मुनीर की ताजपोशी और अमेरिका-चीन की शह: पाकिस्तान में शुरू हुआ सत्ता-सेना गठबंधन का नया संस्करण, भारत को सीधे चुनौती

मई 2025 में असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया गया। अब उसकी नियुक्ति को स्थाई करने की तैयारी हो रही है। पाकिस्तान की सरकार का यह कदम केवल उसका सम्मान नहीं है, यह सेना को संवैधानिक और कानूनी तौर पर स्थायी शक्ति देने का रणनीतिक एजेंडा है।

मुनीर की ताजपोशी और अमेरिका-चीन की शह: पाकिस्तान में शुरू हुआ सत्ता-सेना गठबंधन का नया संस्करण, भारत को सीधे चुनौती

मुनीर की सत्ता स्थायी होने के पीछे केवल आंतरिक राजनीति नहीं है।

पाकिस्तान के अंधेरे कारागार में बैठा इमरान खान सिर्फ एक कैदी नहीं है। वह उस सत्ता-संघर्ष का प्रतीक है, जिसने पाकिस्तान को 77 वर्षों से बंधक बनाकर रखा है। उस देश में लोकतंत्र का आवरण हमेशा दिखावा रहा है, असली निर्णय सेना के उच्च कमांडरों और खुफिया नेटवर्क की गहन छाया में हुए हैं। इमरान की गिरफ्तारी और उसके समर्थकों पर दबाव केवल एक राजनीतिक दमन नहीं है, बल्कि यह उस रणनीति का हिस्सा है जो पाकिस्तान में सेना के स्थायी प्रभुत्व को सुनिश्चित करती है। यही वह प्रवृत्ति है जिसके तहत मई 2025 में असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया गया। अब उसकी नियुक्ति को स्थाई करने की तैयारी हो रही है। पाकिस्तान की सरकार का यह कदम केवल उसका सम्मान नहीं है, यह सेना को संवैधानिक और कानूनी तौर पर स्थायी शक्ति देने का एक रणनीतिक एजेंडा है, जिससे कोई सिविल नेता या लोकतांत्रिक प्रक्रिया भविष्य में चुनौती तक नहीं दे सकेगी।

अब सेना के अधीन होगी पाकिस्तान की सत्ता

पाकिस्तान का इतिहास हमें बार-बार याद दिलाता है कि जब भी देश में राजनीतिक अस्थिरता आई, सेना ने तत्काल कदम उठाया। 1958 में अयूब खान ने पहला तख्तापलट किया, इसके बाद याह्या खान, ज़िया-उल-हक़ और मुशर्रफ़ ने सत्ता पर कब्जा किया। इस बार स्थिति केवल अलग नहीं है, बल्कि संवैधानिक रूप से औपचारिक किया जा रहा है। शहबाज शरीफ की सरकार, जो अपने आप में अस्थिर और सेना की अधीनस्थ है, ने 27वें संविधान संशोधन के जरिए फील्ड मार्शल पद को संवैधानिक रूप देना सुनिश्चित किया, ताकि मुनीर न केवल पद पर बने रहें, बल्कि उनके अधिकार और शक्ति संरचना स्थायी रूप से सुरक्षित रहे। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान में सत्ता अब केवल संसद या प्रधानमंत्री के हाथ में नहीं, बल्कि सेना की निरंतर और कानूनी मान्यता प्राप्त शक्ति के अधीन होगी।

मुनीर और इमरान खान का संघर्ष केवल राजनीतिक या व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता नहीं है। यह एक गहन इंटेलिजेंस बनाम राजनीतिक नेतृत्व का टकराव है। मुनीर ने आईएसआई में अपने लंबे करियर के दौरान कई रिपोर्टें तैयार की थीं, जिनमें इमरान और उनके करीबी सहयोगियों की कमजोरियां उजागर की गई थीं। इमरान ने इसे चुनौती मान लिया और उन्हें सत्ता से हटा दिया, लेकिन मुनीर ने राजनीतिक अस्थिरता के बाद लौटकर खुद को सेना प्रमुख बनाया और अपनी शक्ति को नए रूप में स्थापित किया। इमरान की गिरफ्तारी, पार्टी के नेताओं पर दबाव, मीडिया और सोशल मीडिया पर नियंत्रण, यह सब केवल सत्ता की संरचना को सुरक्षित करने के लिए किया गया। पाकिस्तान में अब लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका केवल दिखावा होगी, वास्तविक निर्णय सेना के हाथों में होंगे।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदली रणनीति

मई 2024 में भारत द्वारा संचालित ऑपरेशन सिंदूर इस संघर्ष का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। यह कार्रवाई न केवल सीमापार आतंकवादी लॉन्चपैड और प्रशिक्षण शिविरों को निशाना बनाती थी, बल्कि पाकिस्तान की सेना के आत्मविश्वास को सीधे चुनौती देती थी। ऑपरेशन के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी लॉन्चपैड और लॉजिस्टिक नोड्स भारी क्षति से गुज़रे, एयर डिफेंस और मोर्टार यूनिट्स अप्रभावी साबित हुईं, और आतंकवादी नेटवर्क बाधित हुआ। यह पहली बार था, जब पाकिस्तान को अपनी सैन्य विफलता का सामना करना पड़ा। मुनीर ने तुरंत महसूस किया कि या तो वह पद पर बने रहकर शक्ति संरचना बदलेंगे या इतिहास में एक असफल जनरल के रूप में दर्ज होंगे। उन्होंने पहला रास्ता चुना और संविधान संशोधन की योजना को गति दी।

संसद भी होगी सेना के अधीन

संशोधन केवल पद को औपचारिक बनाने का प्रयास नहीं है, बल्कि सेना को कानूनी रूप से अजेय बनाने की रणनीति है। इसके तहत फील्ड मार्शल के अधिकार, कार्यकाल और सेवा शर्तें संविधान में शामिल होंगी, सिविल सरकार के हस्तक्षेप को सीमित किया जाएगा और सेना प्रमुख को संवैधानिक सुरक्षा मिलेगी। इस कदम से पाकिस्तान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया सिर्फ़ दिखावा बन जाएगी। जनता और संसद के फैसले अब सेना के निर्णयों के अधीन होंगे।

मुनीर की सत्ता स्थायी होने के पीछे केवल आंतरिक राजनीति नहीं है। अमेरिका और चीन दोनों अपनी-अपनी रणनीतिक हितों के कारण उसे सत्ता में बनाए रखना चाहते हैं। अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर नियंत्रित रखना चाहता है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे। चीन CPEC और Belt & Road परियोजनाओं के जरिए पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता चाहता है, ताकि अपने दक्षिण एशियाई हितों की सुरक्षा कर सके। इस प्रकार मुनीर का सत्ता में स्थायित्व केवल पाकिस्तान का मामला नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति का हिस्सा बन गया है।

भारत के लिए इसके मायने

भारत के लिए यह स्थिति कई तरह के रणनीतिक खतरे पैदा करती है। पहली बात, सेना के स्वतंत्र निर्णय और अप्रत्याशितता सीमा पर तनाव को बढ़ा सकती है। दूसरी, हाइब्रिड वॉरफेयर की संभावना बढ़ जाएगी जिसमें ड्रोन, साइबर हमले और प्रोपेगैंडा शामिल हैं। तीसरी, कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की दबाव नीति तेज होगी। चौथी, FATF और अंतरराष्ट्रीय दबाव का सीमित प्रभाव होगा, क्योंकि संविधान सुरक्षा से सेना को दबाव से बाहर रखा जाएगा। पांचवीं, राजनीतिक अस्थिरता का निरंतर जोखिम बना रहेगा क्योंकि इमरान या अन्य लोकतांत्रिक नेताओं की कोशिशें अप्रभावी होंगी।

भारत को इन खतरों का सामना कई मोर्चों पर करना होगा। सैन्य दृष्टिकोण से सीमावर्ती ऑपरेशन्स, ड्रोन और टेक्नोलॉजी के लिए तैयार रहना आवश्यक है। खुफिया दृष्टिकोण से RAW और अन्य एजेंसियों को पाकिस्तानी सेना और खुफिया नेटवर्क की निगरानी करनी होगी। कूटनीतिक रूप से भारत को अमेरिका, जापान, UAE और मध्य एशियाई देशों के साथ समन्वय बढ़ाना होगा। साथ ही मीडिया और सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के प्रभाव को नियंत्रित करना होगा।

भविष्य के परिदृश्य में अगर मुनीर फील्ड मार्शल के रूप में स्थायी सत्ता पा लेते हैं, तो पाकिस्तान तुर्की जैसी सैन्य-लोकतांत्रिक हाइब्रिड संरचना में बदल सकता है या उत्तर कोरिया मॉडल के रूप में परमाणु शक्ति, आंतरिक दमन और सीमित अंतरराष्ट्रीय सहयोग की ओर जा सकता है। CPEC और अन्य आर्थिक परियोजनाएं चीन के नियंत्रण में रहेंगी। इस प्रकार भारत-चीन-पाक त्रिकोण में तनाव बढ़ेगा, विशेषकर कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में।

पाकिस्तान में सेना प्रमुख को संवैधानिक सुरक्षा मिलना केवल आंतरिक मामला नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की शक्ति-संतुलन रेखा को बदलने वाला कदम है। भारत को इस खतरे का सामना केवल सैन्य तैयारी से नहीं, बल्कि रणनीतिक, कूटनीतिक और खुफिया दृष्टिकोण से करना होगा। पाकिस्तान ने 2025 में सत्ता का नया मॉडल स्थापित कर दिया है और 1971 की तरह, भारत को भू-राजनीतिक भविष्य बदलने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। इस बार केवल युद्ध या संघर्ष ही नहीं, बल्कि संरचना और रणनीति का युद्ध चल रहा है।

भारत ने 1971 में पाकिस्तान का नक्शा बदला था, और 2020 के दशक में उसका भू-राजनीतिक भविष्य बदले बिना कहानी पूरी नहीं होगी। मुनीर का फील्ड मार्शल बनना, इमरान की गिरफ्तारी, और अमेरिका-चीन की शह इस पूरे क्षेत्रीय समीकरण को बदल रहे हैं। यह सिर्फ़ पाकिस्तान के भीतर सत्ता संघर्ष नहीं है, यह एक ऐसी घटना है जो भारत की रणनीतिक गहरी सोच, खुफिया तैयारी और भविष्य की सैन्य नीति को सीधे प्रभावित करती है।

पाकिस्तान का नया सत्ता-सैन्य मॉडल दर्शाता है कि लोकतंत्र और नागरिक संस्थान वहां अब दिखावे की चीज़ बन चुके हैं। सेना का उद्देश्य केवल सीमा की रक्षा नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति संरचना को स्थायी रूप देना है। इसका अर्थ है कि आने वाले दशक में भारत को पाकिस्तान से केवल पारंपरिक युद्ध या आतंकवाद के खतरे की तैयारी नहीं करनी होगी, बल्कि उसे संरचना और रणनीति के स्तर पर उत्तर देना होगा, जिसमें खुफिया, कूटनीति और सैन्य हरकतें एक साथ हों।

मुनीर की ताजपोशी, संविधान संशोधन, और इमरान की जेल इस पूरे क्षेत्रीय और वैश्विक जियोपॉलिटिकल नाट्यक्रम का प्रतीक हैं। दक्षिण एशिया का भविष्य अब स्थिर पाकिस्तान के डर और अस्थिर पाकिस्तान के खतरे के बीच संतुलित रहेगा। भारत की भूमिका इस संतुलन को सुनिश्चित करने, खतरे का मुकाबला करने और अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने में निर्णायक होगी।

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