5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के शांत पहाड़ी गांव धाराली में एक भयानक फ्लैश फ्लड आया, जिसमें कई जानें चली गईं, घर बह गए और एक मंदिर मलबे में दब गया। इस बाढ़ में कम से कम 4 लोगों की मौत हुई, 100 से ज़्यादा लोग लापता हैं, बाजार तबाह हो गया और गांव का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया।
शुरुआत में इसे बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की वजह माना गया, लेकिन मौसम और सैटेलाइट डेटा ने बताया कि बारिश इतनी ज्यादा नहीं थी। इसके बाद शक हुआ कि शायद किसी ग्लेशियर का हिस्सा टूट गया या कोई ग्लेशियल झील अचानक फट गई। भारतीय सेना, SDRF और NDRF की टीमें राहत-बचाव में जुटीं, लेकिन खराब मौसम और मुश्किल रास्तों ने उन्हें काफी परेशान किया।
पुरानी त्रासदियों का साझा इतिहास
धाराली भयानक घटना अकेली नहीं है। पिछले कुछ दशकों से उत्तरकाशी और आसपास के क्षेत्रों में ऐसे आपदाएँ बार-बार आयी हैं:
- 2013 – केदारनाथ व उत्तरकाशी में भारी बारिश, फ्लैश फ्लड और भूस्खलन से भारत की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक बनी।
- अगस्त 2012 – बादलों के फटने और भारी वर्षा ने कई गाँवों को तहस‑नहस कर दिया; 34 से अधिक लोग मारे गए।
- 2021 – चमोली में एक ग्लेशियल झील फटने से नीचे की तरफ बनी दो जल विद्युत (हाइड्रो पावर) परियोजनाएं बह गईं और पूरी तरह तबाह हो गईं।
- हर साल मानसून की तीव्रता, पिल्ग्रिमों की पैदल यात्राएँ और नदी-पुलों को तोड़ते संकट ने इस क्षेत्र को जोखिम क्षेत्र घोषित कर दिया।
ये घटनाएँ बताती हैं कि उत्तरकाशी में फ्लैश फ्लड तेज़ी से बढ़ रहे हैं, अधिक तीव्र और जानलेवा होते जा रहे हैं।
फ्लैश फ्लड क्या होता है?
फ्लैश फ्लड एक अचानक और भयंकर बाढ़ होती है, जो भारी बारिश, ग्लेशियर टूटने या झील फूटने के कारण कुछ ही घंटों में आती है। यह सामान्य बाढ़ों से अलग होती है क्योंकि यह अचानक, तेज़ और बेहद खतरनाक होती है।
धाराली में मामले में, दिनभर में मात्र 95.4 मिमी बारिश दर्ज हुई, जो क्लाउडबर्स्ट के मानक से कम थी। फिर भी इतनी तबाही हुई, जो साफ़ तौर पर ग्लेशियर या ग्लेशियर लेक फटने से हुई हमले की चेतावनी देती है।
उत्तरकाशी में जोखिम के प्रमुख कारण
कई प्राकृतिक और मानवीय कारण इस ज़िले को खतरनाक फ्लैश फ्लड क्षेत्र बनाते हैं:
- भौगोलिक बनावट: यहां की पहाड़ियाँ बहुत ढलान वाली और घाटियाँ संकरी हैं, जिससे पानी और मलबा बहुत तेजी से नीचे बहता है।
- जलवायु परिवर्तन: तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और नई झीलें बन रही हैं, जो बहुत कमजोर और खतरनाक मानी जाती हैं।
- बदलता बारिश का पैटर्न: मानसून अब पहले से ज्यादा अनियमित और तेज़ हो गया है।
- अव्यवस्थित निर्माण: बिना सोच-समझ के बनाई गई सड़कों, होटलों और बिजली परियोजनाओं ने पहाड़ों को कमजोर कर दिया है।
- पुराना जमा मलबा: पुराने समय से जमा ढीला पत्थर और ग्लेशियर का मलबा बारिश या हल्के झटके से बह जाता है और नदी जैसी तेज़ धारा बन जाता है।
क्या केवल फ्लैश फ्लड ही खतरा हैं?
नहीं। हिमालय में जोखिम कई रूपों में आता है, जैसे भूस्खलन, हिमपहाड़ का फटना, ग्लेशियर टूटना, और भूकंप। ये घटनाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक छोटे भूस्खलन से ग्लेशियल झील फट सकती है, एक भूकम्प से ग्लेशियर टूट सकता है।
इसलिए फ्लैश फ्लड सिर्फ भारी बारिश से नहीं होती, बल्कि यह हिमालयी इलाकों की नाजुक स्थिति और इंसानों द्वारा डाले गए दबाव का मिला-जुला असर होता है, जिसे जलवायु परिवर्तन और बेतरतीब विकास ने और भी खतरनाक बना दिया है।
अब क्या करना चाहिए?
धाराली की त्रासदी चेतावनी है, लेकिन इससे सीख लेकर अब समय है कि हम कार्रवाई करें-
- ग्लेशियर और ग्लेशियल झीलों की रियल-टाइम निगरानी करें (सैटेलाइट और ग्राउंड सेंसर से)।
- क्लाउडबर्स्ट और GLOFs के लिए बेहतर पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली विकसित करें।
- पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण के नियम सख्त करें।
- बाढ़ आने वाले गांवों में लोगों को जागरूक करें और उन्हें आपदा से बचने की तैयारी की प्रैक्टिस कराएं।
धाराली का विनाशकारी हादसा सिर्फ एक दुखद अध्याय नहीं है, यह हिमालय की चुप्पी है, जो अब हमें चेतावनी दे रही है। अगली त्रासदी से पहले हमें सुनना होगा।