फरवरी की ठंडी सुबह, वाशिंगटन के व्हाइट हाउस से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान आया—“भारत टॉप ऑफ द पैक है, लेकिन हमें रेसिप्रोकल टैरिफ चाहिए।” कुछ ही घंटों में दिल्ली, मुंबई और बैंगलुरु के कारोबारी गलियारों में चिंता की लहर दौड़ गई। अमेरिकी बाजार पर निर्भर भारतीय निर्यातक सकते में थे और राजनीतिक विश्लेषक यह सोचने लगे कि “ट्रंप-मोदी दोस्ती” की हकीकत आखिर कितनी टिकाऊ है।
ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50% तक के टैरिफ लगा दिए। इसका असर सिर्फ़ अर्थव्यवस्था पर नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति पर भी पड़ा। लेकिन इस सतही तनाव के पीछे एक और परत थी—बैकडोर बातचीत, जो चुपचाप आगे बढ़ रही थी।
टैरिफ विवाद: दोस्ती की पहली बड़ी परीक्षा
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते पिछले दो दशकों में लगातार मजबूत हुए हैं। रक्षा समझौते, तकनीकी साझेदारी, ऊर्जा सहयोग और लोगों-से-लोगों के रिश्ते—इन सबने दोनों देशों को “नेचुरल पार्टनर्स” बना दिया था। लेकिन ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ ने रिश्तों को नई चुनौती दी। भारत के लिए यह सिर्फ़ आर्थिक झटका नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी था—“अमेरिका अब फ्री राइड नहीं देगा।” राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद मान लिया कि इस फैसले से भारत-अमेरिका रिश्तों में दरार आई है। फिर भी, मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि संवाद बंद न हो।
रूस और चीन फैक्टर: मोदी का बैलेंसिंग एक्ट
तनाव के बीच, पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अलग-अलग मुलाकात की। इन मुलाकातों ने दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत वॉशिंगटन पर निर्भर नहीं है।
फरवरी की अमेरिका यात्रा: रक्षा और व्यापार की धुरी
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद पीएम मोदी की पहली अमेरिका यात्रा फरवरी में हुई। इस यात्रा से पहले ही ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा कर दी थी, जिससे माहौल तनातनी भरा था। फिर भी, दोनों नेताओं ने 2030 तक 500 अरब डॉलर द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य तय किया। सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग पर सहमति बनी। यानी, टैरिफ की तलवार लटकते हुए भी रिश्ते की धुरी “सुरक्षा सहयोग” बनी रही। यह संदेश साफ था—दोस्ती आर्थिक दबावों से बड़ी है।
जेडी वेंस की भारत यात्रा: आतंकवाद के साये में कूटनीति
अप्रैल में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत आए। यह यात्रा ऐतिहासिक थी क्योंकि एक दशक बाद किसी मौजूदा उपराष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया। लेकिन उसी दौरान पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। दुनिया ने देखा कि कैसे दोनों देशों ने इसे आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई का प्रतीक बना दिया। भारत ने अमेरिकी नेताओं को साफ कहा—“ट्रेड पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन आतंकवाद पर हम साथ खड़े हैं।”
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की सख़्ती, दुनिया की प्रतिक्रिया
पहलगाम हमले के बाद भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया। पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी गूंज सुनी गई। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अमेरिका में भाषण दिया और साफ़ कहा—“भारत आतंकवाद को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा।” यह बयान अमेरिकी थिंक-टैंक्स और मीडिया में गूंजा। भारत की छवि “सख़्त लेकिन जिम्मेदार शक्ति” के रूप में और मजबूत हुई।
NASA-ISRO: तनाव के बीच भरोसे का पुल
आर्थिक विवादों से अलग, विज्ञान और तकनीक पर रिश्ते अप्रभावित रहे। NASA और ISRO का संयुक्त मिशन NISAR 15 अगस्त को अपने अहम पड़ाव तक पहुंचा। यह संकेत था कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक विश्वास कायम है। यह भी कि टैरिफ विवाद तात्कालिक है, लेकिन दीर्घकालिक साझेदारी इससे कहीं बड़ी है।
सोशल मीडिया डिप्लोमेसी: ट्रंप-मोदी की दोस्ती का नया चेहरा
तनाव के बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने मोदी को “दोस्त” बताते हुए सोशल मीडिया पर संदेश दिया। मोदी ने जवाब दिया—“भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझेदार हैं।” यह सिर्फ़ औपचारिकता नहीं थी। यह संकेत था कि बैकडोर डील की जमीन तैयार है और दोनों नेता व्यक्तिगत स्तर पर रिश्तों को टूटने नहीं देंगे।
घरेलू राजनीति पर असर
भारत में विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा था कि “क्या मोदी सरकार अमेरिका से टकराव झेल पाएगी?” वहीं अमेरिका में डेमोक्रेट्स यह कह रहे थे कि ट्रंप की टैरिफ नीति रिश्तों को कमजोर कर रही है। यानी, यह विवाद सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति का भी मुद्दा बन गया। मोदी के लिए यह परीक्षा थी कि वे भारत की संप्रभुता और आर्थिक हितों की रक्षा करते हुए रिश्तों को संतुलित रखें।
बैकडोर डील: असली खेल
cदोनों देशों की टीमें लगातार “मिडिल ग्राउंड” खोजने की कोशिश कर रही थीं।
कृषि निर्यात पर राहत
रक्षा डील्स का विस्तार
डिजिटल व्यापार पर समझौता
यह सभी बातें बैकडोर चैनलों में उठाई जा रही थीं। बड़ा सवाल यही है—क्या यह बैकडोर डील जल्द ही औपचारिक समझौते में बदलेगी, या फिर टैरिफ विवाद का कांटा रिश्तों को और उलझा देगा?