अमेरिका का पाकिस्तान को झटका: नई AMRAAM मिसाइलों से इनकार और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का संदेश
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अमेरिका का पाकिस्तान को झटका: नई AMRAAM मिसाइलों से इनकार और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का संदेश

अमेरिका ने पाकिस्तान को एडवांस्ड मीडियम रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AMRAAM) देने से इनकार कर ठोस संदेश दिया है। यह संदेश न सिर्फ़ इस्लामाबाद को है, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई परिदृश्य को भी है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
10 October 2025
in AMERIKA, आयुध, भारत, भू-राजनीति, रक्षा, रणनीति, विश्व
अमेरिका का पाकिस्तान को झटका: नई AMRAAM मिसाइलों से इनकार और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का संदेश

व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो यह भारत की कूटनीतिक जीत है।

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अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में बयान कभी महज़ शब्द नहीं होते, वे संकेत होते हैं, रणनीतिक संदेश होते हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान को एडवांस्ड मीडियम रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AMRAAM) देने से इनकार कर ऐसा ही एक ठोस संदेश दिया है। यह संदेश न सिर्फ़ इस्लामाबाद को है, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई परिदृश्य को भी है। यह निर्णय, भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी की दिशा में एक और निर्णायक कदम माना जा सकता है, जो वॉशिंगटन की नई प्राथमिकताओं को भी रेखांकित करता है।

बीते कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें तैर रही थीं कि अमेरिका, पाकिस्तान को अत्याधुनिक AMRAAM मिसाइलें देने जा रहा है। वही मिसाइलें जो 2019 के बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल की कोशिश की थी। इस खबर ने भारतीय रणनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी। लेकिन, शुक्रवार को भारत में अमेरिकी दूतावास ने इस पर साफ और कड़ा बयान जारी कर दिया। दूतावास ने कहा कि पाकिस्तान को किसी नई मिसाइल की आपूर्ति नहीं की जा रही है। जो सौदा है, वह केवल उपकरणों और स्पेयर पार्ट्स तक ही सीमित है। हालांकि, अमेरिका का यह बयान जितना सीधा है, उसके पीछे उतनी ही गहरी कूटनीति भी छिपी है।

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अमेरिका की क्लैरिफिकेशन डिप्लोमेसी

अमेरिकी दूतावास का यह बयान महज़ एक खंडन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक clarification है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका ने 30 सितंबर को कई देशों को हथियारों के उपकरण बेचने की घोषणा की थी, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था। लेकिन यह केवल रखरखाव, मरम्मत और प्रशिक्षण जैसी तकनीकी आवश्यकताओं से जुड़ा है, न कि किसी नई हथियार प्रणाली की आपूर्ति से।

वैसे देखा जाए तो अमेरिका के इस बयान के दो अर्थ हैं। पहला यह कि अमेरिका नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में हथियारों की दौड़ और बढ़े, खासकर ऐसे समय में जब क्षेत्रीय स्थिरता भारत के साथ उसके साझा हितों में शामिल है। दूसरा, यह संकेत भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान अब अमेरिकी रक्षा प्राथमिकताओं की सूची में पहले जैसी जगह नहीं रखता।

एक बात और है कि पिछले एक दशक में अमेरिका की विदेश नीति का झुकाव लगातार भारत की ओर रहा है। चाहे Quad की रणनीति हो, इंडो-पैसिफिक साझेदारी हो या रक्षा तकनीक में सहयोग, भारत अब अमेरिकी हितों का केंद्रीय साझेदार है। इसके विपरीत पाकिस्तान धीरे-धीरे उस दायरे से बाहर होता जा रहा है, जहां कभी वह फ्रंटलाइन एलाय कहलाता था। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद वॉशिंगटन को इस्लामाबाद से अपेक्षित सामरिक लाभ भी नहीं मिल पा रहा। वहीं पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और चीन के प्रति झुकाव ने अमेरिका के भरोसे को और कमजोर किया है।

इस पृष्ठभूमि में AMRAAM जैसी मिसाइलों की आपूर्ति न करना एक ‘पॉलिसी स्टेटमेंट’ बन जाता है, बल्कि अमेरिका अब पाकिस्तान के प्रति न तो सैन्य उदारता दिखाने के मूड में है और न ही राजनीतिक सहानुभूति।

भारत के दृष्टिकोण से क्यों है अहम

वैसे देखा जाए तो भारत के लिए अमेरिका की यह घोषणा किसी राहत से कम नहीं है। साल 2019 में जब पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के विमानों पर AMRAAM मिसाइलें दागीं, तो यह सवाल उठा था कि क्या अमेरिका ने F-16 फाइटर जेट्स के साथ ऐसी मिसाइलों का उपयोग केवल काउंटर-टेररिज्म ऑपरेशन्स तक सीमित नहीं रखा था?

हालांकि, अमेरिका ने उस समय भी पाकिस्तान को यह चेतावनी दी थी कि इन मिसाइलों का इस्तेमाल केवल आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए किया जा सकता है, भारत के खिलाफ नहीं। लेकिन, इस्लामाबाद ने उस समझौते का उल्लंघन किया। इसलिए अब जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ किसी नई मिसाइल डील से इनकार करता है, तो यह अघोषित रूप से भारत की सुरक्षा चिंताओं की पुष्टि करता है। इसके अलावा वह यह संदेश यह भी देता है कि वॉशिंगटन अब उन देशों को खुले हथियार नहीं देगा जो उसे धोखा दे चुके हैं।

कूटनीति का ‘साइलेंट सिग्नल’

अमेरिका के इस कदम को केवल एक हथियार सौदे से इन्कार नहीं कहा जा सकता। यह एक साइलेंट सिग्नल है, दक्षिण एशिया में कौन उसका भरोसेमंद साझेदार है और कौन नहीं। भारत और अमेरिका के बीच बीते कुछ वर्षों में BECA, COMCASA और LEMOA जैसे रक्षा समझौते हुए हैं, जिन्होंने दोनों देशों के सैन्य सहयोग को नई ऊंचाई दी है। अमेरिका अब भारत को एक ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ के रूप में देखता है। एक ऐसी शक्ति जो हिंद-प्रशांत में स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है। हालांकि, पाकिस्तान अमेरिका की इस रणनीतिक रेखा से बाहर है। उसकी नीतियां अब भी चीन पर आश्रित हैं, जो अमेरिका के लिए प्रमुख प्रतिद्वंदी है। ऐसे में अमेरिका के लिए पाकिस्तान को आधुनिक हथियार देना अपने ही रणनीतिक हितों के खिलाफ होता।

पाकिस्तान के लिए झटका, चीन के लिए चेतावनी

अमेरिका की इस घोषणा से इस्लामाबाद में झटका महसूस किया जा रहा है। पाकिस्तान की सेना, जो दशकों से अमेरिकी तकनीक पर निर्भर रही है, अब धीरे-धीरे अपने सामरिक उपकरण चीन से प्राप्त कर रही है। मगर चीन की तकनीकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं, खासकर युद्धक विमानों और मिसाइलों के क्षेत्र में। अमेरिका के इस इनकार का एक अप्रत्यक्ष प्रभाव यह भी है कि चीन को संदेश मिले कि दक्षिण एशिया में उसका ‘रणनीतिक विस्तार’ अब अमेरिका के निशाने पर रहेगा। वॉशिंगटन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पाकिस्तान चीन के माध्यम से अमेरिकी रक्षा तकनीक का लाभ न उठा सके।

भारत-अमेरिका साझेदारी की गहराई

दरअसल, इस पूरे घटनाक्रम में भारत और अमेरिका के बीच की बढ़ती पारदर्शिता और आपसी भरोसे की झलक भी मिलती है। अमेरिकी दूतावास का यह बयान सीधे भारत की जमीन से जारी किया गया है, न कि वॉशिंगटन से। यह प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक कदम है। यह दर्शाता है कि अमेरिका अपने दक्षिण एशिया नीति की घोषणा भारत की राजधानी से करना चाहता है।

यहां बता दें कि पिछले कुछ महीनों में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी, और खुफिया सहयोग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। सेमीकंडक्टर से लेकर जेट इंजन निर्माण तक की साझेदारियां इस बात का संकेत हैं कि वॉशिंगटन अब भारत को ‘ग्लोबल सिक्योरिटी आर्किटेक्चर’ का हिस्सा मान चुका है।

पाकिस्तान का ‘पॉलिसी पैरालिसिस’

दूसरी ओर पाकिस्तान एक गहरे नीति संकट में है। आर्थिक मोर्चे पर वह IMF की शर्तों में जकड़ा हुआ है, राजनीतिक अस्थिरता ने उसके शासन ढांचे को कमजोर करके रख दिया है और विदेश नीति पूरी तरह ‘रीएक्टिव’ हो चुकी है। इस्लामाबाद यह भी भलीभांति जानता है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्तों में अब कोई ‘सैन्य रोमांस’ नहीं बचा है। अफगानिस्तान में तालिबान के पुनरुत्थान के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह का दोहरा खेल खेला, उसने वॉशिंगटन को उसकी ‘अनिश्चित वफादारी’ का एहसास करा दिया।

इसलिए अमेरिका अब पाकिस्तान को केवल एक लो-प्रायोरिटी रिसीवर के रूप में देखता है। एक ऐसा देश जिसे सिर्फ़ न्यूनतम रक्षा रखरखाव के स्तर तक सीमित समर्थन दिया जाएगा, ताकि वह पूरी तरह चीन के पाले में न चला जाए, लेकिन उसे रणनीतिक बढ़त भी न मिले।

भारत की कूटनीतिक जीत

यदि व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो यह भारत की कूटनीतिक जीत है। वॉशिंगटन अब न केवल नई दिल्ली की सुरक्षा चिंताओं को स्वीकार कर रहा है, बल्कि उन्हें अपनी नीतियों का हिस्सा बना रहा है। AMRAAM मिसाइल डील का खंडन उस नीति का विस्तार है जो कहती है South Asia’s stability depends on India’s security, not Pakistan’s militarisation.

अमेरिका अब इस क्षेत्र में वही नीति लागू कर रहा है, जिसे भारत लंबे समय से कहता आया है स्थिरता का आधार लोकतंत्र, पारदर्शिता और जिम्मेदार शक्ति-संतुलन है। पाकिस्तान का इतिहास इन तीनों के विपरीत रहा है।

डिप्लोमेटिक डिनायल का संदेश

अमेरिका का यह इनकार केवल एक हथियार सौदे की कहानी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का डिप्लोमेटिक डिनायल है। ऐसा डिनायल जो शब्दों से अधिक प्रभावशाली है। यह संकेत है कि वैश्विक राजनीति अब दो ध्रुवों पर नहीं, बल्कि साझेदारियों के नेटवर्क पर टिक रही है और भारत उस नेटवर्क का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है। पाकिस्तान अब उस परिधि में खड़ा है, जहां उसकी सैन्य भूख और राजनीतिक अविश्वसनीयता, दोनों उसे अलग-थलग कर रहे हैं।

Tags: AMRAAM missile dealAMRAAM मिसाइल डीलChinaIndiamissile deal deniedPakistanUSअमेरिकाचीनपाकिस्तानभारतमिसाइल डील से इन्कार
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