियार
सीडीएस ने कहा कि यह भारत की रक्षा स्थिति में निर्णायक बदलाव का प्रतीक हैं। भविष्य के लिए तैयार, तकनीकी रूप से सशक्त सिद्धांत जो स्वदेशी ताकत पर आधारित है। रणनीतिक बमवर्षकों से लेकर एआई-संचालित मानवरहित प्रणालियों तक, भारत विदेशी हथियारों पर दशकों की निर्भरता को कम करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। आज, तेजस, आकाश, नागास्त्र और स्काईस्ट्राइकर जैसे भारत निर्मित हथियार न केवल हमारी सेनाओं का सहयोग कर रहे हैं, बल्कि 21वीं सदी के युद्ध में नए मानक भी स्थापित कर रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर: तकनीक और रणनीति के ज़रिए विजय
सीडीएस ने बताया कि 10 मई को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने घूमते हुए हथियारों और निगरानी यूएवी का इस्तेमाल करते हुए ड्रोन से हमला किया। हालांकि, भारतीय सेना ने बेजोड़ तत्परता दिखाई। गतिज हथियारों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल करते हुए भारतीय सैनिकों ने आने वाले ख़तरों को बेहद सटीकता से बेअसर कर दिया। कुछ ड्रोन तो सही-सलामत पकड़े भी गए, जिससे न केवल भारत की क्षमता बल्कि उसकी तकनीकी बढ़त का भी प्रदर्शन हुआ।
मेक इन इंडिया से बढ़ी सेना की क्षमता
जनरल चौहान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह ऑपरेशन पारंपरिक रक्षा से स्मार्ट युद्ध की ओर संक्रमण का प्रतीक था। आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल बैटरियां, डीआरडीओ द्वारा विकसित रडार सूट और स्वदेशी कामिकेज़ ड्रोनों की नागस्त्र श्रृंखला जैसी स्वदेशी प्रणालियों ने निर्णायक भूमिका निभाई। सीडीएस ने स्पष्ट किया, “ये नए हथियार छोटे, तेज़, अधिक कुशल और किफ़ायती हैं।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे युद्ध अब क्रूर शक्ति से लेकर बुद्धिमान गतिशीलता और स्वचालन तक विकसित हो गया है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत विकसित स्काईस्ट्राइकर जैसी प्रणालियों ने सेना की न्यूनतम जोखिम के साथ सामरिक हमले करने की क्षमता को और बढ़ाया है।
तेजस से एएमसीए तक: अब आकाश की कोई सीमा नहीं
सीडीएस ने बताया कि एयरोस्पेस में भारत के स्वदेशीकरण की लहर एलसीए तेजस परियोजना के साथ शुरू हुई और अब एएमसीए (उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान) और आगामी यूएलआरए (अल्ट्रा लॉन्ग-रेंज एयरक्राफ्ट) स्टील्थ बॉम्बर के साथ तेज़ हो गई है। तेजस, जो अब कई स्क्वाड्रनों के साथ भारतीय वायु सेना में कार्यरत है ने हवाई श्रेष्ठता और सटीक हमलों के अभियानों में खुद को साबित किया है। उन्होंने बताया कि एएमसीए, जिसके 2030 के दशक की शुरुआत में उड़ान भरने की उम्मीद है, वैश्विक शक्तियों द्वारा तैनात पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमानों का भारत का जवाब है। स्टील्थ, सुपरक्रूज़ और एआई-संचालित एवियोनिक्स से डिज़ाइन किया गया, एएमसीए भारत के हवाई प्रभुत्व को काफ़ी मज़बूत करेगा।
यूएलआरए बमवर्षक परियोजना से क्रांतिकारी बदलाव
इस बीच, यूएलआरए बमवर्षक परियोजना एक क्रांतिकारी बदलाव है। 12,000 किलोमीटर की लक्षित मारक क्षमता के साथ—जो अमेरिका के बी-21 रेडर से भी आगे है। यह स्वदेशी स्टील्थ बमवर्षक भारत को हवा में ईंधन भरे बिना दुनिया में कहीं भी सर्जिकल या परमाणु हमले करने में सक्षम बनाएगा। यह रूस के टीयू-160 से प्रेरित है और संभवतः ब्रह्मोस-एनजी मिसाइलें, कम दूरी के परमाणु पेलोड और लेज़र-निर्देशित हथियार ले जाएगा। यह बमवर्षक भारत की प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करेगा और देश को एक सच्ची वैश्विक वायु शक्ति बनाएगा।
थल सेना को बढ़ावा: जैवलिन सह-उत्पादन और उससे आगे
सीडीएस ने बताया कि भारत की थल युद्ध क्षमताओं में भी तेज़ी से बदलाव हो रहा है। एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम के तहत भारत ने अमेरिकी जैवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल के सह-उत्पादन पर ज़ोर दिया है। इससे दुश्मन के कवच के विरुद्ध भारतीय सेना की मारक क्षमता बढ़ेगी। खासकर लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश जैसे उच्च-ऊंचाई वाले युद्धक्षेत्रों में। इसके अतिरिक्त भारतीय सेना दुश्मनों से आगे रहने के लिए पिनाका रॉकेट लॉन्चर, प्रचंड अटैक हेलीकॉप्टर और स्वार्म ड्रोन सिस्टम को शामिल करना जारी रखे हुए है। स्वदेशी कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (CMS) को भी थल और नौ सैनिक प्लेटफार्मों में एकीकृत किया जा रहा है। ये AI-सक्षम प्रणालियां तेज युद्ध और ग्रे ज़ोन संघर्ष, दोनों ही स्थितियों में तेज़ी से खतरे का पता लगाने, प्रतिक्रिया देने और उसे बेअसर करने में सक्षम होंगी।
सामरिक युद्ध में स्वदेशी ड्रोन अग्रणी भूमिका में
ड्रोन अब केवल सहायक उपकरण नहीं रह गए हैं। वे अब युद्ध रणनीति का केंद्रबिंदु हैं। थलसेना, नौसेना और वायुसेना तेज़ी से भारत में निर्मित यूएवी जैसे एएवी तैनात कर रही हैं। इसके अलावा DRDO ने नाग एंटी-टैंक मिसाइल, स्मार्ट एंटी-एयरफ़ील्ड वेपन (SAAW) और रुद्रम श्रृंखला की एंटी-रेडिएशन मिसाइलों के विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। ये प्रगति एक स्पष्ट संदेश देती है। भारतीय सेना अब महत्वपूर्ण प्रहार क्षमताओं के लिए आयात पर निर्भर नहीं है।