वैश्विक व्यापारिक उथल-पुथल के दौर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर का भारत दौरा महज़ एक राजनयिक यात्रा नहीं, बल्कि आने वाले दशक की आर्थिक दिशा तय करने वाला संकेत है। मुंबई की ज़मीन पर उतरते ही उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि नई ब्रिटिश सरकार की प्राथमिकता अब एशिया, विशेषकर भारत है। दूसरी ओर, अमेरिका और चीन के बीच जारी टैरिफ वॉर ने जिस वैश्विक अस्थिरता को जन्म दिया है, उसने भारत और ब्रिटेन दोनों के लिए एक-दूसरे के सहयोग को पहले से कहीं ज़्यादा रणनीतिक बना दिया है।
यह स्टार्मर का प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला भारत दौरा है, और उनका कूटनीतिक एजेंडा लंदन से दिल्ली तक अब साफ़ झलकता है। ब्रिटेन भारत के साथ न सिर्फ व्यापार, बल्कि रणनीतिक साझेदारी के नए अध्याय की शुरुआत करना चाहता है।
भारत-यूके व्यापारिक समीकरण का नया अध्याय
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पिछले कई वर्षों से चर्चा में था, लेकिन अब इसके क्रियान्वयन की दिशा में निर्णायक कदम उठाए जा रहे हैं। जुलाई 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान जिस समझौते पर मुहर लगी थी, वही अब ब्रिटिश प्रधानमंत्री के भारत दौरे का आधार बना है। इस समझौते का उद्देश्य केवल व्यापार बढ़ाना नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक अवरोधों को खत्म करना और पारस्परिक निवेश को बढ़ावा देना है।
भारत के लिए यह समझौता ‘विकास की गति’ है, जबकि ब्रिटेन के लिए यह ‘ब्रेक्ज़िट के बाद की दिशा’। लंदन अब यह समझ चुका है कि यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद वैश्विक व्यापार में उसकी असली संभावनाएं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ही हैं और इस क्षेत्र में भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था उसका सबसे भरोसेमंद साझेदार बन सकती है।
टैरिफ वॉर की पृष्ठभूमि में दौरे का महत्व
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई टैरिफ नीति ने एक बार फिर वैश्विक व्यापारिक संतुलन को हिला दिया है। अमेरिका चीन, यूरोप और यहां तक कि ब्रिटेन के उत्पादों पर भी नए आयात शुल्क लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे समय में भारत के साथ घनिष्ठ व्यापारिक सहयोग ब्रिटेन के लिए आर्थिक सुरक्षा का कवच बन सकता है।
भारत, जो अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। इसलिए स्टार्मर का भारत आगमन न केवल कूटनीतिक रूप से, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी ब्रिटेन की नई विदेश नीति का केंद्र बिंदु है।
यह सिर्फ कागज नहीं, विकास का लॉन्चपैड
भारत आने से पहले प्रधानमंत्री स्टार्मर ने कहा था कि हमने भारत के साथ जो व्यापारिक सौदा किया है, वह केवल एक समझौता नहीं, बल्कि विकास के लिए लॉन्चपैड है। उन्होंने साफ़ किया कि भारत के साथ व्यापार ब्रिटेन के लिए घर में रोज़गार, निवेश और अवसरों की नई धारा लेकर आएगा। उनका यह बयान उस मानसिक बदलाव को भी दिखाता है, जो ब्रिटेन की नई सरकार में आया है, जहां पहले भारत को केवल उभरते बाज़ार के रूप में देखा जाता था। लेकिन, अब उसे रणनीतिक आर्थिक साझेदार के रूप में देखा जा रहा है।
स्टार्मर के साथ इस यात्रा पर 125 से अधिक ब्रिटिश कंपनियों के सीईओ, व्यापार और निवेश मंत्री पीटर काइल और शिक्षा तथा उद्योग से जुड़े शीर्ष अधिकारी भारत पहुंचे हैं। इससे यह स्पष्ट है कि यह यात्रा प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और परिणाम देने वाला है।
भारत की आर्थिक शक्ति और ब्रिटिश हित
यह बात तो सर्वविदित है कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था ब्रेक्ज़िट के बाद लगातार मंदी और निवेश संकट से जूझ रही है। दूसरी ओर, भारत लगातार विदेशी निवेश का केंद्र बनता जा रहा है। 2024 में ही भारत में एफडीआई प्रवाह 83 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। ऐसे में ब्रिटेन के लिए भारत का बाजार केवल निवेश का नहीं, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता का आश्वासन देता है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के साथ आए उद्योगपति यह समझते हैं कि भारत का डिजिटल, फिनटेक और स्टार्टअप इकोसिस्टम अब केवल विकासशील नहीं, बल्कि निर्णायक वैश्विक भूमिका में है। इसी संदर्भ में कीर स्टार्मर और नरेंद्र मोदी मुंबई में चल रहे ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में भी भाग ले सकते हैं, जहां वे वैश्विक नीति निर्माताओं और नवप्रवर्तकों से संवाद करेंगे।
रणनीतिक और सुरक्षा सहयोग की नई परिभाषा
इस यात्रा के दौरान केवल व्यापार ही नहीं, बल्कि रक्षा, जलवायु, नवाचार और शिक्षा जैसे आठ प्रमुख स्तंभों पर भी वार्ता होगी। बता दें कि ब्रिटेन और भारत पहले से ही Vision 2035 Roadmap के तहत सहयोग बढ़ा रहे हैं, जिसका मकसद एक ऐसी व्यापक साझेदारी बनाना है जो केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और तकनीकी भी हो।
यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि दोनों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता के लिए भी साझा दृष्टिकोण रखते हैं। ब्रिटेन की नौसेना की सक्रियता इस क्षेत्र में बढ़ी है और भारत के साथ उसकी सैन्य साझेदारी को नये स्तर पर ले जाने की योजना है।
अमेरिका की नजरें क्यों टिकी हैं?
अमेरिका इस यात्रा को बारीकी से देख रहा है और इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला, यह भारत-यूके साझेदारी चीन के प्रभाव को संतुलित करने की क्षमता रखती है। दूसरा, ब्रिटेन अब अमेरिका के ‘एक्सटेंशन’ की बजाय अपनी स्वतंत्र आर्थिक दिशा तलाश रहा है और भारत इस स्वतंत्रता का आधार बन सकता है। अमेरिकी नीति-निर्माताओं के लिए भारत-यूके गठजोड़ का मतलब है वॉशिंगटन की प्राथमिकता वाले दो सहयोगी अब अपने हितों के अनुसार नई आर्थिक धुरी बना रहे हैं। यह स्थिति अमेरिका के आर्थिक दबदबे को चुनौती तो नहीं देती, लेकिन उसे दोबारा संतुलन बनाने की आवश्यकता जरूर महसूस कराती है।
भारत की शर्तें और आत्मविश्वास
आज के दौर का नया भारत अब किसी भी साझेदारी में बराबरी का पक्ष रखता है। चाहे अमेरिका हो, यूरोप या ब्रिटेन। भारत का रुख स्पष्ट है कि उसकी अर्थव्यवस्था किसी भी समझौते में आत्मनिर्भरता से समझौता नहीं करेगी। FTA पर बातचीत में भारत ने यह सुनिश्चित किया कि उसकी स्थानीय उद्योग, विशेष रूप से दवा, कृषि और टेक सेक्टर को कोई नुकसान न पहुंचे।
यही कारण है कि यह समझौता विन-विन मॉडल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें भारत अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखते हुए वैश्विक अवसरों को खोल रहा है।
विश्व व्यापार व्यवस्था में भारत का बढ़ता असर
भारत अब केवल बाजार नहीं, बल्कि नीति निर्धारक की भूमिका निभा रहा है। WTO से लेकर G20 तक, भारत ने यह दिखाया है कि विकासशील देशों की आवाज अब वैश्विक निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की यह यात्रा इस नए यथार्थ को स्वीकारने का संकेत भी है कि 21वीं सदी के व्यापार समीकरण अब वाशिंगटन या ब्रसेल्स में नहीं, बल्कि दिल्ली और मुंबई में तय होंगे।
टैरिफ संकट में नया भू-आर्थिक संतुलन
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर ने जो आर्थिक अनिश्चितता पैदा की है, उसमें भारत-यूके साझेदारी एक स्थिर विकल्प के रूप में उभर रही है। स्टार्मर की यह यात्रा उसी नए आर्थिक संतुलन की शुरुआत है, जहां भारत अब साझेदार नहीं, बल्कि निर्माता की भूमिका में है। यह केवल व्यापार का मामला नहीं, बल्कि उस विचार का प्रतिबिंब है जिसमें भारत आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहयोग दोनों को साथ लेकर चलना चाहता है।
जैसा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा यह सिर्फ एक समझौता नहीं, बल्कि विकास के लिए लॉन्चपैड है और भारत के संदर्भ में इसका अर्थ यही है कि 21वीं सदी की उड़ान अब भारतीय आकाश से ही शुरू होगी।