पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में सुधार होता दिख रहा है। दोनों देशों ने यह फैसला किया है कि जिन लोगों के पास राजनयिक (diplomatic) या सरकारी (official) पासपोर्ट हैं, उन्हें अब एक-दूसरे के देश में वीज़ा के बिना आने-जाने की अनुमति होगी। यह समझौता तब हुआ जब पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नक़वी ढाका गए और बांग्लादेश के गृह मंत्री, रिटायर्ड जनरल जाहंगीर आलम चौधरी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों के बड़े अधिकारी भी मौजूद थे और बैठक को सरकारी सम्मान के साथ किया गया, जिससे पता चलता है कि यह फैसला कितना महत्वपूर्ण है।
फिलहाल यह वीज़ा छूट केवल सरकारी अफसरों और राजनयिकों के लिए है, लेकिन भविष्य में आम लोगों को भी इसका फायदा मिल सकता है। दोनों देशों ने यह भी तय किया है कि वे मिलकर सुरक्षा के मामलों में एक-दूसरे की मदद करेंगे-जैसे आतंकवाद रोकना, ड्रग्स की तस्करी और मानव तस्करी को रोकना। इन कामों को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त टीम बनाई गई है, जिसकी अगुवाई पाकिस्तान के गृह सचिव करेंगे।
बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव
यह कूटनीतिक बदलाव बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के तहत विदेश नीति में आए बदलाव को दर्शाता है। 2024 में शेख हसीना सरकार के हटने के बाद नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने इस्लामाबाद सहित अन्य देशों के साथ रिश्तों को विविध बनाने की कोशिश शुरू की है। हाल के प्रमुख बदलाव:
- पाकिस्तानी सामान पर से रोक हटाई गई है – बांग्लादेश ने कुछ पाकिस्तानी चीज़ों के आयात (import) पर लगी पाबंदियाँ खत्म कर दी हैं।
- सीधी माल ढुलाई (कार्गो) सेवा शुरू हुई है – कराची और चटगांव के बीच अब सीधे माल भेजने की सुविधा शुरू हो गई है। यह सेवा 1971 के बाद पहली बार शुरू हुई है।
- अधिक मुलाकातें और दौरे हो रहे हैं – दोनों देशों के बीच अब ज्यादा प्रतिनिधिमंडल (delegations) और सरकारी अफसरों की आपसी मुलाकातें हो रही हैं।
भारत की रणनीतिक चिंताएं
इन घटनाओं से भारत की चिंता बढ़ गई है। भारत को लग रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI वीज़ा में मिली छूट का गलत इस्तेमाल करके बांग्लादेश में अपना असर बढ़ा सकती है। यह चिंता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस साल कश्मीर में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और खराब हो गए।
इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ कुछ कूटनीतिक (diplomatic) रिश्ते खत्म कर दिए और SAARC जैसे क्षेत्रीय समूहों में सहयोग भी रोक दिया। भारत का विदेश मंत्रालय कह रहा है कि वह इन सभी घटनाओं पर ध्यान से नजर रख रहा है, खासकर देश की सुरक्षा और पूरे इलाके की शांति को ध्यान में रखते हुए।
सबसे जरूरी बात
- वीज़ा-मुक्त यात्रा: केवल राजनयिक और सरकारी पासपोर्ट धारकों के लिए लागू।
- रणनीतिक संपर्क: पाकिस्तान और बांग्लादेश व्यापार से आगे बढ़कर आतंरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग कर रहे हैं।
- भारत की स्थिति: सतर्क, क्योंकि इन नीतियों के गलत इस्तेमाल और क्षेत्रीय संतुलन पर प्रभाव की आशंका है।
यह समझौता दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक संभावित बदलाव का संकेत देता है, जिसमें पाकिस्तान को ढाका में नया महत्व मिल रहा है। जैसे-जैसे इस्लामाबाद और बांग्लादेश नए सहयोग के रास्ते खोलते हैं, भारत इस संभावित बदलाव पर बारीकी से नजर बनाए हुए है।
पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्तों का ऐतिहासिक संदर्भ
बांग्लादेश ने 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर आज़ादी पाई थी। यह आज़ादी एक लंबे और दर्दनाक युद्ध के बाद मिली, जो नौ महीने चला। इस लड़ाई की वजह थी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्से (अब बांग्लादेश) के साथ खराब व्यवहार, राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव।
इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए, कई महिलाओं के साथ ज़्यादती हुई, और लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए। दिसंबर 1971 में भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों (मुक्ति वाहिनी) की मदद की। आखिरकार, 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया, जो इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है। पाकिस्तान ने 1974 में बांग्लादेश को औपचारिक रूप से एक स्वतंत्र देश माना। हालांकि अब दोनों देशों के बीच बातचीत, व्यापार और कुछ सहयोग बढ़ा है, लेकिन विश्वास अभी भी कमज़ोर है। बांग्लादेश आज भी पाकिस्तान से माफी, मुआवज़ा और फंसे हुए लोगों की वापसी की मांग करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ये पुराने मुद्दे नहीं सुलझते, तब तक दोनों देशों के बीच सच्चा मेल-जोल मुश्किल है। इसके अलावा, बांग्लादेश भारत, पाकिस्तान और चीन के साथ संतुलन बनाने की कोशिश में भी फंसा हुआ है, जिससे स्थिति और जटिल हो जाती है।