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अमेरिका के सहयोगी ब्रिटेन को क्यों है भारत से उम्मीद? क्या खालिस्तान पर लगाम कसेंगे स्टार्मर ?

ट्रम्प भले ही भारत को डेड इकोनॉमी बता रहे हों, लेकिन ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर ने भारत को न सिर्फ दुनिया की उम्मीद बल्कि 2028 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने की उम्मीद जतायी है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
10 October 2025
in AMERIKA, अर्थव्यवस्था, भारत, रक्षा, रणनीति, वाणिज्य, विश्व, व्यवसाय
अमेरिका के सहयोगी ब्रिटेन को क्यों है भारत से उम्मीद? क्या खालिस्तान पर लगाम कसेंगे स्टार्मर ?

अब समय आ गया है कि लंदन दिखाए कि उसकी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता आतंक के लिए आश्रय नहीं है।

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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की भारत यात्रा अपने आप में प्रतीकात्मक से कहीं ज़्यादा ठोस थी। जब उन्होंने मुंबई में व्यापारिक नेताओं से बातचीत के दौरान यह कहा कि भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, तो यह सिर्फ़ एक आंकड़ा नहीं था, यह उस वैश्विक शक्ति-संतुलन की स्वीकृति थी, जिसमें भारत अब निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

स्टार्मर के इस कथन ने भारतीय आर्थिक शक्ति को लेकर दुनिया में नई स्पष्टता पैदा की। 2014 के बाद से भारत ने जिस रफ्तार से अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिरता, निवेश और आत्मनिर्भरता के रास्ते पर बढ़ाया है, उसने न केवल पश्चिम बल्कि एशिया–प्रशांत क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। इन सबके इतर, ब्रिटेन जो कभी औद्योगिक क्रांति का जन्मस्थान था, अब उसी भारत के साथ हाथ मिलाने के लिए उत्सुक है, जिसे वह कभी उपनिवेश कहा करता था। लेकिन इस यात्रा का महत्व केवल आर्थिक नहीं था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री स्टार्मर दिल्ली में आमने-सामने बैठे, तो मेज़ पर रखे मुद्दों में सबसे ऊपर था, खालिस्तानी उग्रवाद।

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पीएम मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि लोकतंत्र की स्वतंत्रता को हिंसक चरमपंथ का हथियार नहीं बनने दिया जा सकता। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया कि प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि हिंसक उग्रवाद और कट्टरपंथ का लोकतांत्रिक समाजों में कोई स्थान नहीं है। दोनों नेताओं के बीच यह चर्चा भारत की उस पुरानी शिकायत की गूंज थी कि ब्रिटेन ने लंबे समय से अपने यहां खालिस्तानी तत्वों को खुली छूट दी हुई है।

भारत का तर्क सीधा और साफ

इस मामले में भारत का तर्क बिल्कुल सीधा और साफ है। आपकी धरती पर पलने वाले चरमपंथी हमारे राष्ट्र की संप्रभुता को चुनौती दे रहे हैं और अब जब ब्रिटेन खुद भी आतंकवाद और चरमपंथ के नए रूपों से जूझ रहा है, तो भारत की यह चिंता उसकी अपनी सुरक्षा का भी हिस्सा बन गई है। स्टार्मर की यात्रा ऐसे समय पर हुई जब ब्रिटिश सरकार की Extremism Review रिपोर्ट में खालिस्तानी उग्रवाद को देश के नौ बड़े उभरते ख़तरों में शामिल किया गया है। 2023 में भारतीय उच्चायोग पर हमला, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने भारतीय तिरंगा फाड़ा और दूतावास की इमारत में घुसपैठ की, अब लंदन के लिए एक नैतिक बोझ बन चुका है। मोदी–स्टार्मर वार्ता इस बोझ को उतारने की पहली ठोस कोशिश कही जा सकती है।

दोनों देशों के संयुक्त बयान में आतंकवाद के लिए शून्य सहनशीलता और कट्टरपंथ से मुकाबले की बात की गई। यह भाषा सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थी, बल्कि नीति का संकेत थी कि भारत और ब्रिटेन अब सुरक्षा सहयोग के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। लेकिन, यह सब उस आर्थिक साझेदारी की पृष्ठभूमि में हो रहा है, जो दोनों देशों के रिश्ते की असली धुरी है।

स्टार्मर अपने साथ 125 सदस्यीय बिज़नेस डेलिगेशन लेकर भारत आए, जिसमें ब्रिटेन के शीर्ष सीईओ, विश्वविद्यालयों के कुलपति और निवेशक शामिल थे। इस प्रतिनिधिमंडल का आकार यह बताता है कि ब्रिटेन अब भारत को केवल एक बाज़ार नहीं, बल्कि अपनी आर्थिक पुनरुत्थान रणनीति का साझेदार मान रहा है।

भारत–ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पहले ही हस्ताक्षरित हो चुका है और अब रैटिफिकेशन की प्रक्रिया में है। इस समझौते से न केवल व्यापार सस्ता और तेज़ होगा, बल्कि तकनीकी, हरित ऊर्जा और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के नए दरवाज़े खुलेंगे। स्टार्मर ने कहा कि यह समझौता सिर्फ़ एक काग़ज़ नहीं, बल्कि विकास का लॉन्चपैड है। उनका यह बयान ब्रिटेन की नई प्राथमिकता का संकेत है। भारत अब ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का ‘एशियाई इंजन’ है। जब यह इंजन 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, तो ब्रिटेन जैसी परिपक्व अर्थव्यवस्था के लिए भारत के साथ साझेदारी करना एक आर्थिक आवश्यकता भी बन जाएगा।

सुरक्षा और व्यापार रहे अहम मुद्दे

दरसल में दिल्ली में मोदी और स्टार्मर की बैठक में सुरक्षा और व्यापार दोनों का एक अद्भुत संगम दिखाई दिया। एक तरफ़ चर्चा थी कट्टरपंथ, चरमपंथ और भारत-विरोधी नेटवर्क पर, दूसरी तरफ़ बात थी निवेश, तकनीक और नवाचार पर। ध्यान रहे कि यह वही भारत है जो अब केवल मदद मांगने वाला देश नहीं, बल्कि साझेदारी की शर्तें तय करने वाला देश बन चुका है। पीएम मोदी की कूटनीति का यही आत्मविश्वास ब्रिटेन जैसे पुराने शक्ति-केंद्रों को अपनी नीतियां दोबारा से तैयार करने पर मजबूर कर रहा है।

इस दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यह भी साफ़ किया कि उनकी यात्रा में किसी वीज़ा डील का सवाल नहीं है। यह बयान ब्रिटेन की घरेलू राजनीति के लिहाज़ से ज़रूरी था, लेकिन इसने यह भी दिखाया कि भारत के साथ ब्रिटेन अब समझौतों की राजनीति से ऊपर उठकर समानता के रिश्ते की ओर बढ़ना चाहता है।

लेकिन, भारत के लिए यह साझेदारी तभी सार्थक होगी, जब ब्रिटेन अपनी धरती पर चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों पर ठोस कदम उठाए। चाहे वह रेफरेंडम 2020 जैसी फर्जी मुहिम हो या गुरुद्वारों के ज़रिए फैलाई जा रही वैचारिक घृणा। अब समय आ गया है कि लंदन दिखाए कि उसकी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता आतंक के लिए आश्रय नहीं है।

अगर स्टार्मर इस दिशा में कदम उठाते हैं, तो यह ब्रिटेन की विदेश नीति में एक ऐतिहासिक सुधार होगा, जहां वह भारत को सिर्फ़ एक व्यापारिक अवसर नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखेगा। भारत और ब्रिटेन का यह संबंध अब व्यापारिक करारों या विश्वविद्यालय साझेदारियों से कहीं आगे जा चुका है। यह दो लोकतंत्रों के बीच उस नए युग की शुरुआत है, जहां विकास और सुरक्षा दोनों समान रूप से प्राथमिकता में हैं।

भारत का 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना केवल आर्थिक उपलब्धि नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में उसके स्थान को दोबारा से परिभाषित करना है। यह स्थिति भारत को न केवल आर्थिक साझेदार बनाती है, बल्कि एक ऐसा राष्ट्र भी बनाती है जिसके साथ सहयोग करना अब किसी के लिए विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।

कीर स्टार्मर की यह यात्रा इसी अनिवार्यता की स्वीकृति है कि भारत अब केवल उभरता हुआ नहीं, बल्कि निर्णायक वैश्विक खिलाड़ी है। जब दिल्ली और लंदन एक साथ यह समझने लगते हैं कि उग्रवाद और आतंक के खिलाफ़ लड़ाई उतनी ही अहम है जितनी व्यापार की साझेदारी, तब इतिहास बताता है कि यही वह बिंदु होता है जहां रिश्ते महज़ कूटनीति नहीं, बल्कि विश्वास में बदल जाते हैं।

Tags: IndiaKeir StarmerKhalistani terrorismPM ModiThird Economytrade partnershipUKUK PM's visit to Indiaकीर स्टार्मरखालिस्तानी आतंकवादतीसरी अर्थव्यवस्थापीएम मोदीब्रिटेनब्रिटेन के पीएम की भारत यात्राभारतव्यापार साझेदारी
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