भारतीय संस्कृति में विजयादशमी को धर्म (धार्मिकता) और सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह केवल भगवान राम की रावण पर विजय का स्मरण भर नहीं है, बल्कि यह अधर्म, अहंकार और असत्य पर धर्म, विनम्रता और सत्य की जीत का उत्सव है। विजयादशमी शक्ति (दिव्य शक्ति) की उपासना का महान पर्व भी है। भगवद्गीता का संदेश इस आध्यात्मिक और सांसारिक विजय से गहराई से जुड़ा हुआ है। कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान कृष्ण ने अर्जुन की विषादग्रस्तता को दूर किया और दिव्य उपदेश दिया, जो विजयादशमी के सार को भी अभिव्यक्त करता है। यदि विजयादशमी और भगवद्गीता के आपसी संबंध पर ध्यान दिया जाए, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों ही गहन दार्शनिक समानता रखती हैं।
रामायण–महाभारत: नारी सम्मान व मर्यादा का धर्म युद्ध
भगवद्गीता, जो महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है, उसकी जड़ें दुर्योधन और दुशासन द्वारा द्रौपदी का राजसभा में अपमान करने की घटना में मिलती हैं। इसी अपमान से महाभारत युद्ध का बीज अंकुरित हुआ। उसी सभा में पांडवों ने यह संकल्प लिया कि वे द्रौपदी का अपमान अवश्य प्रतिशोध लेंगे।
इसी प्रकार, रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने यह व्रत लिया कि यदि किसी राज्य में स्त्री की व्यथा–भरी पुकार उसके राजा के कानों तक नहीं पहुँचती, तो ऐसे शासक को पदच्युत करना धर्म है। और यदि कोई राजा, अपनी पत्नी रहते हुए भी अपने छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डालता है, तो उसे गद्दी से उतारना भी धर्म है।
तुलसीदास रामचरितमानस में लिखते हैं:
“अनुज वधु भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ये चारी।।
इनहि कु दृष्टि बिलोकइ जोइ। ताहि बधे कछु पाप न होइ।। (किष्किंधा कांड)”
अर्थात— छोटे भाई की पत्नी, अपनी बहन, बेटी या पुत्रवधू – ये चारों कन्या के समान हैं। जो उन पर बुरी दृष्टि डालता है, उसका वध करने में कोई पाप नहीं है। इसी वचन के आधार पर राम ने बाली का वध किया। बाद में जब रावण ने सीता का अपहरण किया, तो राम ने अन्याय के विरुद्ध जनचेतना जगाई और रावण के आतंक का अंत किया। इस प्रकार, महाभारत और रामायण—दोनों के मूल में स्त्री का अपमान है।
क्रोध की भूमिका
दूसरी समानता है— क्रोध।
पंचवटी में जब शूर्पणखा ने राम और लक्ष्मण को विवाह प्रस्ताव दिया और उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया, तो उसने सीता को बाधा मानकर उसे नष्ट करने की ठानी। लक्ष्मण ने क्रोध में आकर उसके नाक और कान काट दिए।रावण जब अपनी बहन का अपमान सुनता है तो वह क्रोध से भरकर सीता का अपहरण करता है।
उसी तरह, राजसभा में द्रौपदी का अपमान हुआ तो उन्होने भी क्रोध में ये संकल्प लिया कि वह अपने केश तब तक नहीं बांधेगी जब तक उन्हें दुशासन के रक्त से धो न ले।
इस प्रकार, दोनों महाकाव्य क्रोध से प्रारंभ होते हैं।
भगवद्गीता में कहा गया है:
“क्रोधाद्भवति सम्मोहः, सम्मोहात्स्मृति–विभ्रमः।
स्मृति–भ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। (गीता 2.63)”
अर्थात— क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रंश, स्मृति भ्रंश से बुद्धि का नाश और बुद्धि के नाश से व्यक्ति का पतन होता है। रामायण और महाभारत दोनों गवाही देते हैं कि अंततः अन्याय का साथ देने वालों का संपूर्ण विनाश हुआ।
गीता और विजयादशमी का संबंध
धर्म की विजय
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। (गीता 3.35)”
अर्थात— अपने धर्म का पालन करते हुए मरना भी श्रेयस्कर है, दूसरों का धर्म अपनाना भयावह है।
राम द्वारा विजयादशमी पर रावण का वध करना इसी धर्मनिष्ठा का उदाहरण है।
अहंकार का पतन
रावण के अहंकार और घमंड ही उसके पतन का कारण बने। गीता कहती है:
“अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः… (गीता 16.18)”
अर्थात— अहंकार, बल, दर्प, काम और क्रोध से ग्रसित व्यक्ति दूसरों से घृणा करता है और अपने विनाश की ओर बढ़ता है। विजयादशमी हमें अहंकार पर संयम का संदेश देती है।
साहस और निडरता
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को प्रेरित करते हुए कहा:
“तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः। (गीता 2.37)”
अर्थात— उठो कौन्तेय, युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय करो।
विजयादशमी भी इसी साहस और निडरता का पर्व है, जो हमें अन्याय के विरुद्ध निर्भीक होकर खड़े होने की प्रेरणा देता है।
आत्मजागरण और सामाजिक सामंजस्य
जब आत्मा जागृत होती है, तो मनुष्य अपने स्वभाव (स्वभाव) को पहचानता है। आत्मजागरण से परिवार में जागरूकता आती है, नागरिक कर्तव्यों का पालन होता है और समाज में सामंजस्य स्थापित होता है। जब समाज सामंजस्यपूर्ण हो जाता है, तो यह संवेदनशीलता केवल मानव तक सीमित नहीं रहती, बल्कि संपूर्ण प्रकृति तक फैलती है। यही स्थिति स्थायी समाधान और सतत विकास की ओर ले जाती है।
इस प्रकार, यदि विजयादशमी को भगवद्गीता की दृष्टि से देखा जाए, तो यह केवल अधर्म पर धर्म की विजय ही नहीं है, बल्कि सभी जीवों और समस्त सृष्टि के बीच गहन एकात्मता की स्थापना भी है।