बिहार की राजनीति फिर एक बार चुनावी उफान पर है। सत्ता के समीकरण बन रहे हैं, टूट रहे हैं और फिर से नए सिरे से गढ़े जा रहे हैं। इसी दौर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का हालिया बयान पूरे राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला साबित हुआ है। उन्होंने एक ही वाक्य में सारे संशय खत्म कर दिए, “एनडीए में सब चंगा है।” अमित शाह का यह कथन सिर्फ एक सामान्य राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि यह एक सुविचारित रणनीतिक संदेश था, जो बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में भाजपा और उसके सहयोगियों के मन में नया विश्वास भरने वाला था।
बिहार में लंबे समय से भाजपा, जेडीयू, लोजपा और आरएलएसपी जैसे दलों के बीच तालमेल को लेकर राजनीतिक अटकलें लगाई जा रही थीं। विपक्ष लगातार यह प्रचार कर रहा था कि एनडीए के भीतर असंतोष और दरार है। लेकिन, अमित शाह ने जिस शालीनता और आत्मविश्वास के साथ अपने साक्षात्कार में बातें रखीं, उसने विपक्ष के इस नैरेटिव को पूरी तरह धराशायी कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सीट बंटवारे में देरी का कारण मतभेद नहीं था, बल्कि सभी दलों के बीच पहले से तालमेल बना हुआ था, इसलिए किसी भी स्तर पर चर्चा डिरेल नहीं हुई। उनका यह वक्तव्य यह दर्शाता है कि भाजपा के नेतृत्व में एनडीए अब परिपक्व गठबंधन के रूप में विकसित हो चुका है, जो न केवल सीटों की राजनीति बल्कि शासन और दृष्टिकोण की समानता पर टिका है।
कांग्रेस पर किया जोरदार प्रहार
अमित शाह ने अपने बयान में विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि छोटी पार्टियों का अपमान करना कांग्रेस की आदत रही है। यह बात बिल्कुल सटीक है, क्योंकि कांग्रेस का इतिहास बताता है कि उसने कभी भी अपने सहयोगियों को बराबरी का सम्मान नहीं दिया। यही कारण है कि आज देश के आधे से अधिक हिस्से में कांग्रेस का अस्तित्व नाम मात्र रह गया है। अमित शाह का यह तर्क न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से सही है बल्कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भी प्रासंगिक है, क्योंकि भाजपा ने इसके विपरीत हमेशा अपने सहयोगियों का मान बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा को जब-जब पूर्ण बहुमत मिला, तब भी उसने गठबंधन की सरकार चलाई। यह भाजपा के राजनीतिक संस्कार और संगठनात्मक अनुशासन का प्रमाण है।
अमित शाह का संदेश खास तौर पर नीतीश कुमार, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं के लिए था, जो बिहार की राजनीति के तीन अलग-अलग सामाजिक ध्रुवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। नीतीश कुमार की प्रशासनिक छवि, चिराग का युवा आकर्षण और कुशवाहा का सामाजिक आधार, इन तीनों को एक फ्रेम में लाना आसान नहीं था। मगर अमित शाह ने इसे बड़ी ही सहजता से कर दिखाया। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि एनडीए में किसी भी पार्टी के साथ भेदभाव नहीं होगा और सभी को बराबर का दर्जा मिलेगा। उनका यह बयान न केवल सहयोगियों के मन में विश्वास जगाने वाला था, बल्कि विपक्ष के उस प्रचार का जवाब भी था जो भाजपा को एक “बड़ी लेकिन दबंग” पार्टी के रूप में बताता आ रहा है। अमित शाह का यह संतुलित संदेश स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भाजपा अब गठबंधन को अपनी शक्ति नहीं, बल्कि अपनी नीति का हिस्सा मानती है।
तेजस्वी पर भी किया करारा प्रहार
इसके साथ ही अमित शाह ने तेजस्वी यादव पर करारा प्रहार किया। तेजस्वी द्वारा किए गए उस वादे को, जिसमें उन्होंने 2.6 करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी देने की बात कही थी, शाह ने न केवल हास्यास्पद बताया बल्कि आर्थिक दृष्टि से असंभव भी सिद्ध किया। उन्होंने कहा कि अगर बिहार के 2.8 करोड़ परिवारों में से 20 लाख को पहले से नौकरी मिली है, तो बाकी 2.6 करोड़ के लिए नौकरी देना लगभग 12 लाख करोड़ रुपये के बजट की मांग करेगा, जबकि बिहार का बजट महज सवा तीन लाख करोड़ का है। उनके इस तर्क ने विपक्ष की लोकलुभावन राजनीति को तार-तार कर दिया और यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा की राजनीति जमीनी यथार्थ और व्यावहारिकता पर आधारित है। अमित शाह ने युवाओं को यह संदेश दिया कि झूठे सपनों से बेहतर है वह विकास, जो धीरे-धीरे मगर स्थायी रूप से समाज में परिवर्तन लाए।
शाह का यह संवाद केवल विपक्ष पर हमला नहीं था, बल्कि भाजपा के संगठनात्मक अनुशासन और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का प्रदर्शन भी था। उन्होंने दिखाया कि भाजपा किसी भी राज्य में सत्ता की राजनीति नहीं, बल्कि व्यवस्था की स्थिरता को प्राथमिकता देती है। बिहार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां भाजपा ने वर्षों तक नीतीश कुमार का साथ दिया, और जब भी मतभेद हुए, संवाद से समाधान का रास्ता अपनाया। अमित शाह ने अपनी शैली में वही किया, संवाद से सुलह और सुलह से शक्ति का विस्तार।
अमित शाह के इस बयान का असर सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं रहा। महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट), हरियाणा में जेजेपी और उत्तर-पूर्व में एनडीए की छोटी पार्टियों तक यह संदेश गया कि भाजपा का गठबंधन किसी अवसरवाद पर नहीं, बल्कि विश्वास और साझेदारी पर आधारित है। यही कारण है कि जबकि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन अभी तक सीट बंटवारे को लेकर उलझा है, एनडीए पहले से अपने उम्मीदवार तय कर चुका है। एक तरफ भ्रम, दूसरी तरफ स्पष्टता, यही अंतर भाजपा और विपक्ष की राजनीति को अलग करता है।
बिहार के मतदाताओं को गया सीधा संदेश
अमित शाह का यह बयान बिहार की जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है। बिहार का मतदाता हमेशा स्थिरता और भरोसे को प्राथमिकता देता है। लालू-राबड़ी युग की अराजकता से निकलने के बाद जब नीतीश कुमार ने शासन और विकास का रास्ता दिखाया, तो भाजपा ने उस विकास को वैचारिक दिशा दी। आज फिर वही स्थिति बन रही है, जब विपक्ष सिर्फ़ वादों के सहारे मैदान में है और भाजपा अपने काम और संगठन पर भरोसा कर रही है। अमित शाह का यह स्पष्ट संदेश, “NDA में सब चंगा है”, उस भरोसे को और मजबूत करता है कि बिहार का भविष्य स्थिर हाथों में है।
दरअसल, अमित शाह का यह बयान सिर्फ़ एक चुनावी भाषण नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक दर्शन था— जो बताता है कि गठबंधन राजनीति में विश्वास, संवाद और सम्मान सबसे बड़ी पूंजी हैं। उन्होंने जिस सहजता से नीतीश, चिराग और कुशवाहा को साधा, जिस मजबूती से कांग्रेस और तेजस्वी की वादाखोरी पर प्रहार किया और जिस आत्मविश्वास से भाजपा को एक नेतृत्वकारी स्थिति में स्थापित किया, वह सब मिलकर यह संकेत देता है कि “मिशन बिहार” अब केवल एक राज्य स्तर का चुनाव नहीं रहा, बल्कि यह भाजपा के संगठनात्मक कौशल और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की एक और विजय यात्रा बनने जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम का निचोड़ यही है कि बिहार में अब मुद्दा “कौन कितना बड़ा” नहीं रहा, बल्कि “कौन कितना भरोसेमंद” बन गया है। और इस कसौटी पर अमित शाह और भाजपा की रणनीति सबसे आगे दिखती है। उनकी राजनीति आंकड़ों और आक्रोश से नहीं, बल्कि भरोसे और दृष्टि से संचालित होती है। यही कारण है कि आज बिहार की धरती पर फिर से एक बार वही स्वर गूंज रहा है— राष्ट्रवाद, विकास और एकता का, जिसकी जड़ें अमित शाह के इस एक वाक्य में समाई हैं— “सब चंगा है NDA में।”