टैरिफ टेंशन और व्हाइट हाउस की ठनक के बीच पीएम मोदी का संयुक्त राष्ट्र महासभा से किनारा, डेलिगेशन में कौन जाएगा ?

इसी महीने न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की संभावना अब न के बराबर है।

टैरिफ टेंशन और व्हाइट हाउस की ठनक के बीच पीएम मोदी का यूएनजीए से किनारा, जानें कौन जाएगा डेलिगेशन में

भारत समझौता तब करेगा, जब उसे बराबरी मिलेगी।

इसी महीने न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की संभावना अब न के बराबर है। उनकी जगह विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। पीएम मोदी का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब भारत-अमेरिका संबंधों में टैरिफ विवाद, रूसी तेल पर अमेरिकी आपत्ति और व्हाइट हाउस की बदलती प्राथमिकताओं के कारण तनाव है।

पीएम मोदी का संयुक्त राष्ट्र महासभा में न जाना-संकेतों से भरा फैसला

संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व सामान्यतः प्रधानमंत्री स्तर पर होता है, खासकर जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई बड़ा संदेश देना हो। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 26 सितंबर के लिए प्रधानमंत्री के नाम पर एक स्लॉट रिजर्व था। लेकिन, विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि इस बार विदेश मंत्री जयशंकर भारत का नेतृत्व करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री का न्यूयॉर्क जाना अभी “यात्रा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं” है।

इससे संकेत साफ है कि भारत इस बार उच्च-स्तरीय मुलाकात से बचते हुए एक “कूटनीतिक बैलेंस” बनाना चाहता है।

कूटनीतिक बैकड्रॉप – क्यों जरूरी है यह दूरी

ट्रंप-मोदी मीटिंग से बचाव: भारत नहीं चाहता कि मौजूदा टैरिफ विवाद और पाकिस्तान-फैक्टर के बीच कोई हाई-प्रोफाइल मीटिंग गलत संदेश दे।

ट्रेड डील पर प्रगति का अभाव: भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौता ठंडे बस्ते में है। ऐसे समय में मीटिंग केवल “फोटो-ऑप” रह जाती।

रूस-भारत एनर्जी डील और अमेरिकी दबाव: भारत रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखे हुए है। अमेरिका इसे रोकने के लिए दबाव बना रहा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में जयशंकर की भूमिका-भारत का बैलेंसिंग एक्ट

विदेश मंत्री एस. जयशंकर अपने तेज-तर्रार और स्पष्ट रुख के लिए जाने जाते हैं। वे यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबीहा से मिलेंगे। अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकन के साथ भी उनकी मुलाकात संभावित है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका मिशन होगा कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का संदेश स्पष्ट रूप से दिया जाए।

जयशंकर के संभावित भाषण के मुख्य बिंदु

जयशंकर का यूएनजीए संबोधन भारत के कूटनीतिक रुख को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट करेगा। इसमें ये मुख्य बिंदु शामिल हो सकते हैं —

वैश्विक दक्षिण की आवाज: भारत “ग्लोबल साउथ” (विकासशील देशों) की समस्याओं पर जोर देगा। वहीं खाद्य सुरक्षा, विकास, वित्त और वैक्सीन समानता जैसे मुद्दे भी उठा सकते हैं। इसके साथ ही G20 में अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य बनाने की सफलता को उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है।

आतंकवाद पर सख्त रुख: भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठाएगा। जैसा कि वह पहले भी करता रहा है। FATF और UN सूचीबद्ध आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग दोहराई जाएगी।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर संतुलित संदेश: भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति और संवाद का आह्वान करेगा। लेकिन किसी पक्ष को दोष देने से भी बचेगा। भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को “राष्ट्रहित का मुद्दा” बताकर जस्टिफाई करेगा।

बहुध्रुवीय दुनिया का समर्थन: जयशंकर कह सकते हैं कि “21वीं सदी की दुनिया को 20वीं सदी की मानसिकता से नहीं चलाया जा सकता।” UNSC में सुधार और भारत की स्थायी सदस्यता की मांग फिर से जोर पकड़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन और सतत विकास : भारत नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और इंटरनेशनल सोलर अलायंस की उपलब्धियां पेश करेगा। विकसित देशों से क्लाइमेट फाइनेंस और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर स्पष्ट रोडमैप मांगेगा।

राजनीतिक संदेश – भारत की रणनीतिक स्वायत्तता

पीएम मोदी का संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में न जाना और जयशंकर का नेतृत्व करना दोनों मिलकर यह संकेत देते हैं कि भारत अब “समान साझेदारी” पर जोर दे रहा है। वह दबाव में आकर किसी उच्च-स्तरीय मीटिंग में शामिल नहीं होगा। भारत का रुख स्पष्ट होगा पहले नतीजे, फिर मीटिंग।

सख्त लेकिन संतुलित कूटनीति

पीएम मोदी का संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में न जाना अमेरिका और बाकी दुनिया के लिए स्पष्ट संकेत है कि नई दिल्ली अपनी विदेश नीति को परिणाम-उन्मुख बनाएगा। इससे ट्रंप को भी साफ संदेश जाएगा कि भारत के साथ धमकी और टैरिफ से रिश्ते नहीं सुधरेंगे। इसके साथ ही दुनिया को भी संदेश जाएगा कि भारत संतुलित और स्वतंत्र कूटनीति अपनाएगा। संयुक्त राष्ट्र को भी संदेश जाएगा कि भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज बनकर रहेगा और UNSC सुधार की मांग जारी रखेगा।

इस बार न्यूयॉर्क से आने वाला भारत का संदेश न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया के लिए साफ होगा-भारत समझौते तभी करेगा जब उसे सम्मान और बराबरी मिलेगी।

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