भारतीय राजनीति का इतिहास केवल सत्ता की लड़ाई तक सीमित नहीं है। यह उस देश के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों, उसकी चेतना और राष्ट्रनिर्माण के दृष्टिकोण से भी गहरा जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच चलती रही जटिल राजनीति का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने RSS पर पुनः प्रतिबंध लगाने की मांग की, जो उन्होंने अपने निजी विचार के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इसे 1948 में सरदार वल्लभभाई पटेल के पत्र से जोड़ा, जिसमें गांधी जी की हत्या के बाद RSS की गतिविधियों का उल्लेख था और तत्कालीन सरकार ने संगठन के खिलाफ कदम उठाए थे।
खरगे का बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, ये यह भी दर्शाता है कि कांग्रेस आज भी RSS को एक संगठनात्मक और सामाजिक चुनौती के रूप में देखती है। लेकिन जब इसे विस्तार से देखा जाए, तो यह साफ होता है कि RSS हर बार न केवल राजनीतिक दबाव झेलता रहा, बल्कि समाज में अपनी स्थायी उपस्थिति और प्रभाव बनाए रखता ही नहीं है, लगतार बढ़ता रहा और आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन चुका है, जिसकी जड़ें पूरे विश्व में फैलती ही जा रही हैं।
खरगे का बयान और कांग्रेस की रणनीति
खरगे ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार वल्लभभाई पटेल के विचारों का सम्मान करते हैं, तो RSS पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि देश में कानून-व्यवस्था की समस्याओं के लिए बीजेपी और RSS जिम्मेदार हैं।
खरगे के इस बयान के पीछे दो महत्वपूर्ण राजनीतिक आयाम हैं। एक ओर, यह कांग्रेस की रणनीति को उजागर करता है कि वह RSS को न केवल ऐतिहासिक संदर्भ में चुनौती दे रही है, बल्कि वर्तमान सरकार के नेतृत्व और नीति निर्णयों को भी निशाना बना रही है। दूसरी ओर, यह बयान दर्शाता है कि कांग्रेस अब भी RSS की संगठनात्मक शक्ति, उसकी जनता के बीच पहुंच और उसके राष्ट्रवादी संदेश को गंभीरता से लेती है।
सरदार पटेल के पत्र का उल्लेख करके खरगे ने यह संकेत दिया कि इतिहास स्वयं RSS की गतिविधियों के प्रति चेतावनी देता है। उन्होंने इसे वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में जोड़कर एक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया कि अगर लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करनी है, तो संगठन पर कदम उठाना चाहिए। लेकिन इतिहास का यह एक पक्ष है। RSS ने समय-समय पर अपने सिद्धांतों और समाज में योगदान को बनाए रखा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दायरे में रहते हुए अपनी गतिविधियों को संचालित किया।
RSS का इतिहास और आत्मविश्वास
RSS की स्थापना 1925 में हुई और यह संगठन भारतीय समाज में अनुशासन, संगठनात्मक क्षमता और राष्ट्रवाद के संदेश के लिए जाना गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा। उस समय यह कदम तत्कालीन परिस्थितियों और राजनीतिक दबावों के कारण जरूरी था।
लेकिन यह प्रतिबंध RSS को कमजोर नहीं कर सका। संगठन ने अपने अनुशासन, नेटवर्क और सामाजिक कार्यों के माध्यम से जनता में अपनी पकड़ बनाए रखी। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और राष्ट्रीय एकता के कार्यक्रमों के जरिए RSS ने समाज के हर स्तर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यही कारण है कि आज भी RSS अपने उद्देश्य और सिद्धांतों पर दृढ़ है।
कांग्रेस का डर RSS से इसलिए है, क्योंकि यह संगठन केवल राजनीतिक मंच तक सीमित नहीं है। इसके सामाजिक अभियान, शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रम, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य और राष्ट्रीय चेतना फैलाने के अभियान इसे समाज में स्थायी रूप से स्थापित करते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस ने समय-समय पर प्रतिबंधों और आलोचनाओं का सहारा लिया, लेकिन इन कदमों से संगठन की वास्तविक शक्ति या जनता में उसकी पकड़ पर कोई असर नहीं पड़ा।
कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला: न्यायपालिका का दृष्टिकोण
हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को फटकार लगाई, जिसमें RSS जैसी संस्थाओं की गतिविधियों पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के तहत सभी नागरिक और संगठन स्वतंत्र हैं और केवल राजनीतिक कारणों से किसी संगठन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
हाईकोर्ट का यह फैसला यह दर्शाता है कि RSS की स्थिरता केवल संगठनात्मक क्षमता पर निर्भर नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और संविधान के संरक्षण पर भी आधारित है। संगठन ने हमेशा कानून और संविधान का सम्मान किया और समाज में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखी। न्यायपालिका ने स्पष्ट किया कि किसी भी संगठन के खिलाफ कार्रवाई उसके संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रता के आधार पर होनी चाहिए, न कि राजनीतिक भय या आरोपों के कारण।
RSS और समाज: स्थायी योगदान
RSS का समाज में योगदान केवल राजनीतिक मंच तक सीमित नहीं है। इसके स्वयंसेवक शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण, और आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। संगठन के स्वयंसेवक जनता के बीच सीधे जुड़ते हैं, लोगों की समस्याओं को समझते हैं और समाधान के लिए प्रेरित करते हैं।
यह सामाजिक सेवा RSS को केवल राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक बनाती है। यही कारण है कि संगठन किसी भी राजनीतिक दबाव या आलोचना के बावजूद दृढ़ और प्रभावी रहता है।
तो RSS से क्यों डरती है कांग्रेस
खरगे का बयान राजनीतिक दृष्टि से स्पष्ट करता है कि कांग्रेस RSS को चुनौतीपूर्ण संगठन मानती है। लेकिन यह बयान वास्तविकता से दूरी बनाता है। RSS ने कभी भी केवल राजनीतिक लाभ के लिए अपने कार्यों को संचालित नहीं किया। संगठन की शक्ति उसके अनुशासन, जनता के साथ संबंध और सामाजिक योगदान में निहित है।
खरगे ने इसे सरदार पटेल के पत्र से जोड़कर ऐतिहासिक संदर्भ दिया, लेकिन आज की परिस्थितियों में RSS ने अपने सिद्धांतों और समाज में भूमिका को बनाए रखा है। भाजपा के साथ राजनीतिक संबंध केवल संगठनात्मक दृष्टि का हिस्सा हैं, इसका मतलब यह नहीं कि RSS अपने सामाजिक और राष्ट्रवादी मिशन से विचलित हो गया है।
लोकतंत्र और RSS की मजबूती
भारतीय लोकतंत्र में RSS केवल राजनीतिक संगठन नहीं है। यह संगठन समाज और राष्ट्र के निर्माण में स्थायी योगदान देने वाला एक आंदोलन है। कांग्रेस द्वारा लगाए गए प्रतिबंध और आलोचना केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया थी, जो संगठन की वास्तविक शक्ति और जनता में उसकी पकड़ को प्रभावित नहीं कर सकीं।
कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला यह स्पष्ट करता है कि लोकतंत्र और न्यायपालिका RSS के संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करती है। यही कारण है कि RSS हमेशा आत्मविश्वास और स्थिरता के साथ खड़ा रहता है और उसके सामाजिक और राष्ट्रीय योगदान की शक्ति उसे हर राजनीतिक और सामाजिक चुनौती से ऊपर उठाती है।
RSS, खरगे और भविष्य की राजनीति
खरगे के बयान और कांग्रेस की दृष्टि यह दर्शाते हैं कि RSS आज भी राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण संगठन है। लेकिन इस बयान के माध्यम से यह भी साफ होता है कि संगठन केवल राजनीतिक मंच तक सीमित नहीं है। इसके सामाजिक और राष्ट्रीय योगदान ने इसे भारतीय जनता और लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभों में बदल दिया है।
RSS का इतिहास, समाज में योगदान, न्यायपालिका का समर्थन और संगठनात्मक आत्मविश्वास यह संकेत देते हैं कि वह न केवल राजनीतिक आलोचना का सामना करने में सक्षम है, बल्कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाने में भी सक्षम है। कांग्रेस का डर RSS की स्थायित्व, अनुशासन और जनता के बीच मजबूत पकड़ से उत्पन्न होता है, जो संगठन को हर चुनौती में अधिक प्रभावी बनाती है।
खरगे का बयान, सरदार पटेल के पत्र का संदर्भ, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला और RSS का सामाजिक योगदान मिलकर यह साबित करते हैं कि RSS केवल एक राजनीतिक संगठन नहीं है। यह भारतीय समाज, संस्कृति और लोकतंत्र के निर्माण में स्थायी और निर्णायक भूमिका निभाने वाला संगठन है।
कांग्रेस का डर उसकी संगठनात्मक शक्ति, अनुशासन और समाज में प्रभाव के कारण है। जबकि संगठन ने हमेशा कानून और संविधान का सम्मान किया, न्यायपालिका ने उसे संविधान के तहत सुरक्षा प्रदान की। RSS का इतिहास और वर्तमान समाज में उसकी भूमिका यह दर्शाती है कि संगठन किसी भी राजनीतिक या सामाजिक दबाव से विचलित नहीं होता और हमेशा आत्मविश्वास और स्थिरता के साथ खड़ा रहता है।
भारतीय लोकतंत्र में RSS का योगदान केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि वह आज भी उतना ही मजबूत और प्रभावी है जितना कि उसने पहले दशकों में अपनी पहचान बनाई थी।




























