‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद: यूपी से बिहार तक फैलती आग, साज़िश या आस्था?

रोहतास और हाजीपुर में लगे ऐसे ही पोस्टरों ने सामाजिक माहौल को गर्मा दिया है। सवाल यह है कि क्या यह केवल धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन है या फिर इसके पीछे कोई गहरी और सोची-समझी साज़िश काम कर रही है?

‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद: यूपी से बिहार तक फैलती आग, साज़िश या आस्था?

भारत की असली पहचान गंगा-जमुनी तहज़ीब और सहिष्णुता है।

नवरात्र का समय जब देशभर में शक्ति की पूजा, देवी आराधना और सांस्कृतिक उत्सव का माहौल होना चाहिए था। भारत के कई हिस्सों में अचानक एक नए विवाद से माहौल में तनाव भर गया है। “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टरों की बाढ़ ने उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक तनाव और बवाल को जन्म दिया। कानपुर, लखनऊ और बरेली में जिस विवाद ने पुलिस-प्रशासन को हिला दिया था, वही विवाद अब बिहार की ज़मीन पर उतर आया है।

रोहतास और हाजीपुर में लगे ऐसे ही पोस्टरों ने सामाजिक माहौल को गर्मा दिया है। सवाल यह है कि क्या यह केवल धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन है या फिर इसके पीछे कोई गहरी और सोची-समझी साज़िश काम कर रही है?

रोहतास का घटनाक्रम

रोहतास ज़िले के डेहरी ऑन सोन स्थित ईदगाह मोहल्ले में अचानक “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टर चस्पा पाए गए। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और कुछ ही घंटों में यह पूरे बिहार में चर्चा का विषय बन गया।

रोहतास के पुलिस अधीक्षक रौशन कुमार ने मीडिया से कहा कि पोस्टर में ऐसा कुछ नहीं है, जैसा कि वायरल में दावा किया जा रहा है। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। हालांकि स्थानीय लोगों में आशंका और असुरक्षा की भावना गहरी होती चली गई। लोगों का कहना था कि पोस्टरों के ज़रिए किसी खास समुदाय की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की जा रही है, ठीक उसी पैटर्न पर जैसा हाल ही में उत्तर प्रदेश में देखा गया।

हाजीपुर में तनाव और युवक की पिटाई

वैशाली जिले के हाजीपुर नगर थाना क्षेत्र के जढुआ टोले में भी इसी तरह के पोस्टर लगाए गए। मकानों की दीवारों पर “आई लव मोहम्मद” और कुछ धार्मिक नारे लिखे पोस्टर चस्पा किए गए।जैसे ही पोस्टर सामने आए, इलाके का माहौल बिगड़ने लगा। गुस्साए लोगों ने एक मुस्लिम युवक को पोस्टर लगाते हुए पकड़ लिया और उसकी जमकर पिटाई कर दी। इसके बाद पुलिस को तत्काल मौके पर पहुंचना पड़ा।

सदर एसडीपीओ सुबोध कुमार ने बताया कि पोस्टर लगाने वाले युवक को हिरासत में लिया गया है। पोस्टरों को जब्त कर लिया गया है। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। प्रशासन ने स्पष्ट किया कि ऐसी हरकत किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जांच की जाएगी कि आखिर इसके पीछे किसका हाथ है।

बरेली से उठी चिंगारी

इस पूरे विवाद की जड़ उत्तर प्रदेश में है। सबसे पहले कानपुर और लखनऊ में “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टर लगे थे। देखते ही देखते यह सिलसिला बरेली पहुंचा और वहां मामला हिंसक बवाल में बदल गया। बरेली में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) प्रमुख मौलाना तौकीर रज़ा के बेहद करीबी डॉ. नफीस और उनके सहयोगियों पर भीड़ को भड़काने और पुलिस पर हमला करने का आरोप लगा। पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि आईएमसी के पूर्व जिलाध्यक्ष नदीम खां ने तोड़फोड़ के दौरान पुलिस का वायरलेस सेट तक छीन लिया था ताकि गुप्त सूचनाएँ सुनी जा सकें।

बरेली पुलिस ने अब तक 31 लोगों की गिरफ्तारी की है, जिनमें आईएमसी जिलाध्यक्ष सादिक खान और संगठन के कई अन्य पदाधिकारी शामिल हैं। नगर निगम ने डॉ. नफीस की नावल्टी स्थित अवैध मार्केट को सील कर दिया, जिसमें आईएमसी का दफ़्तर भी था।

आई लव मोहम्मद बनाम आई लव महादेव

उत्तर प्रदेश में जैसे ही “आई लव मोहम्मद” पोस्टरों का विवाद उठा, उसके जवाब में हिंदू संगठनों ने “आई लव महादेव” लिखे पोस्टर और बैनर लगाना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि सड़कों पर धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन आपसी टकराव में बदल गया। बरेली में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने भी इस ट्रेंड की आलोचना की। उन्होंने कहा कि “नबी के प्रति प्यार दिलों में होना चाहिए, सड़कों पर नहीं। ऐसे पोस्टरों से मोहम्मद नाम का अपमान होता है।” लेकिन कट्टरपंथी संगठनों ने इसे आस्था का हिस्सा बताकर जारी रखा। अब वही पैटर्न बिहार में दोहराया जा रहा है।

संविधान और कानून की सीमा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को अपनी धार्मिक आस्था प्रकट करने और धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है। लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। यह “सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता” के अधीन है। यानी कि आस्था की आड़ में अगर कोई समूह पोस्टर लगाकर समाज में तनाव फैलाता है, तो वह न केवल कानून का उल्लंघन करता है बल्कि संविधान की भावना का भी अपमान करता है।

पुलिस और प्रशासन का तर्क यही है कि निजी धार्मिक भावनाएँ निजी दायरे तक सीमित रहनी चाहिए। जब इन्हें सार्वजनिक स्थलों पर भड़काऊ अंदाज में पेश किया जाता है, तो उनका असर समाज पर खतरनाक होता है।

साज़िश की परतें

कई सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाएं स्वतःस्फूर्त नहीं हैं। जिस तरह से नवरात्र जैसे संवेदनशील मौके पर एक साथ कई राज्यों में यह पोस्टर ट्रेंड उभरा है, वह किसी संगठित रणनीति की ओर इशारा करता है।

कट्टरपंथी संगठनों की भूमिका: बरेली बवाल और तौकीर रज़ा प्रकरण से साफ़ है कि कुछ धार्मिक संगठन इस ट्रेंड के पीछे सक्रिय हो सकते हैं।

राजनीतिक लाभ की कोशिश: साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण चुनावी राजनीति का हथियार बन चुका है। ऐसे विवाद मतदाताओं को बांटने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

सोशल मीडिया का हथियार: वीडियो और पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। यही वजह है कि पुलिस कई बार इंटरनेट सेवाएं बंद करने पर मजबूर हुई।

आस्था का अपमान या देश की सुरक्षा का सवाल?

भारत की ताक़त उसकी विविधता और सह-अस्तित्व में है। लेकिन जब आस्था का नाम लेकर सड़क पर पोस्टर युद्ध छेड़ा जाता है, तो यह सिर्फ़ धर्म का अपमान नहीं बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर हमला है। पहला, इससे समाज में आपसी अविश्वास बढ़ता है। दूसरा, पुलिस और प्रशासन का ध्यान विकास और सुरक्षा से हटकर भीड़ प्रबंधन में लग जाता है। तीसरा, यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की साज़िश हो सकती है। राष्ट्रवादी दृष्टिकोण साफ़ कहता है—आस्था दिलों में होनी चाहिए, दीवारों और सड़कों पर नहीं। धर्म के नाम पर अराजकता फैलाना असल में भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देना है।

उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक फैले “आई लव मोहम्मद” पोस्टर विवाद ने यह साफ़ कर दिया है कि यह केवल धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन नहीं, बल्कि समाज को बांटने और माहौल बिगाड़ने की सोची-समझी चाल हो सकती है। बरेली में हुई हिंसा और बिहार में उभरा तनाव चेतावनी है कि प्रशासन को अब इस पैटर्न को गंभीरता से लेना होगा। पुलिस की त्वरित कार्रवाई, अवैध ढांचों पर बुलडोज़र और गिरफ्तारी की सख़्ती से ही ऐसे तत्वों पर लगाम लगाई जा सकती है।

भारत की असली पहचान गंगा-जमुनी तहज़ीब और सहिष्णुता है। पोस्टर युद्ध या धार्मिक नारों की राजनीति उसी पहचान को खोखला करने की कोशिश है। अब वक्त है कि समाज समझे-धर्म का असली सम्मान मंदिर, मस्जिद या पोस्टरों में नहीं, बल्कि दिलों में होता है।

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