दीदी के राज के में बेटियां असुरक्षित: ममता बनर्जी का बयान शर्मनाक से भी आगे

ममता बनर्जी का यह सवाल अपराधी को नहीं, पीड़िता को ही कटघरे में खड़ा करता है। यह विक्टिम-ब्लेमिंग है। वह सोच जो समाज को अंधेरे में धकेलती है और अपराधी को मानसिक ढाल देती है।

दीदी के राज के में बेटियां असुरक्षित: ममता बनर्जी का बयान शर्मनाक से भी आगे

उममता बनर्जी का बयान केवल एक राजनीतिक भूल नहीं, बल्कि एक सामाजिक गिरावट है।

दुर्गापुर में मेडिकल छात्रा से दुष्कर्म की घटना ने पूरे पश्चिम बंगाल को हिला कर रख दिया है। 23 वर्षीय एमबीबीएस छात्रा अपने मित्र के साथ बाहर निकली थी, तभी कुछ लोगों ने उसे घसीटकर जंगल में ले जाकर उसके साथ गैंगरेप किया। यह घटना तो भयावह थी, लेकिन उससे भी अधिक भयावह था मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान, लड़कियों को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए।

यह टिप्पणी केवल असंवेदनशील नहीं, बल्कि एक निर्वाचित महिला मुख्यमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत भी है। यह वही ममता मनर्जी हैं, जिन्होंने बंगाल की बेटी कहकर वोट मांगे थे और वो अब उसी बेटी को ही दोषी ठहराने लगी हैं।

जब अपराधी नहीं, पीड़िता कटघरे में

किसी लोकतांत्रिक समाज में सबसे खतरनाक सोच होती है, अपराधी से ज़्यादा पीड़ित को दोष देना। ममता बनर्जी ने भी बिल्कुल वही किया। उन्होंने यह नहीं पूछा कि अपराधी कैसे खुले घूम रहे थे, सुरक्षा इंतज़ाम क्यों नाकाम रहे या कॉलेज प्रशासन ने सुरक्षा की क्या व्यवस्था की थी।
उन्होंने पूछा कि लड़की रात में बाहर क्यों निकली।

ममता बनर्जी का यह सवाल दरअसल अपराधी को नहीं, बल्कि पीड़िता को कटघरे में खड़ा करता है। यह विक्टिम-ब्लेमिंग है। वह सोच जो समाज को अंधेरे में धकेलती है और अपराधी को मानसिक ढाल देती है।

क्या यही है ममता बनर्जी का बंगाल?

ममता बनर्जी का यह बयान उस पितृसत्तात्मक मानसिकता को वैधता देता है जो सदियों से महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद रखती आई है। सवाल यह है कि क्या अब भी ममता बनर्जी का बंगाल वही है, जहां रात के समय में सड़कों पर महिलाएं नहीं चल सकतीं? क्या मुख्यमंत्री का काम महिलाओं को रोकना है, या सड़कों को सुरक्षित बनाना? यदि एक राज्य की मुख्यमंत्री यह मान ले कि रात में बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है तो यह उसकी प्रशासनिक असफलता का सीधा प्रमाण है।

लगे हाथ ममता बनर्जी ने इस घटना को ओडिशा की पुरी बीच हुए गैंगरेप से तुलना भी कर दी। उन्होंने कहा कि ओडिशा की सरकार ने क्या किया? गौर करें तो यह राजनीतिक बचाव का सबसे घटिया तरीका है। क्या किसी और राज्य में अपराध होने से आपके राज्य में अपराध वैध हो जाता है? यह वही रणनीति है, जिससे नेता जिम्मेदारी से बचने के लिए दूसरे राज्य का हवाला देते हैं। एक मुख्यमंत्री का काम तुलना करना नहीं, कार्रवाई करना है। लेकिन ममता ने फिर वही किया जो वह हर बार करती हैं बयान दिया, दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया और अगले दिन फाइल बंद।

बंगाल में बढ़ती अराजकता, घटती जवाबदेही

आंकड़ों पर गौर करें तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2022–23 के बीच महिला अपराधों में लगभग 11% की वृद्धि हुई।

लेकिन, यहां सरकार की प्राथमिकता आपराधिक घटनाओं में वृद्धि रो​कना या पुलिस सुधार नहीं, बल्कि राजनीतिक नियंत्रण है। दुर्गापुर की यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि उसी गिरती कानून-व्यवस्था की मिसाल है, जिसके लिए ममता सरकार कुख्यात हो चुकी है।

बंगाल की बेटी का दोहरा चेहरा

जब चुनाव आते हैं, तो ममता बनर्जी दीदी बनकर महिलाओं की हितैषी दिखती हैं। लेकिन, जब किसी महिला के साथ दरिंदगी होती है, तो वही दीदी उसे ही कटघरे में खड़ी कर देती हैं। यह दोहरा चरित्र अब बंगाल की जनता पहचान चुकी है। जो महिला सत्ता में आने के बाद नारी शक्ति की बात करती है, वही सत्ता में रहते हुए लड़कियों की आज़ादी पर रोक लगाने की बात करती है। यह राजनीति नहीं, यह पाखंड है। सबसे खतरनाक बात यह है कि यह पाखंड महिलाओं की असुरक्षा को और बढ़ाता है।

प्रशासन नहीं, मानसिकता बदलें

ममता बनर्जी का बयान केवल एक राजनीतिक भूल नहीं, बल्कि एक सामाजिक गिरावट है। एक महिला मुख्यमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह अन्य महिलाओं की पीड़ा को समझे, उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दे, लेकिन उन्होंने वही किया जो पितृसत्तात्मक समाज करता है, पीड़िता को दोषी ठहराया, अपराधी को छुपाया और सवालों से बच निकलीं। यह बयान एक ऐसी मानसिकता का प्रतीक है जो कहती है कि लड़कियां सावधान रहें, जबकि उसे कहना चाहिए था कि अपराधी डरें।

बंगाल को चाहिए जवाबदेह शासन

बंगाल की जनता अब समझ चुकी है कि दीदीराज की चमक में लोकतंत्र का धुंधलापन बढ़ रहा है। सत्ता में संवेदना नहीं, अहंकार है। जब राज्य की मुख्यमंत्री ही कहे कि लड़कियां बाहर न निकलें, तो यह दरअसल यह स्वीकारोक्ति है कि उनका प्रशासन रात को महिलाओं की सुरक्षा देने में पूरी तरह विफल है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बंगाल को दीदी की हुकूमत चाहिए या कानून का राज?

दरसअल, दुर्गापुर की बेटी की पीड़ा केवल एक अपराध नहीं, यह एक चेतावनी है, उन नेताओं के लिए जो सत्ता में बैठकर अपनी संवेदना खो चुके हैं। ममता बनर्जी का बयान यह साबित करता है कि जब राजनीति इंसानियत से बड़ी हो जाए, तो अपराधी नहीं, समाज हार जाता है। अब वक्त आ गया है कि लड़कियां घर से न निकलें कहने वालों से यह पूछा जाए कि आपका राज्य इतना असुरक्षित क्यों है कि बेटियां घर से बाहर निकलते ही खतरे में पड़ जाती हैं?

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