शशि थरूर हमेशा सोच-समझकर बोलते हैं, लेकिन जब वे कांग्रेस पर सवाल उठाते हैं तो माहौल बदल जाता है। हाल ही में उन्होंने आपातकाल (इमरजेंसी) के दौरान संजय गांधी की भूमिका पर चुप्पी तोड़ी, जिसने फिर से कांग्रेस के भीतर मौजूदा दरारों और भारत के कई बार दुखद राजनीतिक इतिहास पर नया प्रकाश डाला। थरूर की बात सही है, इतिहास गवाही देता है कि इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी का दबदबा था। जबरन नसबंदी, बेदखली और विरोध को दबाना उनकी साख से जुड़े जुड़े हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि यह बयान एक सक्रिय वरिष्ठ कांग्रेस सांसद की जुबां से आया, जिसे परिवार और पार्टी की विरासत की रक्षा करनी होती है।
कांग्रेस ने कभी इस काले अध्याय का सामना नहीं किया, ना कभी माफी मांगी और अक्सर मोदी सरकार के केंद्रीकरण की आलोचना करते हुए खुद की सारी भूल भुला दी जाती है। थरूर के बोल ने इस चुप्पी पर पर्दा उठाया।
थरूर और कांग्रेस का गतिरोध
शशि थरूर को कांग्रेस में एक पढ़े-लिखे, आधुनिक और बदलाव चाहने वाले नेता के रूप में देखा जाता है, लेकिन वे कभी पार्टी के अंदरूनी खास लोगों की टीम का हिस्सा नहीं बन पाए। जब उन्होंने 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, तो इससे उनकी छवि और भी अलग दिखने लगी।
थरूर सवाल पूछने से नहीं डरते और सबकी हां में हां नहीं मिलाते, इस वजह से कुछ लोगों को वे पसंद नहीं आते। लेकिन उनके अनुभव और लोकप्रियता की वजह से पार्टी भी उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।
राहुल की कांग्रेस में असहमति का मतलब क्या?
राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस में असहमति को अब ‘संदेहजनक’ माना जाता है। कई दिग्गज नेता- गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमंता बिस्वा शर्मा, खुदसे बाहर चले गए क्योंकि उन्हें लगा कि असली नेतृत्व में जगह नहीं है।
हालाँकि थरूर पार्टी में बने रहे, लेकिन उनका इमरजेंसी, राजनीतिक सुधारों पर बोलना यह स्पष्ट करता है कि कांग्रेस आलोचना से निपटने में सक्षम नहीं है।
सच स्वीकारना ही वैधता की दिशा है
राहुल गांधी अक्सर मोदी सरकार को तानाशाही कहते हैं, संविधान बचाने की बात करते हैं, लेकिन अगर कांग्रेस खुद ही अपनी लोकतांत्रिक गलतियों- जातीय संस्कृति, आंतरिक मतभेद को नहीं स्वीकारती है तो वह अपनी कहानियों को खोखला बनाती जाती है। कुछ वरिष्ठ नेता संसद में NDA से बहस करने की बात कह रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी चाह रहे हैं तो सिर्फ ड्रामाई बहसें और एलान।
थरूर क्यों हैं अहम?
थरूर कांग्रेस के लिए एक जरूरी इंजन हैं, विशेषकर शहरी, युवा और आकांक्षी मतदाताओं को आकर्षित करने में। वे अपनी पार्टी की गलतियों के सामने भी आत्मीयता रखते हैं। ऐसी ईमानदारी भारतीय राजनीति में दुर्लभ है, और यह उनके लिए क्रॉस-पार्टी अच्छी छवि ला रही है। अगर कांग्रेस खुद को फिर से बनाना चाहती है तो थरूर जैसे नेताओं को आगे लाना पड़ेगा, दरवाजों पर नहीं खड़ा करना।
थरूर की टिप्पणियाँ सिर्फ इमरजेंसी की याद नहीं, बल्कि कांग्रेस को उस चुप्पी से बाहर निकलने की चुनौती थीं जिस पर वे आज तक खामोश हैं। पार्टी सुधार, संस्थागत विश्वास व परिवारवाद से ऊपर उठकर सत्ता-योग्यता की ओर तभी बढ़ सकती है।
अगर कांग्रेस थरूर जैसे वरिष्ठ, ईमानदार और मजबूत नेताओं को संभाल नहीं सकती, तो क्या वह भारत के भविष्य को संभालने की तैयारी कर रही है?