अमेरिकी अर्थशास्त्री और ट्रंप प्रशासन के पूर्व सलाहकार पीटर नवारो ने हाल ही में दावा किया कि रूस से तेल व्यापार कर भारत के ब्राह्मण मुनाफा कमा रहे हैं। सतही तौर पर उनका यह बयान मज़ाक जैसा लगता है, लेकिन गहराई से देखने पर यह वही पुराना भारत विरोधी नैरेटिव दिखाता है, जो दशकों से विदेशी थिंक टैंक और कुछ भारतीय चेहरों के ज़रिये चलाया जाता रहा है।
दोनों में से कोई ब्राह्मण नहीं
सबसे पहले तथ्यों की बात करें। नवारो ने जिन उद्योगपतियों-गौतम अडानी और मुकेश अंबानी-का नाम लिया, उनमें से कोई भी ब्राह्मण नहीं है। अडानी जैन हैं और अंबानी परिवार मोढ बनिया समुदाय से आता है, जिसे OBC वर्ग में गिना जाता है। यानी आरोप की बुनियाद ही झूठ पर टिकी है। असलियत यह है कि रूस से सस्ता तेल खरीदना भारत की राष्ट्रनीति का हिस्सा है, किसी जाति या वर्ग की निजी कमाई का नहीं।
राहुल गांधी और जॉर्ज सोरोस भी दोहराते रहे हैं यही नैरेटिव
पश्चिमी विश्लेषक अक्सर भारत पर हमला करने के लिए जाति का कार्ड खेलते हैं। ब्राह्मणों को “शोषक” बताना, हिंदू समाज को विभाजित करना और भारत की आर्थिक सफलताओं को शक के घेरे में लाना-ये सब पुराना खेल है। यही नैरेटिव राहुल गांधी और जॉर्ज सोरोस जैसे लोग भी लगातार दोहराते हैं। अडानी-अंबानी पर हमले, हिंदुत्व को लोकतंत्र के लिए खतरा बताना और विदेश नीति पर सवाल उठाना-सब एक ही स्क्रिप्ट का हिस्सा है।
दरअसल असली समस्या यह है कि भारत आज आत्मविश्वास से अपनी राह चुन रहा है। अमेरिका और यूरोप के दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदा क्योंकि यह राष्ट्रहित में था। इस फैसले से महंगाई पर काबू पाया गया और देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई। यही स्वतंत्रता और मज़बूती विदेशी ताकतों को असहज कर रही है।
हमेशा से होती रही है भारत को तोड़ने की कोशिश
इतिहास गवाह है कि औपनिवेशिक ताकतें हमेशा भारत को जाति और धर्म के आधार पर तोड़ने की कोशिश करती रही हैं। आज वही प्रयास “मानवाधिकार” और “लोकतंत्र” के नए जुमलों के साथ दोहराए जा रहे हैं। नवारो का बयान उसी कड़ी का हिस्सा है-भारत की बढ़ती ताकत को रोकने की एक असफल कोशिश।
भारत का जवाब साफ है। यह व्यापार किसी जाति विशेष का नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के लिए है। और जितना झूठ फैलाया जाएगा, उतना ही भारत सत्य और राष्ट्रवाद के साथ मज़बूत होकर खड़ा होगा।