तुर्की द्वारा हाल ही में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुला समर्थन करना एक भारी कूटनीतिक चूक साबित हुआ है। इसके चलते भारतीय यात्रियों में तुर्की के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा देखने को मिला, जिसका सीधा असर पर्यटन पर पड़ा। जून 2025 में तुर्की आने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में 37% की भारी गिरावट दर्ज की गई और यह झटका तुर्की की पर्यटन-निर्भर अर्थव्यवस्था पर सीधा पड़ा है।
तुर्की के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 में केवल 24,250 भारतीय पर्यटक तुर्की पहुंचे, जबकि जून 2024 में यह संख्या 38,307 थी। मई के आंकड़े भी निराशाजनक रहे – 2024 में 41,554 के मुकाबले मई 2025 में सिर्फ 31,659 भारतीयों ने तुर्की की यात्रा की। यह गिरावट सामान्य नहीं है, बल्कि भारत के नागरिकों द्वारा तुर्की की नीति का एक सोचा-समझा विरोध है।
पाकिस्तान में तुर्की ड्रोन और भारत की नाराज़गी
मामला तब गरमाया जब 9 मई को भारत ने खुलासा किया कि पाकिस्तान ने पहलगाम में किए गए एक सीमा-पार हमले में तुर्की में बने SONGAR ASISGUARD ड्रोन का इस्तेमाल किया था, जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान गई। हमले के बाद मलबे से यह साफ हो गया कि ड्रोन तुर्की निर्मित थे, जिससे अंकारा की भूमिका पर कोई शक नहीं रहा।
भारत की जनता का गुस्सा तुरंत भड़क उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने भाषण में तुर्की का नाम सीधे तौर पर लिया और चीन व अज़रबैजान के साथ उन्हें उन तीन देशों की लिस्ट में रखा जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुला समर्थन कर रहे थे। ये तीनों देश पहले भी OIC और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे हैं और अब भारत से अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं।
और सबसे बड़ी बात, अब इन्हें भारतीय उपभोक्ताओं के गुस्से का भी सामना करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर Boycott Turkey की मुहिम छिड़ गई, और MakeMyTrip, EaseMyTrip और Cleartrip जैसे बड़े ट्रैवल प्लेटफॉर्म्स ने तुर्की डेस्टिनेशन की प्रमोशन को रोक दिया। इस बहिष्कार का असर अब आंकड़ों में भी साफ दिखाई दे रहा है।
पर्यटन पर पड़ा असर, भारतीय यात्रियों की भावनाएं बदलीं
मई और जून तुर्की के लिए भारतीय पर्यटकों की सबसे व्यस्त सीज़न होते हैं। Cappadocia की हॉट-एयर बलून राइड हो या Istanbul के Bosphorus क्रूज़ – तुर्की लंबे समय से भारतीय परिवारों, हनीमून कपल्स और बॉलीवुड शूटिंग्स का पसंदीदा ठिकाना रहा है। लेकिन इस साल सब कुछ बदल गया।
एक सीनियर भारतीय अधिकारी ने बताया कि मई में कुछ प्री-बुक की गई यात्राएं तो हुईं, लेकिन असली असर जून में दिखा जब ड्रोन का सच और तुर्की की स्थिति सार्वजनिक हुई। “भारतीय आमतौर पर ट्रैवल एडवांस में बुक करते हैं। असली प्रभाव अब दिखने लगा है और यह तो बस शुरुआत है,” अधिकारी ने चेतावनी दी।
मोदी का साइप्रस दौरा: एरदोगन को कूटनीतिक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कनाडा में G7 समिट में शामिल होने जा रहे थे, तो रास्ते में अचानक साइप्रस में रुक गए। यह रुकना सिर्फ दिखावे के लिए नहीं था, बल्कि एक सोच-समझकर लिया गया कूटनीतिक कदम था। मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ मिलकर निकोसिया के उस पुराने इलाके का दौरा किया जो UN की सीज़फायर लाइन के पास है। इसका मकसद था दुनिया का ध्यान इस बात पर ले जाना कि तुर्की ने 1974 से उत्तरी साइप्रस पर अवैध कब्जा कर रखा है।
इस बीच, भारत की खुफिया एजेंसियों ने यह भी ट्रैक किया कि 28 अप्रैल को Turkish C-130E Hercules विमान कराची में उतरा, और 30 अप्रैल को तुर्की के लेफ्टिनेंट जनरल यासर कादिओग्लू ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान एयरफोर्स के साथ बैठक की। इससे ड्रोन ट्रांसफर और गहरे सैन्य संबंधों को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए। जवाब में, पाक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और आर्मी चीफ फील्ड मार्शल असीम मुनिर ने तुर्की जाकर खुद तुर्की नेतृत्व का शुक्रिया अदा किया।
बहिष्कार के नतीजे: अब आर्थिक झटका भी शुरू
तुर्की का पर्यटन क्षेत्र, जो हाल के वर्षों में भारतीय पर्यटकों की वजह से तेजी से बढ़ा था, अब तगड़ी मार झेल रहा है। भारतीय ट्रैवलर अब सिर्फ पर्यटक नहीं, एक राजनीतिक ताकत बन चुके हैं – और अंकारा को यह कड़वा सच समझ आ रहा है।
संदेश बिल्कुल साफ है, जो देश भारत के खिलाफ हिंसा या आतंक का साथ देंगे, उन्हें न सिर्फ डिप्लोमैटिक रूप से, बल्कि आर्थिक रूप से भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। और तुर्की के लिए इस गर्मी के आंकड़े, एरदोगन के किसी भी बयान से ज्यादा तेज़ असर दिखा रहे हैं।