गाजा की धरती पर जब बमों की आवाज़ थमी, जब वर्षों बाद वहां की हवा में पहली बार राहत की सांस घुली, तब पाकिस्तान की सड़कों पर एक और विस्फोट हो गया। यह विस्फोट न तो इज़रायल का था, न ही किसी मिसाइल का। यह विस्फोट था कट्टरपंथ का, जिहादी मानसिकता का, जिसने अब उस देश को निगलना शुरू कर दिया है जो दशकों से “इस्लाम के नाम पर” अपने ही लोगों को जहालत और हिंसा की आग में झोंकता आया है।
पाकिस्तान में गाजा के युद्धविराम को लेकर हिंसा भड़क उठी। हां, आपने सही पढ़ा शांति समझौते पर हिंसा। जब पूरी दुनिया युद्धविराम पर राहत महसूस कर रही थी, पाकिस्तान के तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के उन्मादी समर्थक सड़कों पर उतरकर अपने ही देश को फूंक रहे थे। लाहौर जल उठा, मुरीदके में पुलिसकर्मी मारे गए, सैकड़ों वाहन जला दिए गए और उसी हिंसा में TLP का प्रमुख साद रिजवी भी पुलिस की गोली से गंभीर रूप से घायल हो गया।
यह पाकिस्तान की वही कहानी है जो हर दशक दोहराई जाती है। एक और धार्मिक आंदोलन, एक और भीड़, और फिर वही नारा सर तन से जुदा। लेकिन इस बार फर्क इतना है कि अब यह नारा पाकिस्तान के खिलाफ ही उठ गया है।
गाजा में युद्धविराम की घोषणा के बाद पाकिस्तान में शुरू हुए ये प्रदर्शन कुछ और नहीं, बल्कि उस धार्मिक पाखंड का नंगा प्रदर्शन हैं, जो दशकों से वहां की राजनीति और समाज को खोखला करते आया है। जिन पाकिस्तानियों को गाजा की भौगोलिक स्थिति तक नहीं मालूम, वे लाहौर में अमेरिकी दूतावास पर हमला करने चल निकले। जिन्हें इज़रायल की संसद केनेस्सेट का नाम तक नहीं पता, वे फिलिस्तीन के नाम पर पुलिसवालों का खून बहा रहे हैं।
असल में यह फिलिस्तीन का गुस्सा नहीं है। यह पाकिस्तान की असफल धार्मिक राजनीति का ज्वालामुखी है। जिस समाज को लगातार यह सिखाया गया कि पश्चिम दुश्मन है, भारत काफ़िर है, अमेरिका इस्लाम विरोधी है, वह समाज अब अपने ही भीतर विस्फोट कर रहा है।
यहां से शुरू हुई हिंसा
प्रदर्शन के दौरान लाहौर की सड़कों पर जब पुलिस ने अमेरिकी दूतावास की ओर बढ़ते TLP समर्थकों को रोकने के लिए कंटेनर लगाए, तो हिंसा शुरू हो गई। प्रदर्शनकारियों ने कंटेनर हटाने की कोशिश की, पुलिस पर हमला कर दिया और देखते ही देखते शहर के कई हिस्से धधक उठे। वीडियो फुटेज में TLP के समर्थक ट्रकों पर सवार होकर गोलियां चलाते दिखे। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, जिसमें कई लोग मारे गए और पार्टी प्रमुख साद रिजवी को भी गोली लगी।
सोशल मीडिया पर रिजवी का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह पुलिस से गोलीबारी रोकने की अपील करते दिख रहे हैं। लेकिन भीड़ अब किसी की नहीं सुन रही थी, न कुरान, न क़ायदे-आजम। यह भीड़ अपने ही देश के खिलाफ़ खड़ी थी।
पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों ने दर्जनों वाहनों को आग लगा दी, कई जगह सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और इस्लामाबाद की ओर जाने वाले रास्ते पूरी तरह बंद कर दिए गए। असल में, भीड़ का लक्ष्य अमेरिकी दूतावास के बाहर फिलिस्तीन के समर्थन में रैली करना था, लेकिन अब यह रैली पाकिस्तान के लिए विनाश यात्रा बन चुकी है।
इसी ने दिया था सर तन से जुदा का नारा
वैसे तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान कोई नया संगठन नहीं। 2015 में बना यह गुट, पैगंबर मोहम्मद की निंदा के विरोध के नाम पर अस्तित्व में आया था। इसके संस्थापक ख़ादिम हुसैन रिजवी ने फ्रांसीसी कार्टून विवाद के दौरान खुलेआम सर तन से जुदा के नारे दिए थे। आज उसके बेटे साद रिजवी ने उस विरासत को और भी जहरीला बना दिया है। आज वही साद रिजवी खुद पुलिस की गोली से घायल है। यह अपने आप में एक प्रतीक है, उस जिहादी चक्र का, जिसमें पाकिस्तान खुद फंस चुका है।
खून से सना है TLP का इतिहास
TLP का इतिहास खून से लिखा गया है। 2017 में इसने इस्लामाबाद में हिंसक धरना दिया, जिसमें कई लोग मारे गए। 2021 में इमरान खान सरकार के खिलाफ फ्रांस को लेकर दंगे किए, दर्जनों पुलिसकर्मी मारे गए। अब 2025 में वही संगठन गाजा के नाम पर हिंसा कर रहा है। हर बार नारा अलग होता है, लेकिन अंत एक ही पाकिस्तान का रक्तपात।
सबसे बड़ी बात यह सब उस देश में हो रहा है, जो खुद को इस्लाम का गढ़ बताता रहा है। पाकिस्तान ने शुरू से ही धर्म को सत्ता का औज़ार बनाया और अब वही औज़ार उस पर पलट चुका है। आज इस्लामाबाद की सत्ता यह समझ नहीं पा रही कि वह किसे रोके, उन भीड़ों को जो कुरान के नाम पर हत्या करती हैं या उस सेना को जिसने दशकों तक इन्हें संरक्षण दिया।
यहां बता दें कि यह कोई आकस्मिक विस्फोट नहीं है। यह उसी आग का धुआं है, जो पाकिस्तान ने 1980 के दशक में अफगानिस्तान के नाम पर जलाई थी। तब अमेरिका और सऊदी अरब के कहने पर पाकिस्तान ने जिहाद को वैध ठहराया, मदरसों में काफ़िरों के खिलाफ लड़ाई सिखाई गई और आतंक को ईमान बताया गया। आज वही जिहाद पाकिस्तान के भीतर लौट आया है। अपने ही शहरों में और अपने ही बच्चों के हाथों में।
लाहौर की हिंसा में पुलिस की भूमिका भी उस राज्य की बेबसी को उजागर करती है, जिसने कभी इन संगठनों को अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया था। साद रिजवी और उसके जैसे नेताओं को सरकार ने कई बार जेल भेजा, लेकिन हर बार समझौते के तहत छोड़ा भी। क्यों? क्योंकि पाकिस्तान के सियासतदान जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए, जनता को भड़काने के लिए, उन्हें इन “मौलानाओं” की जरूरत है। पर वही मौलाना अब सड़कों पर हैं, और वही सड़कों को खून से रंग रहे हैं। यह वही मानसिकता है, जो किसी देश को भीतर से खोखला कर देती हैं। जहां “धर्म की रक्षा” के नाम पर देश का विनाश वैध हो जाता है।
आज पाकिस्तान का चेहरा डरावना है, एक ऐसा देश जहां सरकार अपने नागरिकों से नहीं, अपने ही पाले गए उग्रवादियों से डरती है। जहां हर राजनीतिक पार्टी इस्लाम के नाम पर अपनी नाकामियों को ढकने की कोशिश करती है। जहां हर संकट का कारण बाहर खोजा जाता है। कभी भारत में, कभी अमेरिका में, कभी इज़रायल में। लेकिन असली दुश्मन वहीं हैं, लाहौर की उन सड़कों पर जहां अब इंसानियत का नामोनिशान मिट चुका है।
मौत बांटने वाला खुद जूझ रहा है मौत से
TLP के प्रदर्शनकारी फिलिस्तीन के समर्थन में निकले थे, लेकिन उन्होंने जिन पुलिसवालों को मारा, वे भी मुसलमान ही थे। उन्होंने जिन दुकानों को जलाया, जिन लोगों को पीटा, वे भी मुसलमान थे। यही पाकिस्तान की त्रासदी है, यहां जिहाद अब काफ़िरों के खिलाफ़ नहीं, मुसलमानों के खिलाफ़ हो चुका है। साद रिजवी का घायल होना इस्लामी कट्टरपंथ के लिए प्रतीकात्मक क्षण है। जो कभी दूसरों को मौत का फतवा देता था, अब खुद मौत से जूझ रहा है। यह वही कट्टरपंथी सोच है जो किसी को बख्शती नहीं। यह अपने पालकों को भी निगल जाती है।
हिलेरी क्लिंटन ने एक बार कहा था “आप अपने आंगन में सांप नहीं पाल सकते और उम्मीद करें कि वह सिर्फ़ पड़ोसी को डंसेगा। पाकिस्तान ने यही गलती की है। उसने सांप पाले, उन्हें ‘मुमिन’ कहा, उनके जहर को ‘ईमान’ बताया और अब वही जहर उसकी नसों में फैल चुका है। आज गाजा में बच्चे पहली बार चैन की नींद सो रहे हैं, लेकिन लाहौर में माताएं अपने बेटों की लाशें पहचान रही हैं। फिलिस्तीन में युद्धविराम है, लेकिन पाकिस्तान में इस्लामी गृहयुद्ध चल रहा हैख् जिसमें दुश्मन कोई विदेशी नहीं, बल्कि अपने ही लोग हैं।
पाकिस्तान को अब यह मान लेना होगा कि उसका असली संकट भू-राजनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक है। जब तक वह इस्लाम के नाम पर हिंसा और राजनीति के इस घातक मेल को खत्म नहीं करेगा, तब तक न लाहौर बचेगा, न कराची, न खुद इस्लामाबाद।
गाजा में शांति आई है, लेकिन पाकिस्तान में नहीं आएगी, क्योंकि पाकिस्तान में लड़ाई बमों से नहीं, दिमागों से लड़ी जा रही है। और जब दिमाग किसी विचारधारा का गुलाम बन जाए, तो हर शहर एक नया लाहौर बन जाता है। गाजा में जब युद्धविराम हुआ, तब दुनिया ने राहत की सांस ली। लेकिन पाकिस्तान में वही युद्धविराम हिंसा में बदल गया। यह किसी धर्म की नहीं, बल्कि उस राष्ट्र की विफलता की कहानी है जिसने धर्म को राष्ट्रवाद बना दिया। तहरीक-ए-लब्बैक की हिंसा दिखाती है कि पाकिस्तान अब उस मोड़ पर पहुंच चुका है जहां आस्था और अराजकता में फर्क खत्म हो गया है।
गाजा अब शांत है, लेकिन पाकिस्तान की गलियों में बारूद की गंध है। महत्वपूर्ण बात यह कि यह गंध तब तक नहीं जाएगी, जब तक पाकिस्तान अपने भीतर के तालिबान, अपने भीतर के TLP और अपने भीतर के साद रिजवी को पहचान नहीं लेता। क्योंकि अब जिहाद फिलिस्तीन में नहीं, पाकिस्तान के दिल में चल रहा है। अब इस जिहाद का निशाना खुद पाकिस्तान बन रहा है।