21 सितंबर 2025 यानी रविवार को हरिद्वार के चण्डी घाट पर एक बेहद ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला, जिसने हर हिंदू हृदय को झकझोर दिया। अयोध्या फ़ाउंडेशन की संस्थापक मीनाक्षी शरण ने देश–विदेश से आए हिंदुओं और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सामूहिक तर्पण का आयोजन किया। यह तर्पण उन करोड़ों अज्ञात हिंदू बलिदानियों की स्मृति में किया गया, जिन्होंने आक्रांताओं की तलवार पर शीश रख दिया, लेकिन धर्म, आस्था, पहचान और संस्कृतिसेसमझौतानहींकिया।
14 सदियों का रक्तरंजित इतिहास – धर्मरक्षा के लिए 80 करोड़ हिंदुओं का बलिदान
मीनाक्षी शरण ने बताया कि ऐतिहासिक आकलन के अनुसार बीते 14 सदियों में लगभग 80 करोड़ हिंदुओं ने धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवाए। उन्होंने लड़ते–लड़ते मरना स्वीकार किया लेकिन कभी अपने सनातन धर्म से विमुख नहीं हुए। उनके संघर्ष और बलिदान की वजह से ही आज भारत अपनी मूल सांस्कृतिक पहचान के साथ खड़ा है।
उन्होंने कहा कि उन पूर्वजों का ऋण आज भी हम पर बकाया है। यदि हमें आने वाले समय में इस सभ्यता को जीवित रखना है, तो हमें न सिर्फ जागरूक होना होगा, बल्कि अपने पूर्वजों के बलिदान को जीवित रखने के लिए ऐसे सामूहिक तर्पण करना ही होंगे।
संतों, समाजसेवियों और प्रवासी हिंदुओं का विशाल संगम
इस पुण्य कार्य में देश के कोने–कोने से आए हिंदू प्रतिनिधियों और संस्थानों ने भाग लिया। जिसमें शाश्वत भारत ट्रस्ट देहरादून के संस्थापक डॉ. कुलदीप दत्ता, रिटायर्ड कर्नल विवेक गुप्ता, उद्योगपति अशोक कुमार विंडलस, हिंदू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. चारुदत्त पिंगले और श्रीराम लकुटेकर, हिंदू रक्षा मंच हिमाचल के मंत्री कमल गौतम, डॉ. महेंद्र, पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल हनी बख्शी, कर्नल राजीव कोतवाल, सनातन रक्षा बोर्ड से शैलेन्द्र डोभाल समेत अन्य लोगों ने भी इस ऐतिहासिक तर्पण में भागीदारी की।
डॉ. मीनाक्षी शरण ने बताया कि इस अभियान से हर वर्ष हिंदू जनजागृति समिति, सनातन प्रभात, हिंदू रक्षा मंच, शाश्वत भारत ट्रस्ट, गढ़ सेना, हिंदू युवा मोर्चा, भारत रक्षा मंच, Eternal Hindu Foundation सहित दर्जनों राष्ट्रीय संस्थाएं जुड़ रही हैं।
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि केन्या, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, लंदन, दुबई, कनाडा और सिंगापुर जैसे देशों में बसे हिंदू भी अपने–अपने क्षेत्रों में सामूहिक तर्पण कर इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।
हरिद्वार से आईं ये तस्वीरें बता रही हैं कि कैसे हिंदू समाज को अपने इतिहास, अपने बलिदानों और अपनी जड़ों को न भूलते हुए आने वाले समय में और भी संगठित होना होगा।