भारत में सभी धर्मों के लोगों को अपनी मान्यता के अनुसार आचरण करने और जीने का अधिकार है। इसी के तहत सिख निहंग को भी कृपाण और तलवार रखने की छूट है। लेकिन, इसी की आड़ में उत्तराखंड और पंजाब समेत अन्य राज्यों में सिख निहंगों की ओर से की जा रही हिंसक वारदातों के बाद अब लोगों को चिंता होने लगी है। इन वारदातों को देखते हुए अब लोगों के बीच इनके हथियार रखने के अधिकार को खत्म करने मांग भी तेज होने लगी है।
उत्तराखंड से सात निहंग गिरफ्तार
उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ के पास एक स्थानीय व्यवसायी और निहंग तीर्थ यात्रियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इसके बाद पुलिस ने सात सिख निहंगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मामला स्कूटर से शुरू होकर हिंसक झड़प पर जा पहुंचा। पुलिस के अनुसार पूरा मामला स्कूटर को दूसरी जगह ले जाने का है। लेकिन, इसके बाद जो हुआ वह मामूली नहीं था। पुलिस के अनुसार, बहस जल्दी ही बढ़ गई और निहंगों ने कथित तौर पर तलवारें निकाल लीं। उन्होंने व्यवसायी पर हमला करने का प्रयास भी किया, लेकिन वह बाल-बाल बच गया। इस पर जब पुलिस ने उन्हें समझाना चाहा तो स्थिति और बिगड़ गई। निहंगों ने एक सीनियर सब इंस्पेक्टर पर धारदार हथियार से हमला कर उन्हें घायल कर दिया। इसके बाद पुलिस ने सात निहंगों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उनके पास से पारंपरिक कृपाण के साथ—साथ कुल्हाड़ी, बड़े चाकू और दोधारी तलवार जैसे हथियार भी बरामद किए।अब इस घटना से यह सवाल भी उठने लगे हैं कि प्रतीक के रूप में हथियार रखने के साथ ही खतरनाक हथियारों की रेखा कैसे पार कर दी जाती है?
पुलिस अधिकारी का काट दिया था हाथ
ऐसा ही एक उदाहरण वर्ष 2020 में तब सामने आया था, जब निहंगों के एक समूह ने पंजाब में एक पुलिस अधिकारी का हाथ काट दिया। तब कोविड-19 को लेकर पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा था और जब पुलिस ने निहंगों से कर्फ्यू पास दिखाने के लिए कहा तो, उन्होने पुलिस पर ही हमला कर दिया था। वहीं 2021 में सिंघु सीमा पर किसान आंदोलन के दौरान एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद कुछ निहंगों ने ‘बेअदबी’ की बात कहते हुए इसकी जिम्मेदारी ली थी।
मोहाली में पुलिस पर किया हमला
निहंगों की ओर से एक और परेशान करने वाली घटना पंजाब के मोहाली की है। यहां पर एक निहंग सिख और उसकी पत्नी ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। पुलिस उस निहंग और उसकी पत्नी को 55,000 रुपयों की लूट के मामले में गिरफ्तार करने गई थी। इस हमले में एक पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गया। हिंसा की इस घटना ने एक बार फिर निहंग समुदाय के कट्टरपंथी तत्वों के भीतर बढ़ती अराजकता और आक्रामकता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
पंजाब में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की हत्या
इधर, पंजाब के बठिंडा में उस वक्त हड़कंप मच गया जब सोशल मीडिया पर मशहूर कमल कौर भाभी उर्फ कंचन कुमारी की लाश बुधवार को भुच्चो कलां के पास कार में पड़ी मिली। उनकी कार आदेश यूनिवर्सिटी के बाहर खड़ी थी और मौत बेहद संदिग्ध हालात में हुई थी। इस मामले में पुलिस ने दो निहंगों को गिरफ्तार किया। कमल कौर बुधवार को बठिंडा-चंडीगढ़ राजमार्ग पर भुच्चो कलां में आदेश विश्वविद्यालय के बाहर खड़ी अपनी कार में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई थीं। मामले की जांच कर रही बठिंडा की सीनियर पुलिस ऑफिसर अमनीत कोंडल ने बताया कि हत्या के आरोप में दो निहंग- जसप्रीत सिंह और निमरतजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। एक आरोपी अमृतपाल सिंह मेहरोन फिलहाल फरार है, जिसकी तलाश जारी है।
सम्मानित है सिख निहंगों का स्थान
ऐतिहासिक रूप से निहंगों को सिख धर्म के योद्धा संतों के रूप में जाना जाता है। इन्हें सिख धर्म का रक्षक भी कहा जाता है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि निहंगों ने मुगल और अफगान आक्रमणों का विरोध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी पहचान अनुशासन, आत्म-बलिदान और सिख सिद्धांतों के प्रति निष्ठा में डूबी हुई है। हालांकि, हाल के वर्षों में इनकी प्रवृत्ति में चिंताजनक बदलाव देखा जा रहा है।
‘प्रतीक’ या ‘हथियार’ पुनर्विचार की जरूरत
इन सभी घटनाओं पर गौर करें तो अब ये अलग-थलग मामले नहीं रह गए हैं। ये कट्टरपंथ, संभावित नशीली दवाओं के उपयोग और निहंग समुदाय के कुछ हिस्सों में केंद्रीकृत नेतृत्व या जवाबदेही की कमी के गहरे मुद्दे की ओर इशारा करते हैं। भारत के कानून धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, जिसमें सिखों का अपने धर्म के हिस्से के रूप में कृपाण रखने का अधिकार भी शामिल है। लेकिन, इस बात को लेकर बेचैनी बढ़ रही है कि यह सुरक्षा कितनी दूर तक बढ़ाई जानी चाहिए। खासकर जब लोग इसका इस्तेमाल ऐसे हथियार रखने के लिए करते हैं जो धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता से कहीं ज़्यादा हैं।
क्या बदलने की जरूरत है?
हालांकि, ये बातें सिख समुदाय को बदनाम करने के बारे में नहीं है। निहंग सहित अधिकांश सिख शांतिपूर्वक रहते हैं। वे अपनी परंपराओं को सम्मान के साथ बनाए रखते हैं। लेकिन, यह भी उतना ही सच है कि कोई भी समूह-धार्मिक या अन्य जो दंड से मुक्त होकर काम करना शुरू करता है, वह कानून के शासन को चुनौती देता है।
संतुलित दृष्टिकोण की जरूरत
कठोर कानूनी प्रवर्तन: धार्मिक पहचान के बावजूद कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए। सिख नेतृत्व और संस्थानों को भी हाशिये पर पड़े तत्वों के बीच हिंसा के बढ़ते पैटर्न को खुले तौर पर संबोधित करना चाहिए। मुख्य बात य है कि कि उत्तराखंड और पंजाब में हाल ही में हुईं घटनाओं को अलग-अलग झड़पों के रूप में खारिज नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता और दोनों को फिर से संतुलित करने पर व्यापक बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए। क्योंकि अगर परंपरा की रक्षा करने की शपथ लेने वाले लोग भी नागरिक शांति को कमजोर करना शुरू कर देते हैं, तो उन मूल्यों की रक्षा कौन करेगा जिनका वे पालन करने का दावा करते हैं?