राष्ट्र के भविष्य की हर सुबह, किसी युवा के आत्मविश्वास से ही जन्म लेती है। हर वह युवा, जो अपनी आँखों में सपना लिए चलता है कहीं न कहीं, उस सपने में राष्ट्र की तस्वीर भी होती है। 12 अगस्त आता है, और हमारे कैलेंडर के एक कोने में यह दर्ज हो जाता है “अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस”, लेकिन क्या सचमुच यह केवल एक दिन है? या फिर यह वह खामोश दस्तक है, जो हम सबको याद दिलाती है कि राष्ट्र का हृदय, उसकी धड़कन, उसकी दिशा सब कुछ एक युवा के सपनों पर निर्भर करता है?जब विश्व ने माना युवा केवल आयु नहीं, ऊर्जा है । यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 17 दिसंबर 1999 को स्थापित किया गया था, और पहली बार 12 अगस्त 2000 मे मनाया गया 1999 में जब संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को अंतरराष्ट्रीय रूप दिया, तब भी शायद वे जानते थे कि कोई भी सभ्यता केवल अनुभवी हाथों से नहीं, बल्कि जिज्ञासु आँखों और कांपती उंगलियों से बनती है। यह तिथि युवाओं की नवचेतना, प्रेरणा व संकल्प का वैश्विक प्रतीक है, ताकि युवाओं की आवाज़, उनकी सोच और समस्याएँ विश्व मंच पर आवाज़ बन सकें।
विश्व में आज 120 करोड़ युवा (15–24 वर्ष) हैं, जो विश्व जनसंख्या का लगभग 16 % बनाते हैं इतिहास की सबसे बड़ी युवा आबादी 2030 तक, विश्व की लगभग 57 % आबादी 30 वर्ष से कम उम्र की होगी और भारत तो उस भविष्य की प्रयोगशाला बन चुका है। भारत में यह और भी विशेष है, क्योंकि जहाँ हर तीसरा चेहरा एक युवा है । देश की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है(World Bank, 2024)। यह जनसांख्यिकीय लाभ भारत को विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का ऐतिहासिक अवसर प्रदान करता है। एक ऐतिहासिक अवसर जो भारत को विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर करवा सकता है। भारत के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। आज का युवा न केवल भारत का भविष्य है, बल्कि इसका वर्तमान भी है। यह लेख युवाओं को प्रेरित करने, उनकी ऐतिहासिक और समकालीन भूमिका को रेखांकित करने, सरकार और समाज के समर्थन को दर्शाने, और उनकी चुनौतियों व संभावनाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास है, साथ ही इतिहास में युवा शक्ति की भूमिका को याद दिलाता है।आज भारत वैश्विक मंच पर तेज़ी से उभर रहा है, और इसकी सबसे बड़ी ताकत है युवा ऊर्जा। यह वह जनसांख्यिकीय लाभ है जो भारत को आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों में अग्रणी बना सकता है। जहां वैश्विक आबादी वृद्ध होती जा रही है,हमारे पास समय, दृष्टि, ऊर्जा और दिशा बदलने की युवा ऊर्जा है। । कभी अपने आस–पास के रेलवे स्टेशन पर, किसी गाँव के स्कूल में, या किसी चौपाल पर बैठे एक लड़के को देखिए,उसकी आँखों में एक अदृश्य आग होती है। शायद वही आग मंगल पांडे में थी, शायद वही चिंगारी नेताजी में थी, और शायद वही रोशनी आज के स्टार्टअप फाउंडर्स में दिखती है।
ऐतिहासिक झरोखे से जब युवा बने भारत के मार्गदर्शक
भारत का इतिहास युवा शक्ति की गौरव गाथाओं से भरा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, युवाओं ने हर क्षेत्र में नेतृत्व किया है। आदि गुरु शंकराचार्य ने मात्र 16 वर्ष की आयु में अद्वैत वेदांत को पुनर्जन्म दिया और भारतीय दर्शन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। भारत ही नहीं पूरे विश्व के युवाओ मे ऊर्जा का संचार करने वाले स्वामी विवेकानंद जिनकी जयंती 12 जनवरी को भारत राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप मे मनाता है स्वामी विवेकानंद ने 30 वर्ष की आयु में 1893 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की आध्यात्मिक धरोहर को विश्व मंच पर स्थापित किया। उनकी प्रसिद्ध उक्ति, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो,” आज भी युवाओं को प्रेरित करती है।
स्वतंत्रता संग्राम में भी युवाओं की भूमिका अतुलनीय रही। मंगल पांडे ने 1857 की क्रांति की चिंगारी जलाई, तो रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर किए। सुभाष चंद्र बोस ,भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु सुखदेव और वीर सावरकर जैसे युवा क्रांतिकारियों ने न केवल अंग्रेजी शासन को चुनौती दी, बल्कि लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। इन युवाओं ने साबित किया कि आयु कोई बाधा नहीं, जब बात राष्ट्र के लिए समर्पण की हो।
युवाओं का समय एक समुद्र है
मुझे लगता है कि युवाओं का समय एक समुद्र की तरह होता है अथाह, अनन्त, और हर दिन नई लहरें फेंकता हुआ। ये लहरें केवल जल की नहीं होतीं, ये लहरें होती हैं भावों की, विचारों की, सपनों की और संघर्षों की। कभी ये लहरें आक्रोश बनकर उठती हैं, जब युवा अन्याय, भ्रष्टाचार या कुशासन को देखकर भीतर से उबल उठता है। कभी ये प्रेम की होती हैं अपने राष्ट्र, समाज, भाषा, संस्कृति और मानवता से एक आत्मीय जुड़ाव की अनुभूति लिए। फिर कभी वही लहरें टूटती हैं, बिखरती हैं जब सपनों से टकराकर यथार्थ की चट्टानों पर चोट खाती हैं। परन्तु वही युवा, जब अपने भीतर के इस समुद्र को साध लेता है तो एक नया निर्माण करता है।
इतिहास साक्षी है, जब–जब युवा जागा है, तब–तब युग बदले हैं। आज भारत का युवा केवल डिग्रियों का धारक नहीं है,वह नवाचार का वाहक है। वह स्टार्टअप में संभावनाएं देखता है, कृषि में तकनीक खोजता है, निर्माण में पर्यावरण देखता है, और नेतृत्व में जनभावना। वह लैपटॉप भी चलाता है और हल भी जोतता है,वह भारत के गांवों की धूल से लेकर ISRO की प्रयोगशालाओं तक फैला हुआ है। यही तो है इस समुद्र की विशेषता , वह एक साथ कितनी दिशाओं में बहता है, और फिर भी अपनी गहराई को नहीं खोता।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘नया भारत’ और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का ‘ड्रीम इंडिया’ , दोनों का केंद्र यही युवा है। स्किल इंडिया,डिजिटल इंडिया स्टार्टअप इंडिया,आत्मनिर्भर भारत ये केवल सरकारी योजनाएं नहीं हैं, बल्कि युवा ऊर्जा को दिशा देने वाले दीपस्तंभ हैं।
मगर ध्यान रहे समुद्र में यदि दिशा न हो, तो वह विनाश करता है। ठीक वैसे ही, यदि युवा दिशा से च्युत हो जाए, तो वह भी स्वयं को और समाज को हानि पहुँचा सकता है। इसलिए आज ज़रूरत है कि इस समुद्र को मूल्य आधारित नेतृत्व, सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी चेतना, और राष्ट्रप्रेम से पोषित आत्मबल के साथ जोड़ा जाए। यही युवाओं का वास्तविक युगधर्म है। यही कारण है कि मैं मानता हूँ युवा केवल शक्ति नहीं, संभावना भी है। वह केवल एक विचार नहीं, चिंतन की लहर है। और जब यह लहर सुदृढ़ दिशा में बहती है तो वह एक नया भारत रचती है, नवयुग की ओर अग्रसर एक महासागर बन जाती है।
भारत के युवाओं की रणनीतिक शक्ति
“भारत एक युवा राष्ट्र तो है, पर क्या वह एक स्वस्थ युवा राष्ट्र है?” यह प्रश्न केवल स्वास्थ्य के पारंपरिक अर्थ तक सीमित नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य के व्यापक आयामों को छूता है।WHO (2024) के अनुसार, 15–24 वर्ष के लगभग 30% युवा मोटापा, डायबिटीज़ और अन्य जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं। असंतुलित आहार, मोबाइल स्क्रीन पर अत्यधिक निर्भरता और दिनचर्या की अनियमितता इस स्थिति को और गंभीर बना रही है।।
ILO (2024) के अनुसार, भारत में युवा बेरोजगारी दर 23.2% है, जो वैश्विक औसत (13.7%) से कहीं अधिक है। युवाओं में बेरोजगारी वयस्कों की तुलना में दोगुनी है, और लगभग 33% युवा या तो बेरोजगार हैं या असंगठित कार्यों में लगे हुए हैं। WHO (2024) के अनुसार, भारत में 15–24 वर्ष के 20% युवा मानसिक तनाव या चिंता से पीड़ित हैं। यह तनाव डिजिटल लत, सोशल मीडिया दबाव, प्रतिस्पर्धा, पारिवारिक अपेक्षाओं और एकाकी जीवनशैली से उपजा है। NCRB (2023) के अनुसार, हर वर्ष लगभग 10,000 युवा आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या की दर 10.4 प्रति 1,00,000 युवा है। हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या करता है। भारत में प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 0.3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं (WHO, 2024)। सरकार ने ‘टेली–मानस जैसे डिजिटल कार्यक्रम आरंभ किए हैं, परंतु जागरूकता, विश्वास और पहुँच अभी भी सीमित है।
आज के युवा को यह समझना होगा कि जीवन का उद्देश्य केवल नौकरी पाना या आर्थिक सफलता अर्जित करना नहीं है। एक संतुलित, उद्देश्यपूर्ण, और सामाजिक रूप से योगदानकारी जीवन ही उसे संपूर्ण बनाता है। इन समस्याओं का समाधान केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं हो सकता। इसके लिए परिवार, समाज, शिक्षण संस्थान और मीडिया,सभी को एकजुट होकर मानसिक, शैक्षिक और व्यावसायिक समर्थन की संरचना तैयार करनी होगी।
भारत के दो–तिहाई युवा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं। 58% महिलाएं ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं। Global Shapers जैसे मंचों पर भारतीय युवाओं ने जलवायु, आत्मनिर्भरता और वैश्विक संवाद में सक्रिय भूमिका निभाई है। यदि भारत को ‘विश्वगुरु‘ बनना है, तो उसका हर युवा शारीरिक रूप से तंदरुस्त, मानसिक रूप से संतुलित और आध्यात्मिक रूप से जागरूक होना चाहिए। । एक जागरूक युवा ही देश को आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक रूप से ऊंचाई तक ले जा सकता है। युवा केवल राष्ट्र की रीढ़ नहीं, बल्कि उसका विवेक और आत्मा भी हैं। जब वे जागरूक होते हैं, तभी भारत श्रेष्ठ बनता है।
जब नीति से जुड़ती है युवा शक्ति सरकार की योजनाएँ
भारत सरकार ने युवा सशक्तिकरण को राष्ट्रीय विकास की आधारशिला माना है। युवा नीति, कौशल विकास, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को सशक्त, आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिक बनाना है।
कुछ प्रमुख योजनाएं और पहलें इस प्रकार हैं:
1. राष्ट्रीय युवा नीति (2021): यह नीति 15–29 वर्ष के युवाओं को शिक्षा, कौशल, रोजगार और सामाजिक नेतृत्व के लिए प्रेरित करती है।
2. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): इस योजना के अंतर्गत 2024 तक 1.3 करोड़ से अधिक युवाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया गया (MSDE, 2024)।
Standup India: युवा के आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम
आज का भारतीय युवा केवल नौकरी तलाशने वाला नहीं रहा वह अवसरों का निर्माता, उद्यमिता का वाहक और समाज परिवर्तन का प्रेरक बन गया है। इसी भावना को बल देने के लिए भारत सरकार ने Startup India , Standup India जैसी योजनाओं की शुरुआत की, जो युवाओं को उनके विचारों को व्यावसायिक रूप देने में हरसंभव सहायता प्रदान करती हैं। यह योजना वित्तीय, तकनीकी और बाजार आधारित समर्थन के माध्यम से युवाओं को स्टार्टअप्स शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करती है। DPIIT (2024) के अनुसार, इस पहल के तहत भारत में 1.76 लाख स्टार्टअप पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश युवा उद्यमियों द्वारा संचालित हैं। भारत में यूनिकॉर्न स्टार्टअप की संख्या 118 हुई है, जिसने वैश्विक स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है, जो इस योजना की सफलता का प्रमाण हैं। । युवाओं के स्टार्टअप आज सिर्फ तकनीक या व्यापार तक सीमित नहीं हैं वे नवाचार, सामाजिक प्रभाव, यूनिकॉर्न महिला सशक्तिकरण, और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।Startup India के माध्यम से एक नया युवा भारत आकार ले रहा है जो जोखिम उठाने से नहीं डरता, जो समाधान खोजता है, और जो राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय भागीदार बनता है। अटल नवाचार मिशन और थिंकर लैब्स स्कूलों और कॉलेजों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 2024 तक 10,000 से अधिक थिंकर लैब्स स्थापित किए गए हैं। नेहरू युवा केंद्र (NYKS) और राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS): 2023-24 में NYKS ने 2.5 करोड़ युवाओं को स्वयंसेवा और सामाजिक कार्यों से जोड़ा (Ministry of Youth Affairs, 2024)। मेरा युवा भारत (MY Bharat) यह एक डिजिटल मंच है जो युवाओं को स्वयंसेवा, नेतृत्व और अवसरों से जोड़ता है। अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किए गए इस पोर्टल पर चार महीनों में 1.58 करोड़ से अधिक युवा पंजीकृत हुए थे जो एक विश्व कीर्तिमान है।
युवा सहकार योजना के माध्यम से राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) द्वारा संचालित है जो युवाओं को सहकारी संस्थाएं खोलने हेतु प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। 2024 तक इस योजना के अंतर्गत 500 से अधिक सहकारी स्टार्टअप शुरू किए गए, जिनमें 60% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं (NCDC, 2024)।
सरकार द्वारा युवा एवं खेल मंत्रालय के बजट में 2004–05 की तुलना में सात गुना वृद्धि हुई है ₹466 करोड़ से बढ़कर ₹3,397 करोड़ (2023–24)। इन सभी पहलों का उद्देश्य केवल युवाओं को प्रशिक्षित करना नहीं, बल्कि उन्हें जिम्मेदार नागरिक, सृजनशील विचारक और परिवर्तनकारी नेतृत्वकर्ता बनाना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) शिक्षा को कौशल और समग्र विकास से जोड़ती है। इसके अंतर्गत स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा और डिजिटल लर्निंग को प्रोत्साहित किया गया है। 2023 में उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात (GER) 27.3% था, जो वैश्विक औसत (40%) से कम है (AISHE, 2023)।
NEET (Neither in Education, Employment or Training) युवाओं की दर लगभग 32.9% है, जो सामाजिक–आर्थिक चिंता का विषय है। सरकारी योजनाएं तभी सार्थक होती हैं जब कोई शिक्षक समय पर स्कूल पहुँचे, कोई अधिकारी गाँव में थिंकर लैब स्थापित करने की ज़मीन खोजे, और कोई युवा डरते हुए भी अपने पहले स्टार्टअप के लिए बैंक का दरवाज़ा खटखटाए।
बजट या नीति दस्तावेज़ हों या NITI Aayog की रिपोर्ट हर जगह यही दोहराया जाता है, ‘युवा हैं, शक्ति है, हमें उन्हें पर्याप्त संसाधन, संबल और संवाद उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।‘
नेतृत्व की ओर बढ़ता युवा
नेतृत्व केवल पद या अधिकार नहीं, बल्कि यह दृष्टि, साहस और निरंतर प्रयासों की प्रक्रिया है। जब युवा अपनी भूमिका को केवल आलोचना तक सीमित नहीं रखते, बल्कि समाधान का हिस्सा बनते हैं, तब एक नया भारत आकार लेता है। यह परिवर्तन छोटी–छोटी सकारात्मक आदतों से शुरू होता है समय पर उठना, ईमानदारी, स्वेच्छा से योगदान देना। यही नेतृत्व की आत्मा है
भारत ‘युवा राष्ट्र’ है लेकिन क्या हम ‘स्वस्थ युवा राष्ट्र’ बन पा रहे हैं?आधुनिक भारत का युवा उस सभ्यता की संतान है, जिसने “वसुधैव कुटुम्बकम्” कहा, लेकिन उसे बाज़ार ने यह सिखाया कि ‘पहले खुद को बेचो, तभी कुछ बन पाओगे।’यह द्वंद्व युवा आत्मा में सबसे गहरे स्तर पर एक सवाल छोड़ता है“मैं क्या बनना चाहता हूँ?” और “क्या यह वास्तव में मेरा चुनाव है?” और जब युवा चुपचाप टूटने लगते हैं।आज भारत में हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या करता है। इस आँकड़े को केवल भय से नहीं, आत्मचिंतन से पढ़िए। शायद हमने प्रतियोगिता सिखा दी, पर सहानुभूति नहीं। लक्ष्य दिए, पर जीवन का अर्थ नहीं बताया। हमने डिग्रियों को जीवन का उद्देश्य बना दिया, और भूल गए कि जीवन की सबसे बड़ी योग्यता “संतुलन”है। मानसिक स्वास्थ्य पर चुप्पी अब घातक बन चुकी है और यदि हम इस पर अब भी नहीं बोले, तो 2047 तक केवल तकनीकी भारत होगा,सच्चा मानवीय भारत नहीं।
एरिक फ्रॉम ने लिखा था कि मनुष्य का सबसे बड़ा डर स्वतंत्रता नहीं, स्वतंत्रता की जिम्मेदारी है। युवा आज जितना बाहर से स्वतंत्र दिखता है, उतना ही भीतर से भयभीत, अकेला और दिशाहीन है। जब एक युवा स्टार्टअप शुरू करता है, या प्रतियोगिता में बैठता है, तो क्या वह सृजन के आनंद के लिए ऐसा करता है? या केवल इसलिए कि समाज ने सफलता का एक टेम्प्लेट पहले से गढ़ दिया है, और वह उसमें फिट होने की कोशिश कर रहा है?फ्रॉम मानते थे कि सृजन (creation) और प्रेम (love), व्यक्ति की दो सबसे मौलिक शक्तियाँ हैं। परंतु आज का युवा केवल प्रतिस्पर्धा कर रहा है, लेकिन प्रेम स्वयं से, समाज से, और विचार से कहीं खो गया है।आज आवश्यकता है कि हम युवाओं को केवल हुनर नहीं, बल्कि सजगता और संवेदना देना सीखें। उन्हें यह न सिखाएँ कि केवल “कैसे बनना है”, बल्कि यह सिखाएं कि क्यों बनना है।
क्योंकि अंततः, जब कोई युवा “अपने भीतर” के मूल्य से प्रेरित होकर निर्माण करता है, तो वह केवल अपने लिए नहीं, समाज के लिए भी रास्ते खोलता है। जब युवा संतुलित, स्पष्ट उद्देश्य व दिशा लेकर चलते हैं, तभी वे परिवार और राष्ट्र की सबसे बड़ी संरचना बनते हैं।
युवा जीवात्मा से राष्ट्रात्मा तक की यात्रा
जब भगवद्गीता में अर्जुन युद्ध भूमि में संशय में पड़ते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें केवल बाह्य रणभूमि नहीं, आंतरिक कर्तव्य की भूमि पर खड़ा करते हैं। आज का युवा भी एक ऐसी ही मानसिक कुरुक्षेत्र पर खड़ा है जहाँ एक ओर उसकी आत्मा उसे बुला रही है, और दूसरी ओर संसार उसे भ्रमित कर रहा है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था “युवा राष्ट्र की रीढ़ हैं।” लेकिन यह रीढ़ केवल शारीरिक शक्ति या तकनीकी कौशल से नहीं बनती। यह बनती है आत्म–विश्वास, विवेक और धर्मबुद्धि से । और धर्म यहाँ किसी सम्प्रदाय का नहीं, बल्कि कर्तव्य और आत्म–उत्थान का है।
श्री अरविंद ने ‘पुण्य भारत’ की कल्पना करते हुए कहा था कि भारत को केवल राजनीतिक शक्ति नहीं, आध्यात्मिक नेतृत्व में अग्रणी बनना होगा। और यह तभी होगा जब उसका युवा केवल जीविका की तलाश न करे, बल्कि जीवन के उद्देश्य की खोज करे।भारत का इतिहास केवल युद्धों, आंदोलनों और विजयों की गाथा नहीं है यह ऋषियों, योगियों और कर्मयोगियों की साधना से बना है। और हर युवा उस ऋषि परंपरा का आधुनिक प्रतिनिधि है। भारत फिर एक बार विश्वगुरु बनेगा, जब युवा अपनी शक्ति पहचानेंगे
जब एक युवा किसान जैविक खेती करता है, एक छात्र शिक्षा के लिए गाँव लौटता है, एक इंजीनियर स्टार्टअप से रोज़गार सृजित करता है तो वे राष्ट्र निर्माण की मौन साधना कर रहे होते हैं। यह भारत आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जब उसका युवा आत्मज्ञानी होगा। और आत्मज्ञान का अर्थ है “मैं केवल एक उपभोक्ता नहीं, मैं कर्त्ता हूँ, सृजनकर्ता हूँ, ऋषिपुत्र हूँ।”
आज आवश्यकता है कि हम केवल यह न पूछें “युवा क्या कर रहे हैं?”बल्कि यह पूछें “हम युवाओं के लिए क्या कर रहे हैं?” क्या हम उन्हें वह संवेदनशील वातावरण, वह शैक्षिक साधन, वह मानसिक सहारा दे पा रहे हैं जिससे वे केवल जीवित नहीं, जागृत हो सकें?
विकसित भारत” का सपना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक के लिए देश के सामने रखा है एक ऐसा भारत जो हर क्षेत्र में अग्रणी, आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर सम्माननीय हो। लेकिन इस सपने की बुनियाद उस युवा मन पर टिकी है, जो आज किसी गाँव के कोने में बैठा यह सोच रहा है कि क्या वह कुछ बदल सकता है। जवाब है हाँ। क्योंकि जब युवा बदलता है, तब युग बदलता है। कॉलेज के असमंजस से लेकर करियर के मोड़ तक, युवा का हर निर्णय देश के भविष्य की दिशा तय करता है। प्रधानमंत्री का यह विजन केवल सरकार का लक्ष्य नहीं, बल्कि हर युवा का मिशन बनना चाहिए। “विकसित भारत 2047” की ऊँचाइयाँ तभी छूई जा सकती हैं जब हमारे युवा स्वस्थ, शिक्षित, जागरूक और संकल्पशील हों। आत्मनिर्भर भारत की नींव वही युवा रख सकते हैं जो डिजिटल रूप से सशक्त हों, कौशल और नेतृत्व में सक्षम हों, और जिनके भीतर राष्ट्र निर्माण का जज़्बा हो। यह यात्रा केवल रोज़गार या शिक्षा तक सीमित नहीं यह आत्म–चेतना, मूल्यों और स्वप्नों की साझी यात्रा है। यही द्वंद्व उस सवाल को जन्म देता है “मैं क्या बनना चाहता हूँ?” और “क्या यह मेरा अपना चुनाव है?” जब स्वप्नशीलता, संकल्प और चेतना का मेल होता है, तब एक युवा सिर्फ सपना नहीं देखता, बल्कि उसे जीने का साहस भी रखता है। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का यही विचार था “महान स्वप्नदर्शियों के महान सपने हमेशा साकार होते हैं” उन्होंने भारत को एक ज्ञान–शक्ति के रूप में देखा, जहाँ युवा न केवल तकनीक में दक्ष हों, बल्कि सेवा और संस्कार में भी अग्रणी बनें। क्योंकि जब युवा जागता है, तभी युग बदलता है। और जब देश के युवाओं का साहस, सेवा और संकल्प एक दिशा में प्रवाहित हो, तब “विकसित भारत 2047” की कल्पना केवल सपना नहीं, सच्चाई बन जाती है।
विकसित भारत” का सपना तभी साकार होगा जब हर राज्य उसमें सक्रिय सहभागी बने, और जब बात भारत के हृदय मध्यप्रदेश की हो, तो उसका समग्र रूप से विकसित होना अनिवार्य है। इसी लक्ष्य को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार ने ऐसे प्रभावशाली कदम उठाए हैं जो न सिर्फ युवाओं को लाभ पहुँचा रहे हैं, बल्कि उन्हें “न्यू इंडिया” के निर्माण में भागीदार भी बना रहे हैं। जब नेतृत्व युवाओं की आँखों में देख कर कहता है कि “तुम सिर्फ वर्तमान नहीं, भविष्य हो,” तब नीतियाँ सिर्फ योजनाएँ नहीं रह जातीं, बल्कि वे परिवर्तन का माध्यम बन जाती हैं। मध्यप्रदेश में यही परिवर्तन आज दिख रहा है नीतियाँ ज़मीन पर उतरी हैं, गाँवों की गलियों और शहरों की सड़कों तक पहुँची हैं। युवा वर्ग अब केवल नौकरी की प्रतीक्षा नहीं कर रहा, वह आत्मविश्वास के साथ कह रहा है: “अब हमें बाहर नहीं जाना पड़ेगा, हमारा भविष्य यहीं है।” 12 जनवरी 2025 को शुरू हुआ यह अभियान स्वामी विवेकानंद के आदर्श “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत” से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य है प्रत्येक युवा को शिक्षा, कौशल और न्यूनतम आय से सशक्त बनाना। इस युवा शक्ति मिशन के तहत दो लाख युवाओं को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य है, और युवाओं की आवाज़ गूंज रही है: “यह हमारा समय है।” सरकार ने 2025 को “उद्योग और रोजगार वर्ष” घोषित किया, ₹89,000 करोड़ से अधिक निवेश आकर्षित किया, भोपाल जिले के अचारपुरा औद्योगिक क्षेत्र में पांच बड़ी औद्योगिक इकाइयों में 400 करोड़ से 1,500 युवाओं को रोजगार मिला, एक लाख सरकारी नौकरियों की घोषणा की, एक लाख से अधिक निजी रोजगार अवसर पैदा किए, और कार्यरत युवाओं को ₹5,000 मासिक प्रोत्साहन राशि देने की पहल की। ये पहलें केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की पुनर्परिभाषा हैं। राज्य सरकार शिक्षा को सिर्फ परीक्षा की तैयारी नहीं, बल्कि जीवन निर्माण की प्रक्रिया मानती है सभी विश्वविद्यालयों में रोजगार–केंद्रित और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला है, ग्रीन एनर्जी आधारित पाठ्यक्रम जोड़े गए हैं, उच्चस्तरीय कौशल प्रशिक्षण दिया जा रहा है, एनसीसी/एनएसएस की छात्राओं को सम्मानित किया गया है और यूथ एक्सचेंज में भाग लेने वाली बेटियों को मंच और प्रेरणा दी गई है। लाड़ली बहना योजना के तहत आर्थिक संबल के साथ भाईदूज पर उपहारों की पहल की गई, जो हर बेटी के सपनों को पंख देने जैसा है। महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी के 500वें जन्मवर्ष पर आयोजित कार्यक्रमों ने युवाओं को नेतृत्व, साहसऔरसमर्पणकीप्रेरणादीहै।यहइतिहाससेसीखकरभविष्यगढ़नेकास्पष्टसंकल्पहै।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप ₹89,000 करोड़ से अधिक निवेश, दो लाख युवाओं को सीधा लाभ, पाँच औद्योगिक इकाइयाँ, एक लाख सरकारी और एक लाख निजी नौकरियों के अवसर, और प्रोत्साहन राशि के रूप में ₹5,000 प्रतिमाह की व्यवस्था जैसे आँकड़े गवाही देते हैं कि मध्यप्रदेश अब केवल ‘हृदय प्रदेश’ नहीं, ‘युवा प्रदेश’ बन चुका है। यह बदलाव केवल आँकड़ों की कहानी नहीं, यह युवाओं के आत्मविश्वास की आवाज़ है एक नई उड़ान, एक नया मध्यप्रदेश, जो विकसित भारत की आकांक्षा को साकार करने की दिशा में अग्रसर है।
स्वामी विवेकानंद का भारत अगर वे होते,वे किसी युवा को एक पत्र लिखते। वे शायद लिखते:
“प्रिय युवा,
जीवन केवल तेज़ दौड़ने की नहीं, सही दिशा में चलने की यात्रा है।
तुम्हारे हाथों में केवल भविष्य नहीं, वर्तमान की गरिमा भी है।
इसीलिए जब तुम अगली बार किसी ग़लती से डरो, तो याद रखना तुम ग़लती नहीं हो। तुम एक संभावना हो।
तुम्हारा एक अच्छा कार्य, एक नया भारत गढ़ सकता है।”
2047 मे जब भारत विश्वमंच पर खड़ा होगा… और तुम्हारा नाम लिखा होगा उस पृष्ठ पर युग निर्माण के दीपक तुम युवा हो!
अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर आइए, हम सब एक प्रण लें हम अपने भीतर के स्वामी विवेकानंद,एपीजे अब्दुल कलाम को जगाएँ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 के विकसित भारत के संकल्प को अपनाएँ, और हमारे सभी महापुरुषों के सपनों की भूमि पर एक ऐसा भारत बनाएं,जहाँ हर युवा के भीतर एक दीपक हो,जो स्वयं को रोशन करे, और राष्ट्र को प्रकाशित करे।
“युवा केवल राष्ट्र की आशा नहीं, राष्ट्र की आत्मा है। और जब आत्मा जागती है, तब युग बदलता है।” जब युवा जागेगा, तभी युग बदलेगा।
तू भोर का पहला तारा है,
परिवर्तन का एक नारा है
ये अंधकार कुछ पल का है
फिर सब कुछ तुम्हारा है
ये लेख tfipost.in के लिए चंद्रशेखर पटेल ने लिखा है
चंद्रशेखर पटेल रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर मध्यप्रदेश के कार्यपरिषद सदस्य हैं और लेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।