चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन SCO समिट का मंच गवाह बना उस पल का, जब दुनिया ने एक बार फिर भारत की कूटनीतिक ताक़त को महसूस किया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “प्रिय दोस्त” कहकर संबोधित किया और जवाब में मोदी ने रूस को भारत का “मुश्किल वक्त का साथी” बताया। यह केवल दो नेताओं की औपचारिक बातचीत नहीं थी, बल्कि आने वाले समय में वैश्विक राजनीति का संकेत थी—भारत अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति है।
कठिन समय का साथी: भारत–रूस की दोस्ती
भारत और रूस का रिश्ता सिर्फ आज का नहीं है, बल्कि दशकों पुराना है। शीत युद्ध के समय जब पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी थी, तब भी रूस भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहा। आज जब पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं, तब भारत ने संतुलन दिखाते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बिल्कुल साफ कहा-“कठिन से कठिन हालात में भी भारत और रूस कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं। यह सहयोग केवल दोनों देशों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी जरूरी है।”
SCO में भारत की ताक़तवर मौजूदगी
यह बयान उस मंच से आया, जहां चीन और पाकिस्तान भी मौजूद थे। SCO की मीटिंग में मोदी–पुतिन की नजदीकी ने इन दोनों देशों को स्पष्ट संदेश दिया-भारत आज किसी पर निर्भर नहीं है और अपनी दोस्ती चुनने के लिए स्वतंत्र है। यह अपने आप में भारत की बढ़ती ताक़त और आत्मविश्वास का प्रतीक है।
यूक्रेन युद्ध और भारत की शांति की भूमिका
यूक्रेन युद्ध आज की दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है। जहां पश्चिमी देश युद्ध को और भड़काते नजर आते हैं, वहीं भारत ने हमेशा शांति का रास्ता सुझाया है। मोदी ने कहा—“संघर्ष जल्द खत्म करने और स्थायी शांति स्थापित करने का रास्ता ढूंढना होगा। यह पूरी मानवता की पुकार है।”
यह शब्द केवल कूटनीति नहीं, बल्कि भारत की उस भूमिका को दर्शाते हैं, जिसमें वह विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है। भारत आज युद्ध नहीं, बल्कि समाधान का प्रतीक है।
घरेलू संदेश: भारत अब आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी
मोदी–पुतिन मुलाकात केवल वैश्विक मंच पर ही नहीं, बल्कि देश के भीतर भी एक मजबूत संदेश देती है। यह बताता है कि भारत अब किसी का पिछलग्गू नहीं है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और रूस से लेकर एशिया तक-भारत सभी के साथ अपने हितों के आधार पर संबंध बना रहा है। यही है नए भारत की विदेश नीति, जहाँ न दबाव काम करता है और न ही डर।
140 करोड़ भारतीयों की आवाज
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि-“140 करोड़ भारतीय इस वर्ष दिसंबर में होने वाले हमारे 23वें शिखर सम्मेलन के लिए पुतिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।” यह संदेश साफ है-भारत की जनता भी इस रिश्ते को उतना ही महत्व देती है जितना नेतृत्व।
भारत की गूंज, पूरी दुनिया में
SCO समिट से निकलने वाला सबसे बड़ा संदेश यही है कि भारत अब दुनिया की शक्ति संतुलन का केंद्र है। रूस जैसे पुराने सहयोगी और अमेरिका जैसे नए साझेदार, दोनों ही भारत के बिना वैश्विक समीकरण की कल्पना नहीं कर सकते।
यह वही भारत है जिसकी आवाज अब सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि मास्को, वॉशिंगटन, बीजिंग और यूरोप तक गूंज रही है। यह गूंज बता रही है-भारत अब विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ चुका है।