बिहार में राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों की हवा निकल चुकी है। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चल रही बहस संसद में विपक्ष के हंगामे से वास्तविक स्थिति बिल्कुल उलट है। राजनीतिक आलोचकों का आरोप है कि एसआईआर प्रक्रिया मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है या इसमें पारदर्शिता का अभाव है। वहीं भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के आंकड़े बिल्कुल अलग कहानी बयां करते हैं।
पढें अमित मालवीय का पोस्ट
भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के विरोध को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा है। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक तीखे ट्वीट में कहा कि संसद में विपक्ष के हंगामे के बावजूद, बिहार में किसी भी मतदाता के नाम शामिल करने या बाहर करने के संबंध में एक भी शिकायत दर्ज नहीं की गई है। उन्होंने तर्क दिया कि इससे विपक्ष की विश्वसनीयता कमज़ोर होती है और यह साबित होता है कि विपक्ष के पास रचनात्मक एजेंडे का अभाव है।
जैसा कि चुनाव आयोग के आधिकारिक बुलेटिन से स्पष्ट है, 1 से 8 अगस्त, 2025 के बीच बिहार में किसी भी राजनीतिक दल द्वारा मसौदा मतदाता सूची में किसी भी मतदाता को शामिल करने या बाहर करने के विरुद्ध एक भी दावा या आपत्ति दर्ज नहीं की गई है। तालिका में भाजपा, कांग्रेस, राजद और अन्य सहित प्रमुख राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों की सूची दी गई है, जिनके लिए “0” दावे प्राप्त हुए और निपटाए गए। यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इन्हीं दलों ने पहले भी मतदाता सूची की सटीकता और निष्पक्षता पर चिंता जताई थी।
क्या है वास्तविकता
यह वास्तविकता एसआईआर के तहत कथित तौर पर बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित करने की साजिशों को कमज़ोर करती है। चुनाव आयोग ने यह भी दोहराया कि 1 सितंबर तक मतदाता और दल दोनों द्वारा दावे और आपत्तियां दर्ज कर सकते हैं और नामों को मनमाने ढंग से हटाने से रोक सकते हैं। मसौदा मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया केवल उचित जांच और प्रतिक्रिया का अवसर देने के बाद ज़िम्मेदार अधिकारियों द्वारा जारी आदेश के ज़रिए ही हो सकती है।
विपक्ष पर लगाए ये आरोप
अमित मालवीय ने विपक्ष पर हर प्रगतिशील क़ानून और सुधार में बाधा डालने का आरोप लगाया, यहां तक कि उन क़ानूनों और सुधारों में भी जिन्हें उन्होंने ख़ुद अतीत में प्रस्तावित किया था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण लागू नहीं कर पाए। उनके अनुसार, उनका वर्तमान दृष्टिकोण लोकतंत्र की रक्षा से ज़्यादा राजनीतिक दिखावे पर केंद्रित है।
भारत के चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया एक नियमित, पारदर्शी प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य मतदाता सूचियों की सटीकता सुनिश्चित करना है। हालांकि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने संसद के अंदर इस प्रक्रिया पर सवाल उठाने का विकल्प चुना है, लेकिन राज्य स्तर पर औपचारिक चुनौतियों का अभाव इस बात पर सवाल उठाता है कि क्या उनकी आपत्तियां वास्तविक चिंताओं या राजनीतिक दिखावे पर आधारित हैं।