ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि पाकिस्तान बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता और यूनुस सरकार के झुकाव का उपयोग पूर्वोत्तर भारत में अशांति फैलाने के लिए कर सकता है। विश्लेषकों के अनुसार, ढाका में पाकिस्तान की सक्रियता “खिचड़ी” पकाने के समान है

ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी ढाका की स्थिति महत्वपूर्ण है।

दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य आज पहले से कहीं अधिक जटिल और संवेदनशील हो गया है। बांग्लादेश, जो दशकों से भारत की पूर्वी कूटनीति और सुरक्षा रणनीति का आधार रहा है, अब पाकिस्तान की लगातार बढ़ती सक्रियता के कारण तनावपूर्ण स्थिति में है। ढाका में पाकिस्तानी नौसेना और सेना के उच्च अधिकारी लगातार दौरों पर आ रहे हैं, और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का दक्षिणपंथी झुकाव भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौती पैदा कर रहा है। हाल ही में पाकिस्तान के नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ का ढाका दौरा इस खतरे का सबसे स्पष्ट उदाहरण है।

नवीद अशरफ ने बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां और नौसेना प्रमुख एडमिरल नजरुल हसन के साथ बैठक की। अनुमान है कि उनका मोहम्मद यूनुस से भी संपर्क हुआ होगा। इस दौरे का समय महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे दो सप्ताह पहले ही पाकिस्तान की ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्जा ढाका का दौरा कर चुके थे। इसके अलावा आईएसआई के अधिकारी भी लगातार ढाका में सक्रिय हैं। इन सभी दौरों का उद्देश्य केवल द्विपक्षीय सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर मोर्चे पर रणनीतिक दबाव पैदा करना भी माना जा रहा है।

बांग्लादेश में गतिरोध और राजनीतिक अस्थिरता इस खतरे को और बढ़ा रही है। बीते साल अगस्त में विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना की सरकार गिर गई और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार सत्ता में आई। दक्षिणपंथी झुकाव वाली यह सरकार पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दे रही है, जबकि भारत के प्रति उसका रुख संयमित या सहयोगी नहीं रहा। यूनुस सरकार ने सत्ता संभालते ही पाकिस्तान के साथ रक्षा, आर्थिक और कूटनीतिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए हैं।

भारत के लिए बड़ा खतरा

बांग्लादेश की रक्षा मंत्रालय के इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने बताया कि नवीद अशरफ और वकार उज जमां ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग, प्रशिक्षण, सेमिनार और यात्राओं के माध्यम से सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की। पाकिस्तान के अनुसार यह दौरा दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और समुद्री सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया। विशेष रूप से, यह दौरा पीएनएस सैफ जहाज की चार दिवसीय सद्भावना यात्रा के ठीक बाद हुआ, जो चटगांव के प्रमुख बंदरगाह पर लंगर डाल रहा था।

भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि पाकिस्तान बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता और यूनुस सरकार के झुकाव का उपयोग पूर्वोत्तर भारत में अशांति फैलाने के लिए कर सकता है। विश्लेषकों के अनुसार, ढाका में पाकिस्तान की सक्रियता “खिचड़ी” पकाने के समान है। विभिन्न घटकों को मिलाकर भारत के लिए रणनीतिक समस्याएँ उत्पन्न करने की कोशिश। पूर्वी सीमा के पास यह गतिविधियाँ सिर्फ कूटनीतिक झटका नहीं, बल्कि वास्तविक सुरक्षा चुनौती बन सकती हैं।

यूनुस सरकार का दक्षिणपंथी दबाव

पाकिस्तानी अधिकारियों की ढाका यात्राओं का एक और पहलू समुद्री रणनीति से जुड़ा है। बंगाल की खाड़ी में भारत की समुद्री परियोजनाएं और बंदरगाह सुरक्षा न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अहम हैं। पीएनएस सैफ जहाज की चार दिवसीय सद्भावना यात्रा और नौसेना प्रमुख की यात्रा इस क्षेत्र में पाकिस्तानी पैठ को मजबूत करने के प्रयास माने जा सकते हैं। अगर पाकिस्तान बांग्लादेश के बंदरगाहों के जरिए समुद्री कनेक्टिविटी बढ़ाता है, तो भारत के पूर्वी समुद्री व्यापार और रणनीतिक नियंत्रण पर प्रत्यक्ष असर पड़ सकता है।

यूनुस सरकार का दक्षिणपंथी झुकाव भी भारत के लिए चिंता का विषय है। शेख हसीना के शासन में भारत ने सीमापार घुसपैठ, उग्रवाद और आतंकवादी गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण रखा था। लेकिन यूनुस सरकार की नीति में न केवल उदासीनता है, बल्कि कई जगह पाकिस्तान समर्थक तत्वों को वैधता भी दी जा रही है। इस्लामी छात्र संगठन, जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे समूहों को राजनीतिक समर्थन मिल रहा है। ये वही संगठन हैं जिन्होंने बीते वर्षों में भारत-विरोधी नारे फैलाए और सामाजिक अशांति को बढ़ावा दिया।

ढाका की मीडिया में भारत विरोधी तथ्यों की झड़ी

आईएसआई की सक्रियता का व्यापक असर बांग्लादेश के भीतर मीडिया और नागरिक संगठनों में भी देखा जा रहा है। ढाका के अखबारों और डिजिटल पोर्टलों पर भारत विरोधी सामग्री बढ़ी है, जिससे भारत की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के खिलाफ गलत धारणा बनाई जा रही है। विशेषकर पूर्वोत्तर में भारत की विकास परियोजनाओं, जैसे त्रिपुरा से चिटगांव तक के कनेक्टिविटी कॉरिडोर पर यह प्रभाव सीधे असर डाल सकता है।

भारत की कूटनीति इस खतरे को गंभीरता से देख रही है। RAW और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने लगातार बांग्लादेश में पाकिस्तानी गतिविधियों पर नजर रखी है। नई दिल्ली ने “एक्ट ईस्ट” नीति के तहत वैकल्पिक मार्गों को सक्रिय किया है — म्यांमार और थाईलैंड के जरिए पूर्वोत्तर भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ना, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से मध्य एशिया तक पहुँच सुनिश्चित करना और ताजिकिस्तान में भारतीय एयरबेस का रणनीतिक उपयोग करना।

भारत ने खुले रखे हैं अपने दरवाजे

भारत ने यूनुस सरकार के साथ संवाद के दरवाज़े खुले रखे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बांग्लादेश के जनता और नेताओं के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा है। भारत जानता है कि ढाका की जनता ने 1971 में भारत की मदद से आजादी पाई थी, इसलिए जनसमर्थन के माध्यम से भारत विरोधी रुझानों को संतुलित किया जा सकता है।

पाकिस्तान के ढाका में सक्रिय होने के प्रयास अस्थायी लाभ के लिए हैं। उसकी अर्थव्यवस्था डगमगा रही है, सेना की साख घटती जा रही है, और आईएसआई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार विफलताओं का सामना कर रहा है। नवीद अशरफ और असीम मुनीर जैसे अधिकारी यह दिखाना चाहते हैं कि पाकिस्तान अभी भी भारत विरोधी गठबंधन में प्रभावी है। लेकिन उनके प्रयास रणनीतिक दृष्टि से कमजोर और अल्पकालिक हैं।

पूर्वोत्तर में भारत की विकास योजनाओं और कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर असर पड़ने का जोखिम है। मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा, निवेश और व्यापार नेटवर्क को सुदृढ़ किया है। अगर बांग्लादेश पाकिस्तान के प्रभाव में आता है, तो यह परियोजनाओं के लिए बाधा बन सकता है। भारत ने अपनी रणनीति में दोहरा कदम उठाया है। एक ओर राजनीतिक संयम और संवाद, दूसरी ओर रणनीतिक सतर्कता और वैकल्पिक मार्ग।

भारत को करना होगा इन चुनौतियों का सामना

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी ढाका की स्थिति महत्वपूर्ण है। चीन पहले से ही बांग्लादेश में आर्थिक और आधारभूत संरचना परियोजनाओं में निवेश कर रहा है। पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत के पूर्वी मोर्चे पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं। भारत इस खतरे को समझते हुए बहुपक्षीय कूटनीति और रणनीतिक साझेदारी पर जोर दे रहा है।

ढाका में पाकिस्तान की सक्रियता, नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ का दौरा और यूनुस सरकार का दक्षिणपंथी झुकाव भारत के लिए सुरक्षा और कूटनीति की नई चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं। यह केवल राजनीतिक झटका नहीं है, बल्कि पूर्वोत्तर में भारत की सुरक्षा, समुद्री व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। भारत को अपनी रणनीति, कूटनीति और सुरक्षा तैयारियों के माध्यम से इस चुनौती का सामना करना होगा ताकि पूर्वोत्तर में विकास और स्थिरता की धारा बाधित न हो।

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