75 वर्षों से भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ हमेशा सतर्क और संतुलित नीति अपनाई है। विशेष रूप से बांग्लादेश, जिसे आजादी दिलाने में भारत की भूमिका सर्वोपरि रही, उसने अब चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में आने का प्रयास शुरू कर दिया है। यह कदम न केवल बांग्लादेश के अपने हितों के खिलाफ है, बल्कि उसके लिए आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से गंभीर नुकसान का कारण भी बन रहा है।
हाल ही में सामने आए तथ्य और समाचारों के अनुसार, बांग्लादेश ने दुबई के माध्यम से भारत का चावल आयात करने का निर्णय लिया है। superficially यह व्यापारिक निर्णय लग सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह कदम बांग्लादेश के लिए अतिरिक्त लागत और नुकसान का कारण बन रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि दुबई स्वयं चावल उत्पादक देश नहीं है, वह भारत से चावल आयात करता है और उसे पुनः निर्यात करता है। ऐसे में बांग्लादेश के लिए यह निर्णय अर्थशास्त्र की दृष्टि से भी समझ से परे है।
भारत के लिए इसका अर्थ
भारत के लिए यह स्थिति केवल व्यापार का मामला नहीं है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन का भी प्रश्न है। भारत ने अब पूर्वोत्तर राज्यों से बांग्लादेश को जोड़ने वाले लैंड पोर्ट्स को सीमित कर दिया है। इसका अर्थ यह है कि बांग्लादेश अब समुद्री मार्गों के माध्यम से ही भारतीय सामानों को लाना-ले जाना करेगा, जिससे उसकी लागत में भारी वृद्धि होगी। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार, इस कदम से बांग्लादेश को लगभग 77 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा। यह उसके द्विपक्षीय आयात का लगभग 42 प्रतिशत है।
बांग्लादेश ने अपने भंडार की पर्याप्त क्षमता होने के बावजूद चावल आयात किया है। इस कदम को जोखिम से बचाव के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसका यह कदम उसकी आर्थिक बुद्धिमानी और व्यापारिक दृष्टि के विरुद्ध है। भारत से सीधे चावल खरीदने की सुविधा होने के बावजूद दुबई और म्यांमार के माध्यम से महंगे आयात का निर्णय उसके लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ है।
बांग्लादेश का बढ़ रहा व्यापार घाटा
यह आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी बांग्लादेश के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है। शेख हसीना सरकार के बाद सत्ता में आए मोहम्मद यूनुस प्रशासन ने चीन और पाकिस्तान के साथ निकटता बढ़ाने का प्रयास शुरू किया। यह कदम भारत के प्रति उसकी दूरी को दर्शाता है। लेकिन यह दूरी बांग्लादेश के हितों के खिलाफ काम कर रही है। भारत के साथ तनाव की वजह से न केवल व्यापार घाटा बढ़ रहा है, बल्कि भारतीय बाजार तक उसकी पहुंच में भी बाधा आ रही है।
दुबई के माध्यम से चावल आयात करने की प्रक्रिया ने बांग्लादेश के लिए अतिरिक्त लागत उत्पन्न की है। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, दुबई स्थित आपूर्तिकर्ता से खरीदे गए 50,000 टन गैर-बासमती पारबॉयल्ड चावल की लागत 216.9 मिलियन टका है, जबकि म्यांमार से आयातित 50,000 टन अताप चावल की लागत 2.293 अरब टका है। भारत से सीधे आयात करने की स्थिति में यह लागत कहीं अधिक कम हो सकती थी।
यह स्थिति स्पष्ट करती है कि भारत की सतर्क नीति और बांग्लादेश की रणनीतिक गलतियां उसे महंगी पड़ रही हैं। लैंड पोर्ट्स के बंद होने, समुद्री मार्गों के उपयोग, और चीन-पाकिस्तान के प्रति बढ़ती निकटता ने बांग्लादेश के व्यापारिक और आर्थिक ढांचे को कमजोर किया है। भारतीय उत्पादों के लिए उसका निर्यात कठिन हुआ है, और भारतीय बाज़ार में उसकी उपस्थिति सीमित हुई है।
किन चीजों के आयात पर पड़ा प्रभाव
सिर्फ चावल तक ही नहीं, बल्कि रेडीमेड गारमेंट्स, कॉटन और कॉटन यार्न जैसी वस्तुओं के निर्यात पर भी प्रभाव पड़ा है। लैंड पोर्ट्स बंद होने से बांग्लादेश को अपने उत्पादों को भारत तक पहुंचाने में कठिनाई हुई है। यह स्थिति उसके लिए केवल आर्थिक घाटा नहीं, बल्कि राजनीतिक कमजोरी का संकेत भी है। चीन और पाकिस्तान की गोद में बैठकर भारत से दूरी बनाने की कोशिश बांग्लादेश के लिए अधिक महंगी साबित हो रही है।
भारत की सतर्क नीति और रणनीति ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि किसी भी पड़ोसी देश की गलत नीति महंगी पड़ सकती है। बांग्लादेश की चीन-पाकिस्तान के प्रति झुकाव की कीमत वह दुबई और म्यांमार के माध्यम से महंगे चावल आयात में चुका रहा है। यह केवल व्यापार का मामला नहीं, बल्कि उसकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय संतुलन पर बड़ा असर डाल रहा है।
आर्थिक नुकसान के अलावा, यह कदम बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति पर भी प्रभाव डाल रहा है। भारत से दूरी और चीन-पाकिस्तान के साथ निकटता उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर स्थिति में डाल रही है। इसके चलते उसे भारतीय बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रखना कठिन हो गया है। यह स्थिति उसकी सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और राजनीतिक प्रभाव के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है।
इस पूरी परिस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत की सतर्क नीति, लैंड पोर्ट्स का नियंत्रण और पड़ोसी देशों की गलत रणनीति उनके लिए आर्थिक और राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकती है। बांग्लादेश ने भारत से दूरी और चीन-पाकिस्तान के साथ निकटता का निर्णय लिया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उसे महंगी कीमत चुकानी पड़ रही है।




























