झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कांग्रेस भले ही सत्ता में भागीदार हों, लेकिन उनके रिश्ते लगातार तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। दोनों पार्टियों के राज्य से बाहर के नेताओं को चिंतित करने लगा है।
निराश हो रहे कांग्रेस नेता
इस परेशानी का केंद्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सत्ता पर मजबूत पकड़ है। सरकार में कांग्रेस के मंत्रियों का कहना है कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है और महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भूमिका कम होती जा रही है। सूत्रों के अनुसार, कई कांग्रेस नेता निराश हो गए हैं। कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि शासन में सक्रिय भागीदार के बजाय उनके साथ मूकदर्शक जैसा व्यवहार किया जा रहा है।
कांग्रेंस के बिना भी सत्ता में रह सकती है जेएमएम
झारखंड विधानसभा में राजनीतिक गणित ने मामले को और भी पेंचीदा कर दिया है। विधानसभा की कुल 81 सीटों में से जेएसएस केे पास 34, कांग्रेस के पास 16 और अन्य छोटे सहयोगियों जैसे राजद और सीपीआई (माले) भी कुछ सीटें देते हैं। इस प्रकार गठबंधन के पास 56 सीटें हैं, जो बहुमत के लिए जरूरी 41 से कहीं ज़्यादा हैं। लेकिन, यहां एक पेंच है। पेंच यह कि कांग्रेस के बिना भी जेएमएम राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है। संभवतः न्यूनतम बाहरी समर्थन के साथ वह सत्ता में बनी भी रह सकती है।
निर्णयों में कांग्रेस को नहीं लेते साथ
झारखंड विधानसभा की यह स्थिति कांग्रेस के सामने हेमंत सोरेन को मज़बूत बढ़त देती है। हेमंत सोरेन को सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस की ज़रूरत नहीं है। यही कारण है कि वे किसी भी प्रकार का निर्णय लेने में कांग्रेस को साथ लेना जरूरी नहीं समझते हैं। हालांकि, वे अभी भी कांग्रेस को गठबंधन में बनाए हुए हैं। हां, ऐसा हो सकता है कि वे इंडी गठबंधन के तहत एक एकजुट विपक्ष की छवि बनाए रखने के लिए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। इसमें एनडीए के खिलाफ़ लड़ने वाली कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल हैं।
इस बीच, झारखंड में कांग्रेस के नेता राज्य में काम करने की अधिक छूट और पार्टी के प्रभाव के लिए जोर दे रहे हैं। वे आदिवासी अधिकारों, शिक्षा आरक्षण और दलित कल्याण पर मजबूत नीतियों की वकालत कर रहे हैं। लेकिन, सरकार में उनकी सीमित भागीदारी के कारण पार्टी नेताओं के ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हो पा रहे हैं। समझा जाता है कि पार्टी नेता इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कांग्रेस के आलाकमान से भी संपर्क कर चुके हैं। लेकिन, हेमंत सोरेन की मजबूत स्थिति को देखते हुए वह भी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। अपनी पार्टी की संख्या पर भरोसा रखने वाले सोरेन कांग्रेस को वास्तविक भागीदारी से ज्यादा राजनीतिक जरूरत के लिए संभाल रहे हैं। उन्हें अपने पाले में रखकर, वे सार्वजनिक रूप से गठबंधन में टूट से बचने की कोशिश में लगातार लगे हैं। हालांकि, इन सारी बातों के बावजूद झारखंड में सत्ता की कमान जेएमएम के पक्ष में ही है।
गठबंधन टूटा तो देशभर में होगा असर
झारंखड की सरकार में सभी पार्टियों का वजूद समान नहीं है। इस कारण यहां पर गठबंधन को संभालना आसान नहीं है। इंडी गठबंधन को जीवित रखने और आगामी चुनावों में सफलता के हिसाब से रहने और सफल होने के लिए, उसे सभी को साथ रखने के तरीके खोजने होंगे, भले ही सत्ता का बंटवारा समान न हो। हां, एक बात और झारखंड में इंडी गठबंधन की एक प्रकार से परीक्षा ही है कि उनका साथ वास्तव में कितना कारगर हो सकता है। अगर दोनों पार्टियां सरकार की आंतरिक समस्याओं को सुलझाने में विफल रहती है तो इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर इंडी गठबंधन में दिखेगा।
कांग्रेस के लिए झारखंड क्यों है महत्वपूर्ण?
कांग्रेस के लिए झारखंड में गठबंधन में बने रहना और वहां की सरकार का आसानी से चलते रहना ही बेहतर है। एक बात तो तय है कांग्रेस के लिए राज्य में अपनी ताकत और जनसमर्थन बरकरार रखने के लिए सत्ता में बने रहना जरूरी है। ऐसा करने के लिए वह पूरी तरह से जेएमएम पर निर्भर है। ऐसे में अपने पर मंत्रियों के पद रहने पर वह सरकार की नीतियों को भी प्रभावित कर सकती है। कांग्रेस के लिए यह भी एक महत्वपूर्ण बात है कि अगर उसका गठबंधन राज्य स्तर पर काम कर सकता है तो केंद्रीय स्तर पर भी ऐसे ही काम करता रहेगा।