“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे”: संघ की प्रार्थना की वैश्विक ध्वनि और भारत के उदय की गाथा

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” अब केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि भारत के उदय की घोषणा है। यह बताती है कि भारत माता की संतानों ने अपने संकल्प को विश्व मंच तक पहुंचा दिया है।

यह दृश्य केवल कला का संयोजन नहीं, बल्कि इतिहास का नया अध्याय है।

भारत माता की वंदना करने वाली प्रार्थना—“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” अब सिर्फ़ शाखाओं तक सीमित नहीं रही। दशकों तक यह प्रार्थना प्रातःकालीन शाखाओं में स्वयंसेवकों की सामूहिक प्रतिज्ञा का स्वर रही है। लेकिन अब यह विश्व मंच पर गूंज रही है। लंदन की सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा की गूंजती धुनों, शंकर महादेवन की ऊर्जावान आवाज़ में और हरीश भिमानी की गहरी व्याख्या में जब यह प्रार्थना सुनाई देती है, तो यह केवल संगीत नहीं बल्कि भारत की आत्मा का उद्घोष है।

यह दृश्य केवल कला का संयोजन नहीं, बल्कि इतिहास का नया अध्याय है। यह उस राष्ट्र की आत्मा की घोषणा है जिसने सहस्राब्दियों की यातनाएं झेलीं, जिसने विभाजन का घाव भी सहा और राजनीति के नाम पर अपने ही मूल्यों को गाली खाते देखा, लेकिन जिसने कभी मातृभूमि की आराधना को नहीं छोड़ी।

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प्रार्थना की आत्मा: मातृभूमि के प्रति शाश्वत निष्ठा

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” प्रार्थना की पहली पंक्ति ही उसके सार को स्पष्ट कर देती है। मातृभूमि को वत्सला—अर्थात् स्नेहमयी माता कहकर संबोधित करना भारतीय दृष्टिकोण का प्रतीक है। भारत की परंपरा में भूमि मात्र मृदा नहीं है। यह जीवंत है, चेतन है, पूजनीय है। यही दृष्टि गीता में “मां पृथ्वीम धरायाम” और वेदों में “माता भूमे पुत्रो अहं पृथिव्याः” के रूप में सामने आती है।

संघ की दृष्टि से यह प्रार्थना राष्ट्रवाद की नींव है। यहां राष्ट्र किसी जाति, किसी मज़हब, किसी सत्ता का नाम नहीं। यहां राष्ट्र माता है, जो वत्सला है, जो करुणामयी है और जिसकी गोद में बसे करोड़ों संतानों का कर्तव्य है कि उसकी रक्षा करें, उसका सम्मान करें और उसे जगतगुरु बनाने का प्रयास करें।

आखिर मातृभूमि की ही वंदना क्यों?

भारत की आज़ादी के बाद, सत्ता पर काबिज कांग्रेस और उससे जुड़े वामपंथी विचारक इस प्रार्थना को हमेशा संदेह की नज़र से देखते रहे। उनके लिए मातृभूमि की वंदना “हिंदू राष्ट्रवाद” थी। उन्होंने इस राष्ट्रभक्ति को “सांप्रदायिक” कहकर बदनाम किया।

विरोधाभास देखिए, इन्हीं नेताओं के लिए “भारत तेरे टुकड़े होंगे” जैसे नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थे। विश्वविद्यालयों में खुलेआम देश-विरोधी नारे लगाए जाते रहे और सेक्युलर खेमे ने उसे “युवाओं की बेचैनी” कहकर बचाने की कोशिश की। लेकिन वही लोग जब संघ की शाखाओं में सुबह-सुबह प्रार्थना की गूंज सुनते थे तो उन्हें उसमें सांप्रदायिकता नज़र आती थी।

असल में यह उनकी विकृत मानसिकता का परिचायक है। वे भारत माता को माता मानने से ही कतराते थे। उनके लिए राष्ट्र केवल सत्ता का ढांचा था, एक चुनावी गणित था। लेकिन संघ के लिए राष्ट्र जीवंत माता थी और यही विचार उन्हें खटकता था।

इतिहास के पन्नों पर संघ की छाप

आलोचक चाहे जितनी कोशिश करें, इतिहास साक्षी है कि संघ की यह प्रार्थना केवल शब्दों तक सीमित नहीं रही। स्वयंसेवकों ने इसे कर्म में ढाला।

1947, कश्मीर का पहला युद्ध: जब पाकिस्तान के कबायली दस्ता घाटी पर टूट पड़ा, तो संघ के स्वयंसेवक सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मोर्चे पर पहुंचे। केवल पहुंचे ही नहीं, इतिहास इसका साक्षी है, श्रीनगर एयरपोर्ट का रनवे जो खराब हो गया था, उसे दोबारा तैयार किया। सैनिकों के लिए खाना उपलब्ध करवाया।

गोवा मुक्ति आंदोलन (1961): पुर्तगाली साम्राज्यवाद के खिलाफ संघ के स्वयंसेवकों ने निर्णायक भूमिका निभाई।

1975 का आपातकाल: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब लोकतंत्र को कुचल दिया, तो संघ ही वह शक्ति था, जिसने पूरे देश में प्रतिरोध का बिगुल फूंका। हजारों स्वयंसेवक जेलों में गए, यातनाएं सहीं लेकिन झुके नहीं। शाखाएं लगनी बंद हो गईं, लेकिन उनकी जगह वैचारिक शाखाओं ने ले लीं। संघ अपने काम पर तब भी लगा रहा।

राम जन्मभूमि आंदोलन: संघ और उससे जुड़े संगठनों ने वह जनसैलाब खड़ा किया, जिसने पांच शताब्दियों की गुलामी की जंजीर तोड़ दी और अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर का मार्ग प्रशस्त किया। अगर संघ ने भारतीय इतिहास पर लगे उस धब्बे को न मिटाया होता तो आज राम मंदिर भी नहीं होता। इसका श्रेय तो संघ को ही जाता है।

कारगिल युद्ध (1999) में भी स्वयंसेवकों ने मोर्चे पर सेना का सहयोग किया और देशभर में जनसमर्थन जुटाया।

इन सबके केंद्र में वही प्रार्थना थी—“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे।”

लंदन में गूंजती भारत माता की आवाज़

आज वही प्रार्थना लंदन की धरती पर गूंज रही है। याद रहे, लंदन वही शहर है, जहां से कभी अंग्रेजों ने भारत पर राज किया था, हमारी संस्कृति और अस्मिता को मिटाने की योजनाएं बनाई और अब उसी लंदन में भारत माता की वंदना, ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर गूंज रही है। यह भारत के लिए गौरव की बात है।

यह केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं। यह इतिहास का पलटवार है। यह संदेश है कि भारत अब आत्मविश्वास से खड़ा है।

विरोधियों की बेचैनी और स्थायी पराजय

यह दृश्य उन सबके लिए असहनीय है, जो संघ के नाम से ही तिलमिला उठते हैं। सेक्युलर नेताओं की जमात, वामपंथी बुद्धिजीवी और विदेशी एजेंडे पर पलने वाले एनजीओ अब बेचैन हैं। क्योंकि जिस प्रार्थना को उन्होंने पार्कों की शाखाओं तक बांध दिया था, वही अब पूरी दुनिया में सम्मान पा रही है।

राम मंदिर निर्माण के समय यही गिरोह सड़कों पर विरोध करता रहा। अनुच्छेद 370 हटाने पर यही जमात कहती रही कि इससे “अशांति” फैलेगी। CAA पर यही भीड़ “नागरिकता के अधिकार छिनने” का झूठा नैरेटिव फैलाती रही। लेकिन हर बार भारत माता की संतानें उठ खड़ी हुईं और राष्ट्र की जयघोष ने इनकी चालों को कुचल दिया।

अब वही हुआ है, इस प्रार्थना के साथ। यह प्रार्थना अब शाखा की सीमा से निकलकर वैश्विक मंच पर पहुंच चुकी है। ​अब कोई जले तो जले, इससे क्या? भारत और उसका नैरेटिव तो बुलंदियों पर पहुंच रहा है।

भारत का राष्ट्रवाद बनाम पश्चिम का नेशनलिज़्म

यहां एक बुनियादी अंतर है। पश्चिम का नेशनलिज़्म साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और हिंसा से जुड़ा रहा है। वहां राष्ट्रवाद का अर्थ दूसरे देशों पर आधिपत्य और अपने स्वार्थ की पूर्ति रहा है।

लेकिन भारत का राष्ट्रवाद अलग है। यह विश्व बंधुत्व का संदेश देता है। यह कहता है—“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः।” यह सबका कल्याण चाहता है, लेकिन साथ ही यह इतना दृढ़ भी है कि मातृभूमि पर आंच नहीं आने देगा। यही संघ की प्रार्थना का भाव है।

उद्घोष: अब कोई नहीं रोक सकता

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” अब केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि भारत के उदय की घोषणा है। यह बताती है कि भारत माता की संतानों ने अपने संकल्प को विश्व मंच तक पहुंचा दिया है।

जो लोग अब भी “भारत तेरे टुकड़े होंगे” का सपना देखते हैं, जो अब भी तिरंगे का अपमान करते हैं, जो अब भी राष्ट्रवाद को गाली देते हैं, उनके लिए यह प्रार्थना अंतिम चेतावनी है। भारत माता की संतानें अब जाग चुकी हैं।

आज लंदन की धरती पर गूंजती यह प्रार्थना यही कह रही है—
भारत अब थमने वाला नहीं।
भारत अब झुकने वाला नहीं।
भारत अब उठ खड़ा हुआ है।
और भारत माता की यह संतानें, इस राष्ट्र को अखंड, आत्मनिर्भर और विश्वगुरु बनाकर ही दम लेंगी।

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