जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का शताब्दी वर्ष निकट आ रहा है, उसके कार्यों की चर्चा बढ़ती जा रही है। संघ की ओर से भी समाज को जानकारी देने की अच्छी खासी तैयारी चल रही है। जहाँ तक संघ की बात है तो इसके हर काम के मूल में इसकी ‘शाखा’ होती है । संघ की शाखा में कार्य करते-करते एक कार्यकर्ता स्वयं प्रेरणा से समाज की सेवा करना सीखता है अथवा करता भी है। किसी भी टीम या दल में काम करना अपने आप में एक विशेष गुण या कौशल होता है। दुनिया भर में पैसा लगाकर ‘टीम मैनेजमेंट’ या टीम के साथ मिलकर काम करने का प्रशिक्षण चलता रहता है। वहीं संघ की शाखा में एक स्वयंसेवक बिना किसी खर्चे के ‘टीम मैनेजमेंट’ जैसे गुण को बड़ी ही सरलता से सीख लेता है। आईये जानते हैं कैसे:-
देशभर में अलग-अलग आयु वर्ग के अनुसार लगने वाली शाखाओं में किसी व्यक्ति को सर्वप्रथम जो दायित्व दिया जाता है उसे ‘गटनायक’ कहते हैं। यह समूह अथवा गट एक ही क्षेत्र में निवास करने वाला हो सकता है, समान आयु वर्ग का भी हो सकता है, परन्तु भाषा और आय के आधार पर कभी नहीं होता है। जब यह जिम्मेदारी एक तरुण अथवा किशोर को मिलती है तब जीवन के इन प्रारम्भिक दिनों से गटनायक के रूप में उसे प्रतिदिन अपनी इस टीम (गट के सदस्य) को शाखा में लाना, शाखा के कार्यक्रमों और गतिविधियों में इसका नेतृत्व करना, गट के सदस्यों के घरों में जाकर उनके माता पिता से मिलना और उनकी पढ़ाई के बारे में पूछना आदि कार्य करने होते हैं। सरल शब्दों में कहें तो एक ऐसी आयु, जिसमें उनके साथी खेल और मस्ती में संलिप्त रहते है शाखा के गटनायक अपने गट के सदस्यों के समन्वयक और नायक का दायित्व निर्वहन करते हैं। यहीं से कार्यकर्ता में ‘दायित्वबोध’ और सबके साथ मिलकर काम करने के गुण का निर्माण होता है।
शाखा में कई प्रकार के दायित्व दिए जाते है। एक स्वयंसेवक जिसके पास खेल प्रमुख का दायित्व होता है वह शाखा में विभिन्न प्रकार के खेलों की योजना बनाकर उसे क्रियांवित करता है, जबकि दूसरा स्वयंसेवक जो गीत प्रमुख होता है वह राष्ट्रभक्ति गीत सीखने और गाने और शेष कार्यकर्ताओं को सीखाने का काम करता है और वहीं प्रार्थना प्रमुख दैनिक प्रार्थना गाने और इसके लिए दूसरों को प्रशिक्षण देने पर ध्यान केंद्रित करता है। शाखा में किसी वरिष्ठ स्वयंसेवक से कहा जा सकता है कि वह कुछ अध्ययन करे और किसी सामाजिक मुद्दे पर व्याख्यान प्रस्तुत करे अथवा शाखा के अन्य स्वयंसेवकों की जानकारी हेतु कोई कहानी सुनाये। किसी व्यक्ति को शाखा के विहार (पिकनिक) के प्रबंधन का अस्थायी दायित्व भी दिया जा सकता है। शाखा के ऐसे छोटे छोटे दायित्व निर्वहन के कारण व्यक्ति धीरे-धीरे एक जिम्मेदार व्यक्तित्व और नायक के रूप में विकसित होता है। इस प्रकार, एक स्वयंसेवक के रूप में बड़े ही प्रेमपूर्वक एक व्यक्ति को अनुशासित टीम लीडर अर्थात् नायक के रूप में तैयार किया जाता है, जो स्वाभाविक रूप से बहुत सारी गतिविधियों को संभाल सकता है और यह सब केवल आरंभ मात्र है।
गटनायक के रूप में जैसे-जैसे स्वयंसेवक परिपक्व होता है उसे शाखा “मुख्य शिक्षक” अथवा “शाखा कार्यवाह” का दायित्व दिया जाता है। शाखा कार्यवाह के दायित्वानुसार वह शाखा के प्रत्येक स्वयंसेवक की चिंता और देखरेख करता है। एक प्रकार से वह उस शाखा के सभी सदस्यों के लिए अभिभावक के समान होता है। मुख्य शिक्षक हर प्रकार के शारीरिक शिक्षण संबंधी गतिविधियों और खेल आदि का प्रभारी होता है, जबकि कार्यवाह से सभी टीम लीडरों अथवा दायित्ववान कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करने और कार्यक्रमों की योजना बनाने हेतु आसपास लगने वाली अन्य शाखाओं के स्वयंसेवकों के साथ बैठक में भाग लेने की अपेक्षा होती है। मुख्य शिक्षक और शाखा कार्यवाह दोनों मिलकर शाखा चलाने का कार्य करते है।
संघ की शाखा में अनेक कार्यक्रम होते रहते हैं जिनकी व्यवस्था सभी को मिलकर करनी होती है। कार्यक्रमों की सफलता हेतु बैठकें होती हैं, जिनमें बारीक से बारीक बिन्दुओं पर चर्चा होती है और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी तय होती है। कार्यक्रम होने के बाद समीक्षा भी होती है। शाखा में होने वाली गतिविधियों में भाग लेने से व्यक्ति में सबके साथ मिलकर काम करने की वृत्ति उत्पन्न होती है, क्योंकि शाखा में कुछ भी अकेले करने का होता ही नहीं है। बड़ा छोटे को ध्यान में रखकर काम करता है और छोटा बड़े को ध्यान में रखकर । इसी सामूहिक ध्यान से सामूहिक अनुशासन का गुण उत्पन्न होता है । सामूहिक अनुशासन ही किसी भी टीम के साथ काम करने का आधारभूत गुण है। यही गुण संघ की शाखा में बड़ी ही सहजता से निर्मित होता है।