सिंगापुर से आई एक खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। असम के लोकप्रिय गायक ज़ुबिन गर्ग की अचानक मौत। शुरुआती बयान में कहा गया कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण डूबने की दुर्घटना थी। लेकिन कुछ ही दिनों में मामला इतना उलझ गया कि अब यह संभावित हत्या, लापरवाही और संगठित साज़िश के शक के घेरे में आ गया है।
ज़ुबिन गर्ग, जिन्हें असमिया संगीत की आत्मा कहा जाता था। 2000 के दशक में एक सांस्कृतिक प्रतीक बन चुके थे। “या अली” और “मया” जैसे गीतों से उन्होंने सिर्फ़ संगीत नहीं दिया, बल्कि उन्होंने एक पहचान गढ़ी। इसलिए जब यह खबर आई कि वे सिंगापुर में एक कार्यक्रम के दौरान डूब गए, तो किसी ने पहले-पहल तो शक नहीं किया। लेकिन अब, एक-एक बयान और सबूत यह इशारा दे रहे हैं कि ज़ुबिन की मौत उतनी सीधी नहीं, जितनी दिखाई दे रही है।
सहकर्मी का खुलासा: यह हादसा नहीं था
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ज़ुबिन के बैंडमेट शेखर ज्योति गोस्वामी ने अपने बयान में दो लोगों सिद्धार्थ शर्मा और श्यामकानु महंता पर ज़हर देने का आरोप लगाया। गोस्वामी का बयान, जो सीआईडी की रिमांड नोट में दर्ज है, एक भयावह तस्वीर पेश करता है।
उनके अनुसार, सिंगापुर यात्रा के दौरान सिद्धार्थ शर्मा लगातार संदिग्ध व्यवहार कर रहा था। जिस यॉट पर ज़ुबिन गर्ग आख़िरी बार ज़िंदा देखे गए, उस पर उसने ज़बरदस्ती नियंत्रण कर लिया। जब ज़ुबिन अचानक मुंह और नाक से झाग छोड़ने लगे, तो शर्मा ने जाबो दे, जाबो दे (मत बचाओ, जाने दो) कहा, अब यह बयान पूरे असम में गूंज उठा है।
गोस्वामी का दावा है कि शर्मा ने तब किसी को मदद बुलाने नहीं दी, बल्कि कहा कि यह एसिड रिफ्लक्स है। उसने खुद पेय पदार्थों पर नियंत्रण रखा और बाकियों को निर्देश दिया कि कोई और ड्रिंक न परोसे। अब जांच एजेंसियां ये मान रही हैं कि शायद वहीं से ज़हर का खेल शुरू हुआ था।
विदेशी लोकेशन और शक के घेरे में आयोजन
सिंगापुर का मंच, जो भारत-आसियान पर्यटन वर्ष के तहत आयोजित नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल का हिस्सा था, अब खुद शक के घेरे में है। इसके आयोजक श्यामकानु महंता पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह विदेशी स्थान जानबूझकर चुना गया ताकि किसी दुर्घटना या हत्या की जांच भारत में कठिन हो जाए।
सिंगापुर की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण डूबना बताया गया, लेकिन यह भी सत्य है कि ज़ुबिन एक कुशल तैराक थे। उनके करीबी कहते हैं, ज़ुबिन झील में गाना गा सकते थे, लेकिन उसमें डूब नहीं सकते थे। इसके बाद जब यह पता चला कि शर्मा ने यॉट पर शूट हुए किसी भी वीडियो या फुटेज को साझा न करने का आदेश दिया था, तो मामला और गहराने लगा। यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित पर्दादारी की तरह लगने लगा।
सीआईडी की जांच और गिरफ्तारी की कड़ी
असम की सीआईडी ने अब तक पूरे राज्य में 60 से अधिक एफआईआर मिलने के बाद जांच को तेज़ कर दिया है। शर्मा, महंता और दो अन्य लोगों को दिल्ली से गिरफ्तार कर गुवाहाटी लाया गया है। सभी को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया है। जांचकर्ता अब उनके मोबाइल, लैपटॉप और वीडियो रिकॉर्डिंग खंगाल रहे हैं। मामले ने अब आर्थिक मोड़ भी ले लिया है। सूत्रों का कहना है कि ईडी और इनकम टैक्स विभाग भी इस जांच में शामिल हो सकते हैं, क्योंकि आयोजक महंता पर बेनामी संपत्तियों और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप भी सामने आए हैं।
मुख्यमंत्री का ऐलान: न्यायिक जांच और अफ़वाहों पर चेतावनी
बढ़ते जनाक्रोश के बीच, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने न्यायिक जांच की घोषणा की है। गुवाहाटी हाई कोर्ट के जस्टिस सौमित्र साइकिया इस जांच की निगरानी करेंगे। सरकार ने यह भी चेतावनी दी है कि सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की एआई जनित या भ्रामक तस्वीरें साझा करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। हाल ही में एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें गिरफ्तार आरोपी हंसते हुए दिखाई दिए। इस तस्वीर ने जनता का गुस्सा और भड़का दिया।
मुख्यमंत्री ने जनता से अपील की है कि जो भी व्यक्ति ज़ुबिन के आख़िरी पलों से जुड़ी कोई वीडियो या ठोस जानकारी रखता है, वह जांच एजेंसियों को उपलब्ध कराए।
सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर मामला
इस बीच, आयोजक श्यामकानु महंता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है कि मामला सीआईडी से हटाकर सीबीआई या एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपा जाए। उनका कहना है कि राज्य में उनके खिलाफ माहौल शत्रुतापूर्ण है और उनकी जान को खतरा है। लेकिन सवाल यही है कि क्या यह सुरक्षा की अपील है या जवाबदेही से बचने की चाल? कोर्ट ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन फिलहाल जांच असम सीआईडी के पास ही है।
संगीत से साज़िश तक: अधूरी कहानी
ज़ुबिन गर्ग सिर्फ़ गायक नहीं थे, वे असम की आत्मा की आवाज़ थे। उनकी मौत ने संगीत के साथ-साथ सांस्कृतिक चेतना को भी हिला कर रख दिया है। जो मामला एक डूबने की दुर्घटना समझा गया था, अब एक गुंथे हुए षड्यंत्र, ज़हर और वित्तीय हेराफेरी का केस बन चुका है।
इस मामले में हर नए दिन एक नई परत खुलती है, गवाही, मोबाइल चैट, वीडियो और उन दोस्तों की चुप्पी जो अब हिरासत में हैं। सच क्या है, यह अभी कोशों दूर है। लेकिन असम के लोग साफ़ कह रहे हैं कि ज़ुबिन के लिए न्याय चाहिए, चाहे इसमें कितने भी चेहरे उजागर हों।
एक आवाज़ जो अब भी गूंज रही है
आज जब असम की गलियों में ज़ुबिन अमर रहो के नारे गूंजते हैं, तो यह सिर्फ़ एक गायक की याद नहीं, यह सांस्कृतिक न्याय की मांग भी है। सच चाहे जितना छिपाया जाए, लेकिन एक बात तय है, असम की जनता अब शांत नहीं बैठेगी। क्योंकि जब एक कलाकार मरता है, तो समाज का एक हिस्सा भी मरता है। इसके बाद जब साज़िश के शक उठते हैं, तो न्याय सिर्फ़ कानूनी नहीं, नैतिक दायित्व भी बन जाता है।