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देवभूमि पर कहर: उत्तराखंड की त्रासदी पर मुस्लिम कट्टरपंथी क्यों मना रहे हैं जश्न?

'नेचर का बुलडोज़र' कहकर बर्बादी का जश्न मनाने वालों की पोल खुली

Mansi Singh द्वारा Mansi Singh
6 August 2025
in चर्चित
देवभूमि पर कहर: उत्तराखंड की त्रासदी पर मुस्लिम कट्टरपंथी क्यों मना रहे हैं जश्न?

देवभूमि पर कहर: उत्तराखंड की त्रासदी पर कट्टरपंथी क्यों मना रहे हैं जश्न?

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जब उत्तराखंड में भारी बारिश और बादल फटने से तबाही हुई, तो पूरे देश ने दुख और सहानुभूति जताई। लेकिन इस दुख के समय में कुछ कट्टरपंथी इस्लामी सोच रखने वाले लोगों ने इंसानियत को शर्मसार करने वाला रवैया अपनाया – उन्होंने इस आपदा पर खुशी जताई।

उत्तराखंड, जिसे हिंदू धर्म में देवभूमि यानी देवताओं की भूमि कहा जाता है, वहाँ आई बाढ़ को कुछ चरमपंथियों ने भगवान की सज़ा बताया। उन्होंने इसे एक ‘प्राकृतिक बुलडोज़र’ कहा और ऐसा दिखाने की कोशिश की जैसे यह हिंदुओं के खिलाफ कोई बदला हो। यह सोच दिखाती है कि कुछ लोग धर्म के नाम पर नफरत फैलाने से पीछे नहीं हटते और इंसानियत की कोई परवाह नहीं करते।

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डिजिटल खुशी में नफ़रत का खुला चेहरा

सोशल मीडिया, जो आम तौर पर मुश्किल वक्त में लोगों को जोड़ने का काम करता है, कुछ कट्टरपंथियों के लिए नफरत फैलाने का जरिया बन गया। अली सोहराब और करिश्मा अज़ीज़ जैसे सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस दर्दनाक हादसे पर दुख जताने की बजाय इसका मज़ाक उड़ाया।

उन्होंने “नेचर का बुलडोज़र” जैसे शब्द इस्तेमाल कर बाढ़ को एक तरह से भगवान का बदला बताया। कुछ लोगों ने पोस्ट में पूछा- “ये आपदा है या बुलडोज़र?”, और कुछ ने ताना मारते हुए लिखा-“खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती।”

ये बातें न तो मजाक थीं और न ही विरोध – ये सोच-समझकर की गई क्रूरता थी, जो नफरत भरी विचारधारा से पैदा हुई है।

जवाबदेही के ख़िलाफ़ गुस्सा

इस नफरत को समझने के लिए हमें इसके पीछे की राजनीति को भी समझना होगा। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की, जिसमें कुछ अवैध धार्मिक स्थल (इस्लामी ढांचे भी) भी शामिल थे। सरकार का बुलडोज़र कानून का पालन कराने का प्रतीक बन गया, जो हर धर्म के लोगों के लिए एक जैसा है।

लेकिन जो लोग पहले तुष्टिकरण की राजनीति से फायदे में थे, उन्हें अब यह बराबरी भी ज़्यादती लग रही है। जो समुदाय सालों तक खास फायदे उठाता रहा, अब वही जवाबदेही को भेदभाव बताने लगा है।

इसी वजह से कुछ कट्टरपंथी लोगों ने बाढ़ को बदले का मौका समझा। उनके लिए यह एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि अल्लाह की तरफ़ से सज़ा थी। यह विरोध नहीं था, बल्कि नफरत थी – एक सोच जो पूरे समुदाय को गलत ठहराने की कोशिश करती है, और जो खुद को धर्म के नाम पर सबसे ऊँचा मानती है, जबकि सेक्युलर समाज चुप रहता है।

‘सेक्युलर’ वर्ग की चुप्पी अधिक भयावह

इस नफरत से भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात है, उस पर चारों ओर छाई चुप्पी। सोचिए, अगर हिंदुओं ने किसी मुस्लिम बहुल इलाके की किसी त्रासदी का मज़ाक उड़ाया होता, तो मीडिया में ज़बरदस्त हंगामा होता, टीवी पर बहसें चलतीं और हर जगह इसकी निंदा होती। लेकिन जब ऐसी बातें कुछ कट्टरपंथी इस्लामी सोच वाले लोग करते हैं, तो ज़्यादातर सेक्युलर कहे जाने वाले लोग चुप रहते हैं। यह चुप्पी तटस्थता नहीं, बल्कि उस नफरत को छिपाने में मदद करना है।

यह बात साफ़ समझनी चाहिए कि ये किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। भारत के करोड़ों मुस्लिम ऐसे नफरत भरे विचारों को नकारते हैं और बाकी देशवासियों की तरह दुख महसूस करते हैं। असली समस्या किसी धर्म की नहीं, बल्कि उस कट्टरपंथी सोच की है – जो बराबरी को अन्याय मानती है, खुद को हमेशा पीड़ित बताती है, और हर त्रासदी को अपने सांप्रदायिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल करती है।

त्रासदी के बीच उभरी वैचारिक दरार

भारत ने पहले भी कई तरह की आपदाएं देखी हैं – कुछ प्राकृतिक थीं और कुछ इंसानों की वजह से हुईं। लेकिन ऐसे मौके बहुत कम हैं जब नैतिकता इतनी गिर गई हो। एक हिंदू बहुल राज्य में जब गांव डूब गए, लोग बेघर हो गए और जान-माल का नुकसान हुआ, तब कुछ लोगों ने इस पर हँसी उड़ाई। ये कोई राजनीतिक राय नहीं, बल्कि इंसानियत के गिरने की साफ़ निशानी है।

जब किसी की मौत को मज़ाक बना दिया जाए, और बर्बादी को ‘ईश्वरीय बदले’ के तौर पर मनाया जाए, तो ये विरोध नहीं होता  ये एक खतरनाक, बिगड़ी हुई और अमानवीय सोच होती है।

बुलडोज़र- नफ़रत का नहीं, न्याय का प्रतीक

आज की राजनीति में बुलडोज़र किसी खास धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह कानून और सरकार की सख्ती का एक संकेत बन गया है। जो लोग इसका विरोध करते हैं, उन्हें बुलडोज़र से नहीं, बल्कि उस बात से दिक्कत है जो यह दिखाता है – कि अब कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो।

उत्तराखंड में आई बाढ़ ने हमें सिर्फ प्राकृतिक तबाही नहीं दिखाई, बल्कि उस नफरत भरी सोच को भी उजागर कर दिया है जो समाज में छुपी हुई थी, और अब जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

नफ़रत की पहचान और सख्त निंदा ज़रूरी

अगर भारत को एक ऐसा देश बनकर रहना है जहाँ सभी धर्मों के लोग बराबरी से जी सकें, तो हमें साफ़ लाइन खींचनी होगी। चाहे नफरत किसी भी धर्म से जुड़ी हो, हिंदू, मुस्लिम या कोई और  हर तरह की कट्टरता की सख्ती से निंदा करनी होगी।

देवभूमि उत्तराखंड में आई यह आपदा पूरे देश के लिए दुख का समय होना चाहिए था। लेकिन कुछ लोगों ने इसे खुशी का मौका बना लिया – यह देश के लिए शर्म की बात है।

ऐसे बेरहम रवैये के सामने चुप रहना अब शांति नहीं, बल्कि उस नफरत का साथ देना है। भारत को हिम्मत दिखानी होगी और इस सोच को उसके असली नाम से पहचानना होगा। नफरत, चाहे किसी भी तरफ़ से आए, विरोध नहीं होती, यह इंसानियत के साथ धोखा होता है।

Tags: Communal HateDevbhoomi DisasterFlood TragedyPushkar Singh DhamiSocial Media HateUttarakhand FloodsUttarkashi
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