चाइना मार्केट रिसर्च ग्रुप के संस्थापक और अमेरिकी विदेश नीति के मुखर आलोचक शॉन रीन ने भारत से चीन के प्रति अपने सतर्क रुख पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इसके साथ ही उन्होंने हालिया घटनाक्रमों को अपनी पुरानी चेतावनियों के बारे में कहा कि ये घटनाएं मेरी चेतावनियों की पुष्टि करती हैं।
शॉन जीन ने दी थी ये सलाह
शॉन रीन ने कहा कि मैं वर्षों से भारत को चेतावनी दे रहा हूं कि अमेरिका उन्हें उसी तरह नियंत्रित करने की कोशिश करेगा, जैसे उसने जापान के साथ किया था और अब चीन के साथ कर रहा है। ऐसे में या तो आप यूरोपीय संघ की तरह बन सकते हैं या फिर एक जागीरदार। उन्होंने कहा कि भारतीयों ने मुझ पर हमला किया, यह कहते हुए कि चीन ही खतरा है। खैर, ट्रंप की धमकियों और टैरिफ के बाद कौन सही है? भारत को चीन के करीब जाना चाहिए,” रीन ने X पर पोस्ट किया।
रीन की यह टिप्पणी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ में “काफी” वृद्धि करने की कसम खाने के तुरंत बाद आई है। इसमें उन्होंने भारत पर रूस के साथ अपने तेल व्यापार से लाभ कमाने का आरोप लगाया था।
जानें ट्रंप ने क्या कहा
ट्रंप ने दावा किया कि भारत न सिर्फ़ भारी मात्रा में रूसी तेल ख़रीद रहा है, बल्कि ख़रीदे गए ज़्यादातर तेल को खुले बाज़ार में भारी मुनाफ़े पर बेच भी रहा है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रूसी युद्ध मशीन यूक्रेन में कितने लोगों की जान ले रही है।
लंबे समय तक वाशिंगटन पर नहीं कर सकते भरोसा
मई में दिए एक साक्षात्कार में, रीन ने भी इसी तरह काम तर्क दिया और कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी को अगले तीन से पांच सालों में भारत की अर्थव्यवस्था को चीन के साथ और भी नज़दीकी से जोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक वाशिंगटन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। “अगर भारत बहुत ज़्यादा शक्तिशाली हो जाता है, जो कि अगले 10 से 20 सालों में हो जाएगा तो अमेरिका उसे रोकने और कमज़ोर करने की कोशिश करेगा।
चीन के प्रति भारत का रूख कमजोरी नहीं
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में अध्ययन और विदेश नीति के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत ने विदेश नीति के लिए लिखे एक लेख में स्थिति की जटिलता को दोहराया था। उन्होंने लिखा था कि ट्रंप ने चीन की ओर संभावित झुकाव का संकेत दिया है। इससे नई दिल्ली को वाशिंगटन और बीजिंग के बीच अपना संतुलन बनाने के लिए प्रेरित होना पड़ा है। पंत ने ज़ोर देकर कहा कि चीन के प्रति भारत के हालिया रुख़ को कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसे बदलती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के प्रति सामरिक अनुकूलन के रूप में देखा जाना चाहिए।
यह समन्वय 2024 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पांच वर्षों में पहली मुलाक़ात के बाद हुआ है। इसके बाद से राजनयिक और आर्थिक संबंधों में धीरे-धीरे सुधार हुआ है। भारतीय चरवाहों के चरागाह अधिकार बहाल किए गए हैं। कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रा फिर से शुरू हो गई है और सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने के लिए भी बातचीत जारी है। 2020 में गलवान घाटी में हुई घातक झड़पों के बाद भारत-चीन संबंधों में तेज़ी से गिरावट आई थी, लेकिन अब दोनों पक्ष सतर्कतापूर्ण बातचीत की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।
टैरिफ वापसी के बाद भी कौन करेगा भरोसा!
ट्रम्प की नई धमकियां अमेरिका-पाकिस्तान के बीच बढ़ती नज़दीकियों के साथ भी मेल खाती हैं, जो सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ उनकी बैठकों और जनरल माइकल कुरिल्ला की उच्च-स्तरीय मान्यता से चिह्नित हैं। इसे बीजिंग में कुछ लोग चीनी सैन्य प्रणालियों पर ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को बाधित करने के एक रणनीतिक प्रयास के रूप में व्याख्या करते हैं। सुरक्षा विश्लेषक सुशांत सरीन ने चेतावनी दी कि अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों को खतरे में डाल दिया है। उन्होंने लिखा कि अगर ट्रंप के ये आक्रामक टैरिफ वापस भी ले लिए जाएं, तो भी भारत में अमेरिका पर कौन भरोसा करेगा? इस बीच अपनी मिसाइलों और सभी रक्षात्मक व आक्रामक प्रणालियों को मज़बूत करें। पाकिस्तान पानी की जांच करने के लिए प्रेरित हो सकता है।”
विदेश मंत्रालय ने की अमेरिकी पाखंड की निंदा
इधर, अमेरिकी टैरिफ की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने पश्चिमी पाखंड की निंदा की। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत ने रूस से आयात इसलिए शुरू किया क्योंकि पारंपरिक आपूर्तिकर्ता यूरोप की ओर शिपमेंट भेज रहे थे। उस समय अमेरिका ने इन आयातों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया था। विदेश मंत्रालय ने बताया कि 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ कुल 67.5 बिलियन यूरो का माल और 17.2 बिलियन यूरो का सेवा व्यापार होगा, यह आंकड़ा भारत से कहीं ज़्यादा है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, उर्वरक और रसायनों सहित प्रमुख सामग्रियों का आयात जारी रखे हुए है।
जैसे-जैसे वैश्विक समीकरण बदल रहे हैं और भू-राजनीतिक बिसात अधिक लचीली होती जा रही है, भारत को नए सिरे से अनिश्चितता के बीच अपनी विदेश नीति का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ रहा है।