महाराष्ट्र के भिवंडी से हाल ही में गिरफ्तार किया गया 58 वर्षीय अमेरिकी नागरिक जेम्स वॉटसन भारत में फैले उस अदृश्य मगर संगठित नेटवर्क का ताज़ा उदाहरण है, जो धर्मांतरण की आड़ में सांस्कृतिक घुसपैठ का षड्यंत्र चला रहा है। वह भारत में बिज़नेस वीज़ा पर आया था, लेकिन उसके ‘व्यवसाय’ की असलियत उस समय खुली जब स्थानीय ग्रामीणों ने उसकी गतिविधियों पर संदेह जताया। वॉटसन कथित तौर पर दूरदराज़ इलाकों में जाकर लोगों को जीसस के प्रेम का पाठ पढ़ा रहा था और उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा था। पुलिस की प्रारंभिक जांच में यह भी सामने आया कि वॉटसन कई महीनों से गरीब तबकों में सक्रिय था और उसने स्थानीय बस्तियों में दवाइयां, कपड़े और खाने की सामग्री बांटकर लोगों को अपने संपर्क में लिया था। उसके साथ दो अन्य को भी गिरफ्तार किया गया है।
शराब को बताता था प्रसाद
इस मामले में भिवंडी के ेचिंबिपाड़ा गांव के निवासी रविनाथ भुरकुट ने धर्मांतरण को लेकर पुलिस से शिकायत दर्ज करायी थी। शिकायत में बताया गया कि शुक्रवार (03 अक्टूबर 2025) को सुबह 11.30 बजे उसने कुछ लोगों को देखा, जो गांव के 30 से 35 लोगों के सामने ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे थे।
शिकायत में बताया कि वे कह रहे थे कि हिंदू धर्म अंधविश्वास पर आधारित है। कोई दूसरा भगवान नहीं है। ईसाई धर्म अपनाकर सुख और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने ग्रामीणों को भड़काया कि ईसा मसीह की प्रार्थना और शराब के ‘प्रसाद’ के सेवन से सारी बीमारी ठीक हो सकती हैं। शिकायत के अनुसार, आरोपितों ने प्रार्थना सभा में यह भी पूछा कि क्या कोई नाबालिग लड़की किसी बीमारी से पीड़ित है और चार लड़कियों के नाम लिख लिए। शिकायत के मुताबिक, जाते समय उन्होंने जाते हुए उन लड़कियों के माथे पर हाथ रखकर दावा किया कि दैव्य शक्ति से उनकी बीमारियां ठीक की जा चुकी हैं।
भारत जैसे देश में यह कोई नया प्रयोग नहीं है। औपनिवेशिक दौर से लेकर आज तक विदेशी मिशनरी संस्थान इसी पद्धति से काम करते आए हैं, पहले ‘सेवा’ का वादा, फिर ‘सहायता’ का जाल, और अंत में ‘संस्कार परिवर्तन’ का अभियान। जेम्स वॉटसन का केस इसी पुराने औपनिवेशिक एजेंडे की आधुनिक अभिव्यक्ति है, जहां धर्म को व्यापार और व्यापार को धर्म का माध्यम बना दिया गया है।
भिवंडी का क्षेत्र भले मुंबई के पास हो, लेकिन इसके कई इलाकों में अब भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और गरीबी हावी है। यही वजह रही कि वॉटसन ने इन्हीं हिस्सों को चुना वो लोग जो रोजगार, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं, उन्हें उसने अपना सबसे आसान लक्ष्य समझा। उसकी रणनीति साफ थी, मानवीय सहायता के नाम पर लोगों के मन में पश्चिमी सभ्यता और ईसाई विचारों के प्रति विश्वास जगाना।
दक्षिण एशिया के कई देशों में चला चुका है एजेंडा
पुलिस ने जब उससे पूछताछ की तो पता चला कि वॉटसन ने भारत में आने से पहले दक्षिण एशिया के कुछ और देशों का भी दौरा किया था। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी वह इसी तरह की गतिविधियों में शामिल रहा है। उसके पास से कई धार्मिक पुस्तकें, प्रिंटेड पर्चे और स्थानीय भाषाओं में अनुवादित ईसाई प्रचार सामग्री बरामद हुई है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि उसके पास कोई चर्च या एनजीओ का औपचारिक पंजीकरण नहीं था। वह पूरी तरह एक ‘फ्रीलांस मिशनरी’ की तरह काम कर रहा था, जो खुद को बिज़नेस कंसल्टेंट बताकर असल में एक वैचारिक एजेंट का काम कर रहा था।
यह घटना एक बड़े खतरे की घंटी है। भारत में हाल के वर्षों में धर्मांतरण के मामले केवल संख्या का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का सवाल बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले ही एंटी-कन्वर्ज़न लॉ लागू किए जा चुके हैं। महाराष्ट्र में भी इस दिशा में सख्ती की मांग बढ़ रही है। इन कानूनों का उद्देश्य किसी के व्यक्तिगत धार्मिक अधिकारों पर अंकुश लगाना नहीं, बल्कि धोखे, लालच या दबाव में कराए जा रहे धर्मांतरण को रोकना है। जेम्स वॉटसन का मामला इसी श्रेणी में आता है, जहां धर्मांतरण को सेवा और परोपकार की चाशनी में लपेट दिया गया था।
भिवंडी में स्थानीय संगठनों ने जब इस गतिविधि पर आपत्ति जताई तो वॉटसन की असली कहानी सामने आई। बताया जाता है कि वह कुछ स्थानीय लोगों को प्रार्थना सत्र के लिए इकट्ठा करता था, जिसमें विदेशी भाषा के वीडियो चलाए जाते थे और स्थानीय लोग अनुवाद कर उन्हें समझाते थे। इन सभाओं में बच्चों को टॉफी, कॉपी और पेंसिल जैसी चीजें बांटी जाती थीं। धीरे-धीरे कुछ लोगों को विशेष सहायता का वादा किया गया, किसी के घर की मरम्मत, किसी को नौकरी दिलाने का भरोसा। यही वे सूक्ष्म तरीके हैं, जिनसे धार्मिक परिवर्तन की ज़मीन तैयार की जाती है।
भारत का संविधान सभी को धर्म की स्वतंत्रता देता है, लेकिन वही संविधान किसी को यह अधिकार नहीं देता कि वह किसी की गरीबी या लाचारी का फायदा उठाकर उसके विश्वास को बदल दे। यही इस बहस का मूल है, स्वतंत्रता बनाम शोषण। वॉटसन का केस इस बात का उदाहरण है कि कैसे कुछ विदेशी तत्व इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने का प्रयास करते हैं।
कई संगठनों ने उठाए सवाल
वॉटसन की गिरफ्तारी के बाद कई राष्ट्रवादी संगठनों ने सवाल उठाया है कि आखिर भारत के वीज़ा सिस्टम में ऐसी खामियां क्यों हैं, जो किसी विदेशी को बिज़नेस के नाम पर मिशनरी एजेंडा चलाने की छूट देती हैं। यह सवाल भी अहम है कि ऐसे तत्वों को आर्थिक और वैचारिक सहायता कौन दे रहा है। हाल के वर्षों में भारत में सक्रिय विदेशी एनजीओज़ पर हुई जांचों ने यह दिखाया है कि कई संस्थाएं धार्मिक उद्देश्यों के लिए चंदा इकट्ठा कर रही थीं, जबकि उन्होंने खुद को सामाजिक या मानवाधिकार संगठन बताया हुआ था।
इस घटना के राजनीतिक और सांस्कृतिक अर्थ भी गहरे हैं। महाराष्ट्र ऐतिहासिक रूप से हिन्दुत्व की भूमि रही है। शिवाजी महाराज की कर्मभूमि, जिन्होंने विदेशी सत्ता और धार्मिक आक्रमण के खिलाफ हिंदू स्वाभिमान की मशाल जलाई थी। आज उसी महाराष्ट्र के एक हिस्से में अगर विदेशी मिशनरी सक्रिय पाए जाते हैं तो यह न सिर्फ कानूनी उल्लंघन है, बल्कि सांस्कृतिक अपमान भी है। यही कारण है कि हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इसे आध्यात्मिक आक्रमण करार दिया है।
भारतीय समाज की शक्ति उसकी विविधता में है, लेकिन यह विविधता तभी सार्थक है जब वह स्वाभाविक और सम्मानजनक आधार पर खड़ी हो। जब यह विविधता किसी बाहरी फंडिंग या वैचारिक रणनीति का परिणाम बनने लगे, तब यह खतरनाक हो जाती है। धर्मांतरण का यही सबसे बड़ा संकट है। यह व्यक्ति की आत्मा नहीं, समाज की एकता को बदल देता है।
केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में विदेशी फंडिंग (FCRA) पर जो निगरानी बढ़ाई है, उसका सीधा असर ऐसे ही नेटवर्क पर पड़ा है। अब जरूरत है कि वीज़ा नियमों में और कठोरता लाई जाए। जो व्यक्ति बिज़नेस वीज़ा पर आए, वह किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल न हो सके। भारत में धार्मिक प्रचार के लिए विशेष वीज़ा की व्यवस्था है, लेकिन वॉटसन जैसे लोग जानबूझकर इन नियमों को दरकिनार करते हैं।
यह मामला इस व्यापक विमर्श को भी बल देता है कि भारत को केवल राजनीतिक सीमाओं से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सुरक्षा से भी बचाना होगा। आज जब घुसपैठ की चर्चा सीमांचल या पूर्वोत्तर के संदर्भ में होती है, तो यह भी याद रखना चाहिए कि विचारों और आस्थाओं की घुसपैठ भी उतनी ही घातक हो सकती है।
वॉटसन जैसे लोग भारत को केवल एक गरीब देश के रूप में देखते हैं—जहां भूख, बीमारी और गरीबी को आध्यात्मिक उद्धार का औजार बनाया जा सकता है। लेकिन भारत वह भूमि है जिसने सदियों से वसुधैव कुटुंबकम् कहा है, और यही इस देश की आत्मा है। यहां सेवा और सद्भावना को किसी स्वार्थ या धार्मिक प्रचार से नहीं जोड़ा जा सकता।
महाराष्ट्र पुलिस की इस कार्रवाई ने एक बार फिर दिखा दिया कि भारत में अब धर्मांतरण के इस गुप्त उद्योग को सहन नहीं किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत आत्मविश्वास के उस दौर में है, जहां सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल भावनात्मक नारा नहीं, बल्कि शासन की नीति बन चुका है। यही नीति कहती है कि भारत सबका है, लेकिन किसी विदेशी एजेंडे का मंच नहीं।
जेम्स वॉटसन की गिरफ्तारी कोई सामान्य खबर नहीं है। यह उस लंबे संघर्ष का एक अध्याय है जिसमें भारत अपनी आत्मा की रक्षा कर रहा है। यह गिरफ्तारी यह भी बताती है कि इस देश के गाँवों में अब चेतना की लौ जल चुकी है। लोग अब समझ रहे हैं कि मुफ्त की दवा, कपड़ा या भोजन के पीछे कौन-सी वैचारिक चाल छिपी है।
इस घटना से सबसे बड़ा संदेश यही निकलता है कि भारत अब न तो उपनिवेश है, न प्रयोगशाला। यह एक जागृत राष्ट्र है, जो अपने विश्वासों, परंपराओं और सभ्यता की रक्षा के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है। जेम्स वॉटसन भले जेल में हो, लेकिन उसके पीछे जो एजेंडा है, वह अब भारत की सजग जनता और कठोर कानूनों के सामने बेअसर साबित होने लगा है। यही इस राष्ट्र का नवजागरण है, जहां विकास के साथ धर्मरक्षा भी राष्ट्रीय दायित्व बन चुकी है।