भारत ने UNHRC में पाकिस्तान को घेरा: भारत का तीख जवाब सुन छायी चुप्पी

भारतीय प्रतिनिधि का यह बयान केवल तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं थी। यह भारत की उस कूटनीतिक पंक्ति का हिस्सा है, जो पिछले कई सालों में धीरे-धीरे और धारदार होती गई है।

भारत ने UNHRC में पाकिस्तान को घेरा: भारत का तीख जवाब सुन छायी चुप्पी

भारतीय प्रतिनिधि का बयान भारत की नई विदेश नीति की आत्मविश्वास भरी झलक भी है।

जिनेवा की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में जब भारतीय प्रतिनिधि खड़े हुए तो सामान्य-सी कार्यवाही अचानक सख़्त हो गई। पाकिस्तान ने एक बार फिर पुराना एजेंडा उठाया—कश्मीर के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संबोधित करने की कोशिश। लेकिन भारत का जवाब इस बार पहले से कहीं ज़्यादा तीखा था। भारतीय प्रतिनिधि ने कहा—“पाकिस्तान आतंक का निर्यात करता है और अपने ही नागरिकों पर बम बरसाने से भी नहीं हिचकता।”

यह बयान केवल तात्का​लिक प्रतिक्रिया नहीं थी। यह भारत की उस कूटनीतिक पंक्ति का हिस्सा है, जो पिछले कई सालों में धीरे-धीरे और धारदार होती गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) और मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भारत बार-बार पाकिस्तान को उसके “दोहरे चरित्र” पर घेरता आया है।

2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जब पाकिस्तान ने UNGA में भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी, तब भारत की युवा राजनयिक स्नेहा दुबे का जवाब सुर्खियों में आया था। उन्होंने कहा था कि “पाकिस्तान दुनिया को मानवाधिकार पर लेक्चर देता है जबकि हकीकत यह है कि वही आतंकवाद का पालक और संरक्षक है।” उसी साल पलटवार में उन्होंने बलूचिस्तान और सिंध में हो रहे दमन का हवाला दिया। उस बयान को दुनिया ने नोटिस किया और भारत ने साफ कर दिया कि अब वह केवल सफाई नहीं देगा बल्कि पलटवार करेगा।

2021 और 2022 में भी भारत ने UNHRC में इसी लाइन को आगे बढ़ाया। बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में पाकिस्तानी सेना द्वारा अपने नागरिकों पर किए गए हमलों का हवाला देते हुए भारत ने कहा था कि पाकिस्तान को पहले अपने घर के हालात सुधारने चाहिए। यह पैटर्न लगातार मज़बूत होता गया—हर बार पाकिस्तान कश्मीर उठाता और भारत उसके जवाब में आतंकवाद और मानवाधिकार उल्लंघन का आईना दिखा देता।

जिनेवा में हाल का बयान इसी परंपरा की अगली कड़ी था, लेकिन फर्क यह कि इसमें स्वर और भी तेज़ था। भारत अब अपने आपको “रक्षात्मक” स्थिति में नहीं रखता। बल्कि दुनिया को यह संदेश देता है कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है। वह देश जो दशकों से आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का साधन बनाता रहा है, उसे किसी और के मानवाधिकार की बात करने का अधिकार नहीं है।

भारत का नैरेटिव अब और अधिक बुलंद हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की सफलता हो या एफएटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान को डलवाने का दबाव—हर स्तर पर भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि आतंकवाद का मुद्दा केवल उसका नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का सरोकार बने। यही कारण है कि जब भारत UNHRC में कहता है कि “पाकिस्तान आतंक का निर्यात करता है,” तो यह केवल कूटनीतिक जुमला नहीं बल्कि प्रमाणित सच्चाई की तरह सुना जाता है।

यह बयान भारत की नई विदेश नीति की आत्मविश्वास भरी झलक भी है। जी20 की अध्यक्षता, अमेरिका और यूरोप के साथ बढ़ती साझेदारी, रूस से संतुलित रिश्ते और एशिया में चीन को टक्कर देने की कोशिशों ने भारत को वैश्विक विमर्श में मज़बूत किया है। यही वजह है कि अब भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिचकिचाकर नहीं, बल्कि आक्रामक होकर बोल रहा है।

UNHRC की गूंजती हुई आवाज़ केवल पाकिस्तान को आईना दिखाने के लिए नहीं थी। यह दुनिया को यह याद दिलाने का प्रयास था कि आतंकवाद का असली अड्डा अब भी दक्षिण एशिया में मौजूद है, और यदि वैश्विक समुदाय इसे अनदेखा करेगा तो उसका ख़ामियाज़ा सबको भुगतना पड़ेगा।

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