जान्हवी कपूर से वरुण धवन तक: SC के कुत्तों के आदेश पर सेलिब्रिटी टूलकिट अभियान और वैक्सीन लॉबी?

कई फिल्मी सितारों ने इस आदेश को "अमानवीय" और "बिना दया वाला" कहा है

जान्हवी कपूर से वरुण धवन तक: SC के कुत्तों के आदेश पर सेलिब्रिटी टूलकिट अभियान और वैक्सीन लॉबी?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ये फैसला सुनाया है कि दिल्ली‑एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर उन्हें खास शेल्टर में भेजा जाए। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कई फिल्मी सितारों ने इस आदेश को “अमानवीय” और “बिना दया वाला” कहा है।

वहीं कुछ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि क्या ये हंगामा सिर्फ कुत्तों से प्यार की वजह से है, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा एजेंडा है? जैसे कि कोई प्लान किया गया अभियान,  जिसे “टूलकिट” कहा जा रहा है। जो शायद वैक्सीन या पब्लिक हेल्थ से जुड़ी कंपनियों का फायदा बढ़ाने के लिए चलाया जा रहा हो।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और इसका मकसद

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें दिल्ली‑एनसीआर की सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर पकड़कर शेल्टर्स में भेजने का निर्देश दिया गया। अदालत ने विशेष रूप से बच्चों और शिशुओं को कुत्तों द्वारा काटे जाने और रैबीज़ जैसी खतरनाक बीमारी के बढ़ते मामलों को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए चिंता का कारण बताया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान सरकार की बात रखते हुए कहा, “हम अपने बच्चों की सुरक्षा को दाँव पर नहीं लगा सकते सिर्फ इसलिए क्योंकि कुछ लोग जानवर प्रेमी हैं।” इस कड़े शब्दों वाले बयान से स्पष्ट होता है कि अदालत ने घनी आबादी वाले इलाकों में मानव सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।

सेलेब्स का विरोध

कुछ ही समय में सोशल मीडिया पर कई मशहूर अभिनेताओं ने इस फैसले का विरोध जताया। जन्हवी कपूर, वरुण धवन, रूपाली गांगुली, सोनाक्षी सिन्हा, ज़ीनत अमान, आदि ने इंस्टाग्राम पर याचिकाएं साझा कीं।

जन्हवी कपूर ने कहा कि ये वही कुत्ते हैं जो बच्चों के स्कूल से लौटने पर पूंछ हिलाते हैं,  यानी उन्होंने कुत्तों को परिवार का हिस्सा बताकर एक भावनात्मक तस्वीर पेश की। वहीं, रूपाली गांगुली ने कहा कि कुत्ते हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं, और अगर इन्हें हटाया गया तो हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य भी कमज़ोर हो जाएंगे।

लेकिन इन सेलेब्रिटीज़ की बातों में एक जैसी बातें दिख रही हैं,  जैसे कि एक ही तरह की याचिकाएं शेयर करना, भावुक कहानियाँ बताना और यह कहना कि कोई और “वैज्ञानिक और मानवीय” तरीका अपनाया जाए।

इस तरह की एक जैसी बातें देखकर कई लोग कह रहे हैं कि ये कोई पहले से तैयार किया गया प्लान (या “टूलकिट”) लग रहा है, जिसका मकसद लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करके उनकी राय को एक खास दिशा में मोड़ना है।

साथ ही, इन सितारों द्वारा फैलाए गए कैंपेन में उन लोगों की बात कम दिखाई देती है, जिन्हें रोज़ाना आवारा कुत्तों के साथ सामना करना पड़ता है। जैसे यात्रियों, बच्चों, बुज़ुर्गों, दुकानदारों की सुरक्षा संबंधी चिंताएं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश इन्हीं लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया गया है।

क्या टीका लॉबी इसमें शामिल है?

एक और नजरिया ये भी है कि इतने सारे कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में भेजने का असली मकसद कहीं उन्हें बड़े स्तर पर टीका लगाना (वैक्सीनेशन) तो नहीं है? क्योंकि रैबीज़ जैसी खतरनाक बीमारियों से बचाने के लिए कुत्तों को वैक्सीन देना जरूरी होता है, और इसे एक जरूरी पब्लिक हेल्थ उपाय माना जाता है।

अगर सच में ऐसा होता है, तो सबसे ज़्यादा फायदा किसे होगा? उन एनजीओ को जो जानवरों के लिए काम करते हैं, वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को, और फार्मा (दवाई) कंपनियों को। क्योंकि अगर कुत्ते शेल्टर में रहेंगे, तो उनका टीकाकरण, नसबंदी और इलाज बार-बार करना पड़ेगा। ये सब करने के लिए बहुत पैसा और लंबा वक्त चाहिए होता है।

ऐसी स्थिति में लोग ये सवाल भी उठाते हैं कि क्या इस पूरी प्रक्रिया में सब कुछ साफ-सुथरा और ईमानदारी से हो रहा है या नहीं? इसलिए पारदर्शिता और ज़वाबदेही की ज़रूरत है।

जानवरों के साथ-साथ मानव हित का भी ध्यान रखना ज़रूरी है

कई जानवरों के लिए काम करने वाले लोग और विशेषज्ञ मानते हैं कि इस समस्या का हल शांत और इंसानियत भरे तरीके से निकलना चाहिए। उनके मुताबिक कुछ आसान और असरदार कदम ये हो सकते हैं:

इससे इंसानों और जानवरों दोनों का भला हो सकता है।

 भावनात्मक बहस या जनता की सुरक्षा?

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कई बातों से जुड़ा है,  जैसे लोगों की सेहत, शहर की सुरक्षा, जानवरों के हक़ और हमारी संस्कृति की भावनाएं। कई सेलेब्रिटी जानवरों के अधिकार की बात करते हैं, जो ज़रूरी भी है। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि इनकी आवाज़ें इंसानों की सुरक्षा से जुड़ी असली परेशानियों को पीछे छोड़ देती हैं।

तो सवाल उठता है, क्या अब कुत्तों के लिए प्यार एक तरह का प्रचार बन गया है? या फिर लोगों की सुरक्षा जैसे जरूरी मुद्दे भावनाओं की भीड़ में खो गए हैं? अब वक्त है कि हर चीज़ को साफ और जिम्मेदारी से देखा जाए, ताकि इंसान और जानवर दोनों शहर में शांति और सुरक्षा से साथ रह सकें।

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